अजय चौहान || अमेरिका की “कोलोसल बायोसाइंसेज” नाम की एक प्रसिद्ध रिसर्च लैब इस बार एक ऐसा प्रयास करने जा रही है जो आधुनिक युग में संभवतह किसी ने भी नहीं किया होगा। सीधे सीधे कहें तो आधुनिक युग का साइंस प्रकृति से विलुप्त हो चुकी पशु पक्षियों की कई प्रजातियों को फिर से जीवित करने की क्षमता हासिल करने का प्रयास कर रही है।
जिस प्रकार से “कोलोसल बायोसाइंसेज” नाम की इस रिसर्च लैब के वैज्ञानिक अपने दावे कर रहे हैं उन दावों से तो यही साबित होता दिख रहा है कि जल्द ही वो एक ऐसे पक्षी को फिर से जीवन देकर हमारे सामने ला सकते हैं जो आज से करीब 400 वर्ष पहले विलुप्त हो चुका है। दरअसल, यह रिसर्च फर्म, विलुप्त हो चुके डोडो पक्षी को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रही है।
डोडो, जो कि 17वीं शताब्दी में धरती से विलुप्त हो चुकी एक भारी भरकम शरीर वाली ऐसी चिड़िया हुआ करती थी जो देखने में किसी कबूतर की भांति थी, इसलिए पक्षी विज्ञानियों ने इसको कबूतर परिवार की श्रेणी में रखा है। भले ही इसे पक्षियों के वर्ग में गिना जाता था, लेकिन यह पूर्ण रूप से थलचर यानी की जमीन पर रहने वाला जीव हुआ करता था।
डोडो मुख्य रूप से हिंद महासागर के मॉरीशस द्वीप और इसके आसपास के क्षेत्रों में पाया जाता था इसलिए इसे मॉरीशस के राष्ट्रीय चिह्न में आज भी देखा जा सकता है। डच लोगों द्वारा जब मॉरीशस द्वीप और इसके आसपास के क्षेत्रों में कब्जा किया गया तो उन्होंने उस डोडो पक्षी का खूब शिकार करना शुरू कर दिया और इसका व्यावसायिक तौर पर बड़े पैमाने पर शिकार होने लगा और उसे मारकर खाया जाने लगा, जिसके कारण धीरे धीरे इनकी संख्या कम होती चली गई, उसी का नतीजा हुआ कि वर्ष 1681 के आते आते यह पक्षी एकदम लुप्त हो गया।
इतिहासकारों का कहना है कि डच लोग अपने साथ जिन कुत्ते बील्लियों को पालने के लिए लेकर आये थे, उन्हीं के द्वारा वे डोडो का शिकार करवाते थे और खुद भी खाते थे और अपने कुत्ते बिल्लियों को भी खूब खिलाते थे। जबकि डच लोगों के आने से पहले तक डोडो का कोई भी शत्रु नहीं हुआ करता था, यानी न तो मनुष्य और न ही अन्य कोई पशु या पक्षी। क्योंकि स्थानीय लोग इसे एक पवित्र पक्षी मानते थे, इसलिए यह मानव बस्तियों के आसपास भी भारी संख्या में आज़ादी से घूमता फिरता रहता था, तभी तो आज भी इसे मॉरीशस के राष्ट्रीय चिह्न में स्थान दिया गया है।
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डोडो भले ही एक पक्षी था लेकिन क्योंकि यह करीब 13 से 23 किलो वजन का भारीभरकम शरीर वाला पक्षी था, इसकी टांगें छोटी व कमजोर हुआ करती थीं, पंख भी बहुत छोटे थे, इस कारण यह न तो तेज दौड़ सकता था और न ठीक से उड़ सकता था। और क्योंकि यह ठीक से उड़ नहीं सकता था इसलिए यह अपना घोंसला जमीन पर उगी घनी झाड़ियों में ही बनाता था। यह पूर्ण रूप से शाकाहारी पक्षी था और अपने एक निश्चित क्षेत्र में ही घूमता फिरता था।
डोडो एक रंग-बिरंगा पक्षी हुआ करता था जो हमेशा झुण्ड बनाकर इधर उधर घूमते फिरते और लुढ़कते गिरते मस्ती में चलता दिख जाता था, जिस कारण स्थानीय लोगों का खूब मनोरंजन होता था। इसका यह “डोडो” नाम पुर्तगाली भाषा के “दोउदो” शब्द से जन्मा है, “दोउदो” यानी एक मूर्ख या बावला। इसकी इसी खूबी और गुणों को देखकर पुर्तगालियों ने इसे “दोउदो” नाम दे दिया जो बाद में डोडो कहा जाने लगा।
Scientists plot the resurrection of a bird that’s been extinct since the 17th century
“कोलोसल बायोसाइंसेज रिसर्च लैब” के वैज्ञानिकों का कहना है कि हम जेनेटिक बदलावों के माध्यम से डोडो को फिर से जीवित करना चाहते हैं, और इसके लिए जीन एडिटिंग प्रोसेस का सहारा लेने की बात कही जा रही है। अगर इसमें कामयाबी हासिल हो जाती है तो हम ऐसी प्रजातियों को बचा सकेंगे जो अब बिल्कुल विलुप्त होने के कगार पर हैं।
बहरहाल जो भी होगा, डोडो से जुडी इस पूरी रिसर्च का डिटेल लैब की अधिकारिक वेबसाइट पर भी दिया गया है जिसमें रिसर्च से जुडी अन्य कई महत्वपूर्ण जानकारियां भी दी गई हैं। रिसर्च से जुडी रिपोर्ट में कहा गया है कि जीन एडिटिंग के माध्यम से यह संभव हो सकता है। जबकि अन्य कई जानकारों का कहना है कि अगर ऐसा होता है तो हो सकता है कि आने वाले समय में डायनासोर जैसे जीव को भी धरती पर फिर से जीवित देखा जा सकता है।
विज्ञान जगत की और से यह बहुत बड़ी उपलब्धि हो सकती है। लेकिन, इस बात की क्या गारंटी होगी कि अगर डोडो एक बार फिर से इंसानों के बीच नया जीवन लेकर आ जाता है तो वह सुरक्षित महसूस करेगा?
इस विषय के अन्य जानकारों और वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बात तभी सच साबित हो सकती है जब इस फर्म ने डोडो के जीनोम को पूरी तरह से डीकोड कर लिया हो। हालाँकि वैज्ञानिकों ने इस पर काम करना शुरू भी कर दिया है और वे इसके लिए स्टेम सेल तकनीक की मदद ले रहे हैं, जिसके द्वारा 350 साल पहले तक विलुप्त हो चुकी अन्य कई प्रजातियों को भी फिर से जीवित किया जा सकेगा।