अजय सिंह चौहान || मध्य प्रदेश के पश्चिम में मालवा क्षेत्र में स्थित एक शहर है धार। इस धार के किले के बारे में कहा जाता है कि इसके निर्माण का समय, राजा भोजदेव के शासनकाल का यानी सन 1010 से सन 1055 तक के बीच की 11वीं शताब्दी के प्रारंभिक से मध्य शताब्दी तक का है। जबकि इससे पहले, इस किले के स्थान पर ‘धारागिरी लीलोद्यान’ के नाम से एक उद्यान हुआ करता था।
हालांकि, परमार शासकों यानी राजा भोज से भी पहले के धार में समय और आवश्यकता के अनुसार उस ‘धारागिरी लीलोद्यान’ का आंशिक रूप से दुर्गीकरण किया हुआ था। लेकिन, सही मायने में जब राजा भोजदेव ने शासन संभाला, उसके बाद ही इस स्थान पर सामरिक महत्व के अनुसार इसे विस्तार आकार वाला एक मजबूत दुर्ग बनवाया था। हालांकि, यहां एक मजबूत किला बन जाने के बाद भी यह पूरी तरह से सामरिक महत्व के अनुसार निर्मित नहीं माना जा रहा था। जबकि इसके काफी समय बाद, यानी तेरहवी सदी में जाकर, परमारों के प्रधानमंत्री गोगा चैहान के द्वारा इसमें कुछ बदलाव करवाने के बाद ही इसे सामरिक महत्व के अनुसार विकसित करवाया गया था।
लेकिन, 14वीं सदी के प्रारंभिक दशक में, यानी कि सन 1305 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी के दिल्ली सिंहासन पर बैठने के कारण इस्लामिक सत्ता का प्रभाव ना सिर्फ धार में बल्कि संपूर्ण मालवा पर भी पड़ा। उसका असर यह हुआ कि खलजी के सेनापति आईनुल मुल्क मुल्तानी ने मालवा पर आक्रमण कर यहां के उस समय के परमार शासक महलकदेव की हत्या कर दी।
महलकदेव की हत्या के बाद यहां परमार वंश का वह दबदबा लगभग समाप्त ही हो गया। मालवा पर आक्रमण के दौरान अलाउददीन खिलजी ने धार के इस किले पर भी धावा बोल दिया। धार के इस किले पर हुए उस भीषण आक्रमण के दौरान इसके एक प्रवेश द्वार को तोड़ कर अलाउददीन खिलजी की सेना ने किले पर कब्जा कर लिया।
खिलजी की मौत के बाद धार का माहौल कुछ समय तक तो शांत रहा, लेकिन, इसके बाद मुहम्मद तुगलक के शासन काल यानी सन 1325 से 1351 के मध्य के दौरान लगभग तीस वर्षों तक धार के इस किले में कई प्रकार से पुननिर्माण का कार्य चलाया गया, जिसमें सबसे पहले तो इसके भीतर की सभी प्रकार की हिंदू शैली की नक्काशियों और मूर्तिकला को हटाकर उस स्थान पर मुगल शैली का कार्य करवाया गया और किले में सैनिकों के लिए बैरक और आवासीय भवनों का भी कुछ निर्माण कराया गया।
और फिर वही हुआ जिसे आज हर एक आम व्यक्ति जानता है। यानी इतिहास में यह बताया गया कि 14वीं शताब्दी के आस-पास सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने राजपूत और मुगल शैली के अनुसार यह किला बनवाया था। जबकि सच तो यह है कि, यह किला यहां राजा भोज के शासन संभालते ही 11वीं शताब्दी की पहली अवधि में ही बन कर तैयार हो चुका था।
इसी प्रकार से धार्मिक, राजनीतिक और सामरिक महत्व के उठापटक वाले उस दौर की घटनाओं के होते-होते संपूर्ण मालवा सहीत धार नगरी भी 15वीं शताब्दी में प्रवेश कर गई और सन 1531 में एक बार फिर से गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के हाथों में यह किला पहुंच गया।
मुगलकाल के दौर में तमाम अत्याचारों को देखने और सहने के बाद भी धार का यह किला अपने महत्व को किसी तरह बनाये रखने में कामयाब रहा और आखिरकार 18वीं सदी में एक बार फिर से यहां हिंदू शासन स्थापित हो ही गया। हालांकि, इस बार यहां परमार राजपूतों का शासन तो नहीं आया, लेकिन, पवार मराठाओं का शासन स्थापित हुआ, जिसके अंतर्गत सन 1735 में पेशवा ने धार के इस किले को आनंदराव पवार को सौंप दिया।
इस बीच यहां मराठों का शासन स्थापित होने के बाद एक बार फिर से धार के इस किले की मरम्मत करवायी गई और इसकी वही खूबसूरती लौटाने का प्रयास किया गया। उसी दौरान, पूना के पेशवा राघोबा ने अपनी गर्भवती पत्नी आनंदीबाई को सुरक्षा कारणों के चलते धार के इस किले में भेज दिया, जहां उसने इस किले में बने खरबूजा महल में सन 1751 में एक बालक को जन्म दिया जो आगे जाकर पेशवा बाजीराव द्वितीय बना।
जहां एक ओर धार के इस किले ने, 13वीं शताब्दी के उस दौर में मुगलों का स्वागत किया था वहीं, यह अंगे्रजों के शासन के दौर में भी एक महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था। सन 1857 की क्रांति के दौरान, क्रांतिकारियों के एक दल ने धार के इस किले पर देश की आजादी का झंडा लहरा दिया था। हालांकि, बाद में ब्रिटिश सेना ने किले पर फिर से अपना अधिकार कर लिया और उसके बाद उन क्रांतिकारियों को कैसी-कैसी सजाएं दी गई होंगी और क्या-क्या अत्याचार किए होंगे यह आप खुद ही सोच सकते हैं।
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इस घटना के बाद तो अंग्रेजों ने इस किले को पुरी तरह से ढहाने की योजना भी बना ली थी, ताकि सन 1857 के इसके उस क्रांतिकारी इतिहास को भी इसी में दफन कर दिया जाये। लेकिन, इस किले का सौभाग्य रहा कि वे इसमें कामयाब नहीं हो पाये, वर्ना आज हम इस किले और इसकी मध्य प्राचीन स्थापत्य कला की इस अद्भूत विरासत के विषय में ना तो बात कर रहे होते और ना ही यहां कोई पर्यटक इसको निहाने के लिए यहां आते।
धरोहरों का दुर्भाग्य – एक तरफ तो जोड़ रहे हैं दूसरी तरफ तोड़ रहे हैं
धार के इस किले ने 10वीं शताब्दी के प्रारंभिक दौर के राजा भोज के शासनकाल से लेकर भारत की आजादी तक के इतिहास के दौर के अनेक सामरिक महत्व के उतार-चढ़ावों को देखा और अपने हजार से भी अधिक वर्षों के समय के दौरान इसने कई भीषण आक्रमणों को झेला, और कई प्रकार के राजनीतिक और आर्थिक बदलावों का गवाह भी बन चुका है धार का यह किला।
यह किला आज भी इतना मजबूत है कि हजारों वर्ष बाद भी इसके सभी बुर्ज संतुलित स्थिति में खड़े हैं। दूर से देखने में तो यह एक प्रकार से मैदानी क्षेत्र में बना हुआ किला ही दिखता है, लेकिन, फिर भी सामरिक महत्व के अनुसार ही इसे धार नगर के उत्तर में स्थित एक छोटी-सी पहाड़ी पर बनाया हुआ है।
आज यह किला एक खंडहर का रूप लेता जा रहा है, लेकिन, इस समय यहां पर जो भी अवशेष हैं, उनमें इसके वैभवशली अतीत को देखा जा सकता है। लाल बलुआ पत्थर से बना यह विशाल आकार वाला किला 10वीं शताब्दी के प्रारंभिक दौर से, यानी राजा भोज के शासनकाल से लेकर, भारत की आजादी तक के इतिहास के दौर के अनेक उतार-चढ़ावों को देख चुका है।
खिलजी के सेना प्रमुख आइनुल-मुल्क-मुल्तानी ने परमार शासकों के द्वारा निर्मित इस ‘धारा-गिरि-लीलोद्यान दुर्ग’ में कई प्रकार से बड़े बदलाव करवा कर इसे ना सिर्फ मुगल शैली में परिवर्तित करवा दिया था बल्कि इसमें परमार राजा भोज के काल में निर्मित बावड़ी की नक्काशी के अवशेष और मूर्तियों को भी वहां से हटा कर इसमें मुस्लिम शैली के निर्माण का ठप्पा लगा दिया और उसी के बाद से ‘धारा-गिरि-लीलोद्यान दुर्ग’ को दुनिया ‘धार के किले’ के नाम से जानने लगी।
धार के इस किले यानी उस प्राचीन दुर्ग के अन्दर मौजूद संग्रहालय में परमार शासनकाल की कुछ खंडित प्रतिमाएं, प्राचीन नक्काशी के कई अवशेष, कुछ अभिलेख, प्राचीन मुद्राएं और अन्य कई वस्तुएं भी संग्रहीत हैं।
धार के किले तक कैसे पहुंचे –
अगर आप भी इस ऐतिहासिक नगरी धार में घूमने जाना चाहते हैं तो बता दें कि इसके लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन इंदौर में है। हालांकि धार में भी रेलवे स्टेशन है लेकिन, यह एक छोटा स्टेशन है जो पश्चिम रेलवे के उदयपुर-धार रेलवे मार्ग पर पड़ता है। इसलिए यहां बहुत ही कम ट्रेनें रूक पाती हैं।
धार प्रदेश और देश के हर भाग से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा हुआ है। यहां आने-जाने के लिए कई प्रकार के वाहनों की नियमित सुविधा है।
सड़क मार्ग से धार तक पहुंचे के लिए इन्दौर से इसकी दूरी करीब 70 कि.मी., ओमकारेश्वर से 135 किमी और खंडवा शहर से इसकी दूरी करीब 190 किमी है। जबकि खरगौन शहर से इसकी दूरी करीब 120 किमी है। अगर आप मुंबई-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग से होते हुए यहां पहुंचना चाहते हैं तो इस मार्ग से धार की दूरी करीब 90 किमी है।
अगर आप यहां हवाई जहाज से भी आना चाहते हैं तो उसके लिए आपको यहां के सबसे नजदीकी एयरपोर्ट इंदौर ही आना होगा, और फिर इन्दौर से इसकी दूरी करीब 70 कि.मी. है।