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पर्दा प्रथा का अनूठा उदाहरण है हवा महल

admin 28 April 2021
Hawa Mahal_real history of monument
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महल तो आप ने और हमने अनेकों देखे होंगे। लेकिन क्या कोई ऐसा महल भी देखा है जिसमें देखने के लिए सिर्फ झरोखे ही झरोखे हों। जी हां, अगर ऐसा महल अभी तक नहीं देखा तो राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित एक महल है जिसे एक बार तो जरूर देखना चाहिए।

और यह ऐतिहासिक महल ‘हवा महल’ के नाम से सारी दुनिया में मशहूर है जो सन 1799 इसवीं में राजपूत शासक महाराजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा बनवाई गई थी। इस इमारत को ‘परदा प्रथा’ का अनुठा उदाहरण भी कहा जा सकता है। जयपुर के बड़ी चैपड़ स्थान पर स्थित इस हवा महल को ‘पैलेस आॅफ द विंड’ भी कहा जाता है।

सबसे अनुठी संरचना –
सवाई प्रताप सिंह भगवान कृष्ण के भक्त थे इसलिए कहा जाता है कि उन्होंने इस महल का डिजाइन कृष्ण के मुकुट के आकार का बनवाया था। महल के ठीक सामने खड़े होकर इस इमारत को देखने पर इसकी आकृति बिल्कुल श्रीकृष्ण के मुकुट के समान दिखती है।

इतिहासकारों के अनुसार इस इमारत को बनाने का मकसद यह था कि तेज गर्मी में भी इसके भीतर का तापमान वातानुकूलित ही रह सके।और दूसरा कारण यह था कि राजघराने की महिलाएं परदे में रह सकें और शहर में होने वाली आम गतिविधियों और समारोह आदि को महल के झरोखों से ही आसानी से परदे में रहकर देख सकें।

क्योंकि उन दिनों, राजपूत घराने की शाही महिलाएं सार्वजनिक तौर पर या अजनबियों के सामने प्रकट नहीं होती थीं। इतिहासकारों के अनुसार इन झरोखों को जालीदार बनाने के पीछे मूल भावना भी यही थी कि ‘पर्दा प्रथा’ का सख्ती से पालन हो सके।

वास्तु शैली –
राजपूत वास्तुकला शैली में बने हवा महल का डिजाइन उस समय के महशहू वास्तुकार लाल चंद उस्ताद द्वारा डिजाइन किया गया था। लाल चंद ने जयपुर शहर की और भी अनेक शिल्प व वास्तु योजनाएं तैयार करने में सहयोग दिया था।

शहर की अन्य स्मारकों की सजावट को ध्यान में रखते हुए लाल और गुलाबी रंग के बलुआ-पत्थरों से बने इस महल का रंग जयपुर को दी गई ‘गुलाबी नगर’ की उपाधि का एक प्रमाण है। यह इमारत पांच मंजिलों वाली भव्य इमारत है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह बिना किसी नींव के बनी हुई है। यानि यह दुनिया की सबसे बड़ी बिना नींव की इमारत मानी जाती है।

हवा महल की विशेषताएं –
हवा महल अपनी खिड़कियों या ‘झरोखों’ के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इसलिए इसकी विशेषता ये है कि इसके प्रथम तल पर शरद ऋतु के उत्सव मनाये जाते थे। जबकि दूसरी मंजिल को ‘तरन मंदिर’ कहा जाता है।

तीसरी मंजिल ‘विचित्र मंदिर’ कहलाती है, इस मंजिल पर भगवान कृष्ण का मंदिर बना हुआ है। इसी मंदिर में महाराजा सवाई प्रताप सिंह भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना करते थे। इसकी चैथी मंजिल को ‘प्रकाश मंदिर’ कहा जाता है, जबकि पांचवी मंजिल को हवा मंदिर कहते हैं। जिसके कारण इसे हवा महल का नाम दिया गया।

पूरी तरह खंभों पर टिकी इस इमारत की दिवारें बेहद पतली हैं। इसमें कई कमरे हैं और अंदर से देखने में खुली-खुली लगती है। इसकी शीर्ष तीन मंजिलों की चैड़ाई एक कमरे जितनी ही है, जबकि नीचे की दो मंजिलों में खूले आंगन हैं।

इन सभी झरोखों का आकार इतना है कि इनमें से झांक कर आसानी से बाहर का नजारा देखा जा सकता है। इसके सभी कमरों में, सामने के झरोखों से ठंडी हवा बहती रहती है। इसमें 953 बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार खिड़कियां हैं, जिन्हें झरोखा कहते हैं। इसके किसी भी झरोखे से बाहर का नजारा देखा जा सकता है।

हवा महल का प्रवेश द्वार –
हवा महल में सीधे सामने की और से प्रवेश के लिए कोई रास्ता नहीं है। जबकि महल का पिछला हिस्सा इसके ठीक विपरीत है, यानी एकदम सादा है। इसमें महल के दायीं व बायीं ओर से बने मार्गों से प्रवेश की व्यवस्था है, जहां से प्रवेश करने पर महल के पिछले हिस्से में पहुंचेंगे। इसका प्रवेश द्वार एक दम मंदिर के आकार का बना हुआ है।

हवा महल की शिल्प विरासत –
इसकी आतंरिक साज-सज्जा और नक्काशी बेहद खूबसूरत है, इसलिए इसे सुबह-सुबह सूर्य की सुनहरी रोशनी में इसे दमकते हुए देखना एक अनूठा एहसास देता है।
महल की सांस्कृतिक और शिल्प सम्बन्धी विरासत हिन्दू राजपूत शिल्प कला का एक अनूठा उदाहरण है। इसमें फूल-पत्तियों का आकर्षक काम, गुम्बद और विशाल खम्भे राजपूत शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण हैं। पत्थर पर की गयी नक्काशी, सुन्दर मेहराब आदि मुगल शिल्प के नायाब उदाहरण हैं।

ऐसा कहा जाता है कि रानियों को लम्बे घेरदार घाघरे पहन कर सीडियां चढ़ने में होने वाली असुविधा को ध्यान में रख कर इसकी ऊपरी दो मंजिलों में प्रवेश के लिए सीढ़ियों की जगह ढलान या रेंप का प्रावधान किया गया था।

वर्तमान स्थिति –
इस स्मारक में एक पुरातात्विक संग्रहालय भी है। जिसमें संरक्षित की गई प्राचीन कलाकृतियों के माध्यम से आप इसके इतिहास से जुड़ी सांस्कृतिक विरासत और राजपूतों की राजसी जीवन-शैली की झलक देख सकते हैं।

राजस्थान सरकार के पुरातात्विक विभाग की देखरेख में वर्ष 2005 में, करीब 50 वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद बड़े स्तर पर महल की मरम्मत और नवीनीकरण का कार्य किया गया। हवा महल प्रतिदिन खुला रहता है ओर इसमें प्रवेश का समय प्रतिदिन सुबह 9ः30 बजे से शाम 4ः30 बजे तक होता है। इसमें भारतीय पर्यटकों के लिए 10 रुपये का और विदेशी पर्यटकों के लिए 50 रुपये का टीकट लगता है।

अन्य दर्शनिय स्थान –
जयपुर के अन्य ऐतिहासिक और आकर्षक पर्यटन स्थलों में जंतर मंतर, गोविंद देवजी का मंदिर, आमेर का किला, नाहरगढ़ किला, राम निवास बाग, बी.एम. बिड़ला तारामंडल, जैन मंदिर, मूर्ति मंडल और सिसोदिया रानी गार्डन आदि भी मनमोहन है।

कब जायें –
संपूर्ण राजस्थान महलों और हवेलियों की तरह ही तेज गर्मियों के लिए भी जाना जाता है इसलिए लगभग संपूर्ण राजस्थान और खासकर जयपुर आने या जाने का सबसे अच्छा और सुखद समय अक्टूबर से मार्च तक है। अन्य शहरों की तरह ही यहां भी अनेकों छोटे-बड़े और सस्ते या महंगे होटल आपके बजट के अनुसार आसानी से मिल जाते हैं।

कैसे जायें –
जयपुर देश के ही नहीं दुनिया भर में पर्यटकों के लिए मशहूर विशेष महत्व रखता है इसलिए यह शहर हवाई, रेल और सड़क के द्वारा अन्य भारतीय शहरों के साथ-साथ हवाई मार्ग से कुछ अंतरराष्ट्रीय शहरों के साथ अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। जयपुर का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जयपुर से महज 13 किमी की दूरी पर एक दक्षिणी उपनगर सांगनेर में स्थित है।

– अजय सिंह चौहान 

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