हिन्दुस्तान की राजनीति में मुफ्त की योजनाओं एवं लोक-लुभावन घोषणाओं के माध्यम से चुनावी वैतरणी पार करने का चलन और तेजी से बढ़ रहा है। इस प्रवृत्ति को और अधिक बढ़ते हुए देखकर देश के तमाम नागरिक चिंतित भी हैं और उन्हें लगता है कि यह प्रवृत्ति जितना अधिक बढ़ेगी, समस्या उतनी ही गंभीर होती जायेगी और बिना कुछ किये जीवन गुजारने वालों की संख्या में भी वृद्धि होती जायेगी। हालांकि, आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद के लिए केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों के द्वारा तमाम तरह की जन कल्याणकारी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है किन्तु इससे आगे बढ़कर सरकार यदि कुछ और भी करना चाहती है तो उसे दवाई और पढ़ाई की व्यवस्था मुफ्त में करनी चाहिए।
देश के तमाम नागरिकों को यह चिंता सताती रहती है कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा कैसे मिल पायेगी और यदि वे बीमार पड़े तो उनका इलाज कैसे होगा? दवाई और पढ़ाई दोनों मामलों में देखा जाये तो देश अभी आत्मनिर्भर नहीं हो सका है। अभी हाल ही में यूक्रेन में फंसे छात्रों को देखकर यह बात शिद्दत से महसूस भी की गई। आत्मनिर्भर शब्द से मेरा आशय इस बात से है कि सरकारी स्तर पर दवाई और पढ़ाई के क्षेत्र में भारत कितना आत्मनिर्भर है। वैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार इस दिशा में बहुत बेहतरीन कार्य कर रही है।
इलाज के अभाव में तमाम लोगों को समय से पहले वैकुंठधाम को जाना पड़ जाता है। प्राइवेट क्षेत्र में दवाई एवं पढ़ाई की व्यवस्था कर पाना इतना आसान नहीं है, क्योंकि वह काफी महंगा है। सरकार की तरफ से यदि कुछ व्यवस्था है भी तो उसमें औपचारिकताएं बहुत हैं जबकि आज आवश्यकता इस बात की है कि लोगों को त्वरित इलाज मिलना चाहिए। सिर्फ त्वरित ही नहीं बल्कि पूरा इलाज मिलना चाहिए।
पढ़ाई की यदि बात की जाये तो यह बात अकसर सुनने को मिलती रहती है कि तमाम प्रतिभाशाली बच्चे पढ़ना तो चाहते हैं किन्तु वे आर्थिक कारणों से पढ़ नहीं पाते हैं। कोई बच्चा जीवन भर इस बात के लिए पाश्चाताप करता रहे कि काश उसे भी किसी अच्छे स्कूल-काॅलेज में पढ़ा दिया गया होता तो उसका जीवन कहीं इससे बेहतर होता। इस प्रकार की वेदना किसी भी बच्चे के मन में न रहे, इसके लिए यह जरूरी हो जाता है कि दवाई और पढ़ाई की जिम्मेदारी सरकार को लेनी ही चाहिए। इससे न सिर्फ मानवता की रक्षा होगी बल्कि इलाज के अभाव में न तो किसी की जान जायेगी, न ही किसी बच्चे की प्रतिभा का हनन होगा।
– जगदम्बा सिंह