अजय सिंह चौहान || मेरा ये लेख एक ऐसे विषय पर है जो हम सभी की जिंदगी से अलग ना होते हुए भी हम उसको सबसे अलग कह सकते हैं। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आज के इस विषय में कुछ ऐसे रहस्य छूपे हुए हैं जो किसी भी आम नागरिक की भावनाओं के पीछे की कमी को उजागर करने वाली लापरवाही होती है।
तो आज मैं ना तो किसी भी प्रकार की लापरवाहियों से बचने की सीख देने वाला हूं और ना ही कोई आंकड़े देने वाला हूं। लेकिन, इस बात को आगे बढ़ाने के लिए आज मैं एक ऐसा उदाहरण दूंगा जो शायद बाकी उदाहरणों से कहीं ज्यादा गहरी सीख देने वाला या चोट करने वाला है।
जैसे कि मैंने लापरवाहियों की बात की थी तो उसी को आगे बढ़ाते हुए यहां एक ऐसी फिल्म का जिक्र करना चाहूंगा जो इस विषय पर संपूर्ण भारती फिल्म उद्योग की सबसे बेहतरीन और सबसे असरदार फिल्म साबित हो सकती है। फिल्म ‘यू-टर्न’ (U-Turn) सिखाती है कि आये दिन जिन लापरवाहियों को हम नजरअंदाज करते जाते हैं उनके कितने घातक परिणाम हमको देखने को मिलते हैं। और ये फिल्म है साल 2018 में कन्नड़ भाषा में बनी ‘यू-टर्न’ ।
तो सबसे पहले तो ये जान लें कि साउथ इंडिया में बनने वाली उन तमाम फिल्मों को जिन्हें हम छोटी-मोटी और साधारण फिल्में समझते हैं दरअसल, संपूर्ण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में वे ही असली फिल्में कही जा सकती हैं जो हमारी जिंदगी से जुड़ी हुई होती हैं, ना कि बाॅलीवुड की बेमतलब वाली हजारों फिल्में।
और, यहां साथ ही साथ, मैं ये बात भी करूंगा कि क्या हमारा बाॅलीवुड अब तक भी इतना मेच्योर नहीं हो पाया है कि वो भी इस तरह की घटनाओं पर कभी-कभी कोई दील को छू लेने वाली या समाज को जागरूक करने वाली फिल्म बना सके। क्या बाॅलीवुड के पास इतना भी सेंस नहीं है कि दर्शकों के लिए एक अच्छी और असरदार फिल्म क्या होती है?
क्या बाॅलीवुड में बैठे धूरंधरों ने कभी सोचा है कि किसी मामूली सी सड़क दुर्घटना को लेकर फिल्म बनाना भी समाज के हित में हो सकता है? जो कहने के लिए तो एक बहुत ही छोटी सी बात होती है लेकिन, उस छोटी सी बात पर या उस छोटी सी घटना या दूर्घटना पर काम करना, या उसे शिक्षाप्रद आकार देकर निस्वार्थ भाव से बड़े पर्दे पर लाना कितना बड़ा रिस्की काम हो सकता है?
लेकिन, हमारा दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग ऐसे अंसभव को संभव करने में माहिर है और उसने कन्नड़ भाषा में बनी ‘यू-टर्न’ (U-Turn) फिल्म के जरिए ऐसा कर दिखाया है।
दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग ने इस फिल्म के जरिये ये भी कर दिखाया है कि अगर समाज और समझ को मिला लिया जाये तो एक साधारण सी कहानी वाली फिल्म से भी कमाई की जा सकती है? और तो और ऐसी शिक्षाप्रद फिल्में बनाने के लिए साउथ की फिल्म इंडस्ट्री में भारी-भरकम बजट का होना कोई जरूरी भी नहीं है।
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दरअसल, साल 2018 में कन्नड़ भाषा में बनी फिल्म ‘यू-टर्न’ (U-Turn) एक ऐसी घटना को सामने लाती है जो कहने के लिए तो सड़कों पर ड्राइव करते समय हम सभी की जिंदगी में आम बात होती है। और हम कई बार उस ‘यू-टर्न’ जैसे नियमों को तोड़ कर निकल जाते हैं।
असल में इस ‘यू-टर्न’ (U-Turn) में दिखाया गया है कि, एक मामूली से नियम को तोड़ने वाला वह शख्स वहां से बड़ी आसानी से चला जाता है। ना तो उस सड़क पर ट्रैफिक ज्यादा है और ना ही वहां उसे रोकने वाला कोई दूसरा शख्स। लेकिन, उसकी वो लापरवाही, उसके पीछे, खुद उसी की जिंदगी में कितना बड़ा तुफान खड़ा कर देती है ये बात इस फिल्म के जरिए बताई गई है।
ये फिल्म एक दम साफ-सुथरी और परिवार के साथ बैठकर देखने वाली है। हां, इसमें थोड़ा सस्पेंश जरूर है, लेकिन, वो भी बेमतलब का तो बिल्कुल भी नहीं। फिल्म की कहानी एक घटना के आधार पर तैयार की गई बताई जा रही है। इस फिल्म की खासियत ये है कि इसमें अब तक की तमाम कमर्शियल फिल्में देने वाली साउथ की हिरोइन के रूप में मशहूर एक्ट्रेस समंता है, जो अकेले अपने दम पर इस फिल्म की कहानी में उतर कर (supernatural thriller) सुपर नैचुरल थ्रिलर को बढ़ाती भी है और उसका समाधान भी करती है।
साधारण भाषा में कहें तो एक्ट्रेस समंता इसमें ‘रचना’ नाम की एक रिपोर्टर के तौर पर इसमें सड़क के नियमों को तोड़ने वालों की मनोदशा पर काम करना चाहती है, लेकिन, वहां वो खुद भी उसमें उलझती जाती है और दूर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की उन भटकती हुई आत्माओं से मिलने के लिए जानबूझ कर उनसे पंगा ले लेती है, ताकि सच्चाई का पता लगा सके।
सीधे-सीधे कहें तो ये फिल्म रहस्य और रोमांच से भरपूर है लेकिन, इसमें जरा सा भी नाच या गाना नहीं है और ना ही इसमें कोई ग्लेमर का तड़का है। अगर कोई इसमें विश्वास करे तो इसकी कहानी में (supernatural thriller) सुपर नैचुरल थ्रिलर, यानी कि भटकती हुई आत्माओं को डालकर इसके जरिए दर्शकों को एक जरूरी शिक्षा दी गई है।
लेकिन, इसके बावजूद भी कहानी में ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि कहानी में भटकती हुई आत्माओं को बेमतलब घुसाया गया है। बल्कि हम हकीकत में भी ऐसा सुनते ही रहते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले अधिकांश लोगों की आत्माएं वहीं आसपास भटकतीं रहतीं हैं और दूसरी दुर्घटनाओं का भी कारण बनतीं हैं। समंता ने इस फिल्म में अपने परफार्मेन्स से कहानी का स्तर बढ़ाया है। सेंटीमेंट्स, प्यार और डर जैसे कुछ खास पलों ने फिल्म की कहानी को और भी इमोशनल करने का काम किया है।