मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में भगवान गणेश के ऐसे अनेकों सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर हैं जो संभवतः देश और दुनिया के सभी गणेश मंदिरों से कुछ न कुछ अलग मान्यताओं और चमत्कारी शक्तियों के साथ अपने को अलग ही स्थान पर रखते हैं। क्योंकि इन सभी मंदिरों की कुछ न कुछ अलग ही विशेषतायें और मान्यतायें भी हैं। इन गणेश मंदिर का पौराणिक और आधुनिक इतिहास एवं मान्यतायं सबसे अलग और सबसे विशेष माना जाता है। जिसके आधार पर कोई भी यह बात कह सकता है कि इंदौर के साथ भगवान गणेश जी का रिश्ता भी संभवतः आदिकाल से और युगों-युगों से कुछ न कुछ विशेष ही रहा होगा। तो आज यहां हम इंदौर के कुछ ऐसे ही चमत्कारिक और खास गणेश मंदिरों के बारे में बताने जा रहें हैं।
तो इंदौर के चमत्कारिक गणेश मंदिरों में जो सबसे पहले स्थान पर है वो है महल कचहरी का गणेश मंदिर। यह मंदिर कितना पुराना है इस बारे में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन, मंदिर से जुड़ा एक सबसे बड़ा रहस्य और इसका चमत्कारिक इतिहास बताता है कि जब क्रुर शासक औरंगजेब इस मंदिर को नष्ट करने और इसमें लूटपाट के इरादे से इसके दरवाजों को तोड़कर घुसा तो वह इसमें बिना कुछ नुकसान किए इसके दरवाजे की चोखट पर अपना सिर झुकाकर वापस चला गया और अपने सैनिकों से कहा कि यहां मुझे मंदिर नहीं बल्कि एक मजार दिख रही है। इस मंदिर में छत्रपति शिवाजी भी एक बार दर्शन करने आये थे और देवी अहिल्याबाई भी यहां दर्शन करने आया करती थीं।
इंदौर के चमत्कारिक गणेश मंदिरों में दूसरे स्थान पर आता है शीतलामाता बाजार का गणेश मंदिर। इस मंदिर में गणेश जी की जो प्रतिमा है उसके बारे कहा जाता है कि जिस समय भारत में मुगल शासक औरंगजेब के आक्रमणों का जो दौर चल रहा था उसमें कई सारे हिन्दू मंदिरों और उनमें स्थापित प्रतिमाओं को खंडित किया जा रहा था। उसी दौरान रणथंभौर के किसी मंदिर से घिसालाल मुछाल नामक एक व्यक्ति इस प्रतिमा को खंडित होने से बचाने के लिए सुरक्षित निकाल कर ले आये और यहां लाकर इसे एक कुएं में डाल दिया और पहचान के तौर पर इसकी सूचना स्थानीय लोगों को दे दी। और जब औरंगजेब का आतंक खत्म हो गया तब यहां के लोगों ने उस प्रतिमा को कुएं से निकाल कर पास ही में एक बड़ के पेड़ के नीचे स्थापित कर दिया।
कहा जाता है कि कुछ सालों तक यह प्रतिमा वहीं स्थापित रही। लेकिन, बाद में इसे शीतलामाता बाजार में बड़ पेड़ के नीचे विधि-विधान के साथ फिर से स्थापित करवा दिया। लगभग 40 साल पहले प्रतिमा पर चढ़ा सिंदूर का चोला अपने आप ही उतर गया था, तभी इस प्रतिमा के वास्तविक दर्शन हो पाये थे। जबकि उसके बाद से आज तक कोई भी इस प्रतिमा को वास्तविक नहीं देख पाया है।
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इंदौर के चमत्कारिक गणेश मंदिरों में तीसरे स्थान पर आता है दो सूंड वाले गणेश जी का मंदिर। यह मंदिर रावजी बाजार मेन रोड़ पर पीपल के पेड़ के नीचे प्राचीन चिंतामण गणेश का एक छोटा मंदिर है जो लगभग 200 वर्ष पुराना बताया जाता है। इस मंदिर में भगवान गणेश की दो प्रतिमाएं स्थापित हैं। बाएं तरफ सूंड़ वाली प्रतिमा काले पत्थर से निर्मित है, जबकि दायीं तरफ सूंड वाले गणेश की प्रतिमा सफेद पत्थर पर बनाई गई है। इसी वजह से इस मंदिर को दो सूंड़ वाले गणेश जी का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर के अंदरूनी भाग में गणेशजी के सिंहासन के ठीक ऊपर दो हाथी व दो मोर पत्थर में नक्काशी कर के बनाई गई है। मंदिर की खास बात यह है कि इसकी गुम्बज में अंदर की ओर ठीक गणेश की प्रतिमा के ऊपर शिवलिंग स्थापित है, जिसको गर्भगृह के अंदर जाकर देखने पर ही देखा जा सकता है।
इंदौर शहर के अन्य अनेकों चमत्कारिक गणेश मंदिरों में चैथे स्थान पर है पगड़ी वाले गणेश जी का मंदिर। कहा जाता है कि लगभग 150 वर्ष पहले त्रंयम्बकराव नाम के एक कलाकार ने इंदौर के राजवाड़ा में होलकर स्टेट की ओर से गणेश उत्सव के दौरान स्थापित किये जाने वाले गणेश जी की प्रतिमा को पहली बार पगड़ी पहने हुए पार्थिव गणेश जी की मूर्ति बनाने की शुरूआत की थी। इसके बाद उनके भाई विश्वनाथ ने राजवाड़ा में स्थापित होने वाली गणेश जी की उसी पगड़ी वाले पार्थिव गणेश की मूर्ती के जैसी ही एक अन्य मूर्ति का निर्माण करके जूनी इंदौर में सदा के लिए स्थापित करवा दिया। तभी से इसे पगड़ी वाले गणेश के नाम से जाना जाता है। इसी मंदिर के परिसर में करीब 130 साल पुराना समी का एक पेड़ भी है, जिसके बारे में मान्यता है कि समी की पत्तियां गणेश जी को अर्पित करने से मनोकामना पूरी होती है।
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और अंत में इंदौर के अनगिनत चमत्कारिक और प्रसिद्ध गणेश मंदिरों में पांचवे स्थान पर है एकाक्षी नारियल वाले गणेश जी का मंदिर। हालांकि कहने के लिए तो यह मंदिर है लेकिन असल में यह मंदिर नहीं बल्कि एक पंडित जी का घर है। और इस घर में एकाक्षी नारियल वाले गणेश जी की जो प्रतिमा है वह लगभग 35 वर्ष पुरानी है। लेकिन अब यह घर पूर्ण रूप से मंदिर के रूप में आस्था का केन्द्र बन चुका है।
इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि इंदौर में रहने वाले पंडित मुरलीधर व्यास जी को किसी यजमानों के घर पूजन कराने के दौरान एक नारियल मिला था। उन्होंने उसे फोड़ने के लिए जब उसकी जटाओं को खोलना शुरू किया तो उसमें उन्हें सूंड जैसी आकृति दिखाई दी। उन्होंने तीन बार यह नारियल फोड़ने का प्रयास किया लेकिन फोड़ नहीं पाए। इसके बाद उन्होंने उस नारियल को संभालकर रख लिया और 18 सितम्बर 1985 को गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की मूर्ति के स्थान पर इसी नारियल को गणेश जी की प्रतिमा के रूप में स्थापित कर दिया।
साधारतः नारियल 6 से 8 माह में सूख जाता है या सड़ जाता है। लेकिन, यहां जिस नारियल को एकाक्षी नारियल वाले गणेश के रूप में पूजा जा रहा है वह नारियल लगभग 30 वर्षों से आज भी वैसा ही है और इंदौर के लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। नारियल रूपी गणेश जी का यह मंदिर फिलहाल मुरलीधर व्यास जी के घर में ही स्थापित है। लेकिन लोगों की आस्था के चलते अब इसके लिए स्थानिय लोगों के द्वारा यहां एक भव्य मंदिर बनाने की योजना पर काम चल रहा है। भजन गायक अनूप जलोटा भी अक्सर नारियल वाले इस गणेश जी के दर्शन के लिए आते रहते हैं।
– ज्योति सोलंकी, इंदौर (मध्य प्रदेश)