अजय सिंह चौहान || हम सब जानते हैं कि अयोध्या को भगवान श्रीराम के कारण जाना जाता है। लेकिन, इससे भी बड़ा सत्य यह है कि अयोध्या भगवान श्रीराम के कारण नहीं बल्कि उनसे भी कई युगों पहले से ही देवों, महान राजाओं और अन्य कई सिद्ध ऋषि-मुनियों की नगरी रही है। पौराणिक साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है कि अयोध्या को भगवान श्रीराम के पूर्वज विवस्वान यानी सूर्य देव के पुत्र वैवस्वत मनु ने ही सर्वप्रथम बसाया था, और तभी से इस नगरी पर सूर्यवंशी राजाओं का एकक्षत्र राज चला आ रहा था। इसी नगरी में त्रेता युग में राजा दशरथ के महल में प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था।
भगवान श्री राम की पावन जन्मभूमि अयोध्या का पौराणिक और गौरवमई इतिहास आज जिस दौर से गुजर रहा है उसे कौन नहीं जानता। मुस्लिम लूटेरे और आक्रमणकारी बाबर के बाद से लेकर अब तक अयोध्या का इतिहास क्या रहा है और इसकी कैसी दुर्दशा हुई थी और आज क्या हो रहा है यह तो दुनियाभर के लोगों को पता है, लेकिन, इसी अयोध्या नगरी में बाबर के आने से पहले तक कैसा माहौल था और धर्म-कर्म से लेकर राज-काज तक में अयोध्या का देश और दुनिया में क्या योगदान था इस बात पर शायद किसी ने भी गौर नहीं किया होगा।
हमारे इतिहासकारों का मानना है कि कौशल प्रदेश की प्राचीन राजधानी अवध को एक समय तक अयोध्या के नाम से ही जाना जाता था लेकिन बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने यहां डेरा जमा लिया और इसको एक नया नाम दे दिया था और तभी से अयोध्या को साकेत के नाम से भी पुकारा जाने लगा। प्राचीन अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का नगर था।
हालांकि आज भी यहां कई पौराणिक हिंदू मंदिरों और जैन मंदिरों को देखा जा सकता है। लेकिन, 5वीं शताब्दी के आते-आते यहां बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार होने लगा और फिर बौद्ध धर्म से जुड़े मठों और मंदिरों का भी निर्माण होने लग गया था, जिनके अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार अयोध्या में आदिनाथ सहित 5 तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। जबकि बौद्ध धर्म के अनुसार भगवान बुद्ध ने यहां भी कुछ माह का बिताया था और तपस्या की थी।
इसे भी पढ़े: बौद्ध भिक्षुओं ने अयोध्या को दिया था नया नाम || Modern History of Ayodhaya
प्राचीन इतिहास और पौराणिक गं्रथों में अयोध्या का नाम भगवान श्रीराम से ही नहीं बल्कि उनसे भी कई युगों पहले से रहा है। पौराणिक साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है कि अयोध्या को भगवान श्रीराम के पूर्वज विवस्वान यानी सूर्य देव के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था, तभी से इस नगरी पर सूर्यवंशी राजाओं का एकक्षत्र राज चला आ रहा था। त्रेता युग के समय में इसी नगरी में राजा दशरथ के महल में प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। अयोध्या में उसी सूर्यवंशी कुल के वंशजों का राज-काज महाभारतकाल काल तक भी चलता रहा।
धन-धान्य व रत्नों से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुंबी इमारतों के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन वाल्मीकि रामायण में विस्तार से मिलता है। महर्षि वाल्मीकि ने अपने प्रमुख गं्रथ रामायण में भगवान राम की इस जन्मभूमि की शोभा एवं महत्ता की तुलना करते हुए लिखा है कि अयोध्या को इन्द्रलोक नगरी के समान ही कहा जा सकता है।
भगवान श्रीराम के जल समाधि लेने के पश्चात अयोध्या नगरी उजाड़-सी हो गई थी। लेकिन उनकी जन्मभूमि पर बना वह भव्य महल वैसे का वैसा ही रहा। भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार फिर राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया। इस निर्माण के बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक भी अयोध्या का अस्तित्व जस का तस बना रहा और इस पीढ़ी के महाराजा बृहद्बल तक भी अपने चरम पर रहा।
जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया राम जन्मभूमि पर बने भव्य महल का जिर्णोद्धार होते-होते वह एक मंदिर के रूप में स्थापित हो गया। लेकिन इतिहास ने एक बार फिर करवट ली और महाभारत के युद्ध में कौशलराज बृहद्बल की मृत्यु अभिमन्यु के हाथों हो गई और महाभारत के उस महायुद्ध के बाद अयोध्या एक बार फिर से उजाड़ हो गई। मगर श्रीराम जन्मभूमि पर बनी उस भव्य इमारत का अस्तित्व और उसकी पवित्रता जस का तस बनी रही।
महाभारत युद्ध के बाद से हमें अयोध्या का जो ऐतिहासिक उल्लेख मिलता है उसके अनुसार ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के काल का विशेष जिक्र आता है। अयोध्या और सम्राट विक्रमादित्य के इतिहास पर कई इतिहासकारों की पड़ताल से हमें यह पता चलता है कि विक्रमादित्य ने यहां भगवान श्री राम की जन्मस्थली पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवा और साथ ही संपूर्ण अयोध्या नगरी में कुएं, सरोवर तथा अन्य महल भी बनवाए।
इतिहासकारों का मानना है कि सम्राट विक्रमादित्य ने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर इतना भव्य था कि इसकी चर्चा संपूर्ण दुनिया में होने लगी थी।
सम्राट विक्रमादित्य के बाद के अन्य राजाओं ने भी इस मंदिर की देख-रेख की और आवश्यकता के अनुसार, समय-समय पर उसका जिर्णोद्धार करवाया। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग का जिक्र भी आता है। पुष्यमित्र शुंग ने भी श्रीराम मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
अयोध्या से प्राप्त पुष्यमित्र काल के एक शिलालेख पर उन्हें सेनापति बताया गया है और उनके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के किए जाने का भी वर्णन मिलता है। इसके अलावा, अन्य अनेक अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और उसके बाद काफी समय तक भी अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी बनी रही।