ऐतिहासिक दृष्टि से धोलावीरा (Dholavira) न सिर्फ गुजरात के लिए बल्कि संपूर्ण भारत के लिए एक ऐसा पुरातात्विक स्थल है जो सिंधु घाटी सभ्यता का ही एक हिस्सा है और आज यह संपूर्ण संसार के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। धोलावीरा हड़प्पा सभ्यता के एक प्राचीन शहर के खंडहरों के इतिहास का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि धोलावीरा का वह इतिहास जो 3,000 ईसा पूर्व से 1,800 ईसा पूर्व तक के मध्य का यानी लगभग 1,200 वर्षों की अवधि के अपने समय को हमारे सामने दर्शाता है।
यह महत्वपूर्ण स्थान गुजरात राज्य के कच्छ जिले में धोलावीरा गाँव, यानी जिससे इस स्थान को पहचाना जाता है और जिससे इसका नाम पड़ा, के पास स्थित है। धोलावीरा (Dholavira) का यह क्षेत्र 250 एकड़ भूमि पर कच्छ के महान रण के खादिर द्वीप में फैला हुआ है। यह स्थान कच्छ रेगिस्तान के वन्यजीव अभयारण्य का संरक्षित हिस्सा है।
धोलावीरा (Dholavira) क्षेत्र में पाई गई अन्य वस्तुओं में कई पत्थर की मूर्तियां, सोने और मनके के गहने, पशुओं की आकृतियों वाली मुहरें, कब्र जैसी संरचनाएं और कई अर्धगोलाकार संरचनाएं शामिल हैं।
दुनियाभर के इतिहासकारों के लिए धोलावीरा (Dholavira) अभी भी इस बात को लेकर एक पहेली बना हुआ है कि आखिर यहां ऐसा क्या हुआ होगा जो इसकी आबादी या तो नष्ट हो गई या फिर उन्होंने यहां से पलायन किया होगा। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह संभव है कि इस क्षेत्र की जलवायु में हुए परिवर्तनों के कारण ही यहां की आबादी का जीवन और अधिक कठिन हो गया होगा जिसके चलते उन्होंने पूर्व की ओर पलायन किया होगा।
ऐतिहासिक महत्व –
धोलावीरा संपूर्ण विश्व के इतिहास में महत्व स्थान रखता है, क्योंकि यह दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। अनुमान है कि यह लगभग 5,000 वर्ष पहले की सिंधु घाटी सभ्यता के जनजीवन का एक हिस्सा हुआ करता था। पुरातात्विक खोजों से प्राप्त कई वस्तुओं से यह स्पष्ट है कि धोलावीरा के निवासी उस समय की अन्य सभ्यताओं के साथ सक्रिय व्यापार में लगे हुए थे।
धोलावीरा (Dholavira) से प्राप्त तमाम प्रकार की वस्तुओं से ज्ञात होता है कि इस प्राचीन शहर के लोगों द्वारा हासिल की गई उच्च स्तर के कौशल और स्थापत्य की निपुणता भी दुनिया की अन्य सभ्यताओं में सबसे उत्तम हुआ करती थी। अन्य तथ्यों से ज्ञात होता है कि एक संभावना यह भी है कि धोलावीरा के नागरिकों की समुद्र तक पहुंच भी बहुत आसान रही होगी।
खोज एवं उत्खनन –
धोलावीरा (Dholavira) का सच तब सामने आया जब वर्ष 1989 में भारतीय पुरातत्वविद सर्वेक्षण के एक विशेषज्ञ आर.एस. बिष्ट और उनकी टीम ने वर्ष 1990 से 2005 के बीच इस स्थान पर सिलसिलेवार खुदाई की। इस सर्वेक्षण में धोलावीरा शहर को बहुत अच्छी तरह से व्यवस्थित पाया गया। सर्वेक्षण में पता चलता है कि यहां एक व्यवथित शहर बनाने के लिए तीन भागों या तीन चरणों में विभाजित किया गया, जिसमें से एक निचला शहर, एक चतुर्भुज मध्य शहर और एक प्रमुख गढ़।
धोलावीरा के (Dholavira) मध्य और निचले शहरों की तुलना में पता चलता है कि सबसे अच्छी किलेबंदी की प्रणाली वाले गढ़ के साथ पूरे लेआउट को बहुत ही अच्छी तरह से मजबूत किया गया था। संभवतः यह वही स्थान रहा होगा जहां से इस शहर के उच्च पदस्थ अधिकारी या शासक रहा करते होंगे। इस गढ़ की उत्तर दिशा में एक भव्य प्रवेश द्वार, एक स्टेडियम या एक मैदान के रूप में बड़ा मैदान छोड़ा गया था।
धोलावीरा (Dholavira) के सर्वेक्षण से पता चलता है कि इसके निचले शहर में मुख्य रूप से धोलावीरा के साधारण कार्यकर्ता रहा करते होंगे। इसके अलावा इस संपूर्ण शहर के 16 अलग-अलग जलाशयों और जल चैनलों के साथ शहर की जल व्यवस्था भी बहुत ही व्यवस्थित थी। यह व्यवस्था इस शहर के लिए पानी का भंडारण भी करती थी और निकासी का भी प्रबंध करती थी। इसमें बड़े सार्वजनिक स्नानागारों और बावड़ियों को भी यहां खोजा गया है।
धोलावीरा के आश्चर्य –
धोलावीरा (Dholavira) के आश्चर्यों और अनूठी विशेषताओं में सबसे खास यह है कि यहां हड़प्पा और मोहनजो-दड़ो जैसे अन्य हड़प्पा शहरों एक दम अलग, शहर को लगभग शत-प्रतिशत ईंटों के बजाय पत्थरों से बनाया गया है। इस प्राचीन शहर की एक अन्य खास विशेषता ये है कि यहां जल संसाधनों का बहुत ही बेहतर उपयोग किया जाता था। सभी जलाशयों और जल चैनलों को इस प्रकार से डिजाइन किया गया है कि इसमें वर्षा जल के सफल संरक्षण और निकासी के साथ ही शहर की नालियों के गंदे पानी की निकासी को भी अनुमति देता है। धोलावीरा (Engineering of Dholavira) का इंजीनियरिंग कौशल बताता है कि यहां सूखे या अकाल की स्थिति में भी पानी की हर बूंद को संरक्षित करने की क्षमता थी।
खतरा और संरक्षण –
धोलावीरा (Dholavira) के खंडहरों से ज्ञात होता है कि यहां की आबादी को अन्य हड़प्पा कालीन स्थलों के बजाय बहुत अधिक या किसी बहुत बड़े प्राकृतिक या किसी महत्वपूर्ण खतरे का सामना नहीं करना पड़ा होगा। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि धोलावीरा नगर का निर्माण मुख्य रूप से मिट्टी और ईंटों के बजाय शत-प्रतिशत पत्थरों से किया गया है जो प्रकृति के बड़े से बड़े खतरे के लिए प्रतिरोधी है।
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धोलावीरा (Dholavira) शहर का आकार लगभग 22 हेक्टेयर यानी करीब 54 एकड़ में फैला हुआ था और यह संपूर्ण शहर चारों ओर से 15 से 18 मीटर मोटाई की एक विशाल आकार वाली दीवारों से घिरा हुआ था।
आप को बता दें के धोलावीरा (Dholavira) , गुजरात के एक संरक्षित क्षेत्र में स्थित होने के कारण, अन्य प्रकार के मानवीय हस्तक्षेपों या भीड़भाड़ से काफी दूर, सुरक्षित और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखभा और संरक्षण में है।
How to reach Dholavira: धोलावीरा तक कैसे पहुंचे –
Dholavir by Road : सड़क मार्ग से – धोलावीरा पहुंचने का एक मात्र साधन सड़क मार्ग से ही है। आप चाहें भुज पहुंचे या धोलावीरा के आसपास के अन्य किसी भी शहर या कस्बे में। आप वहां से कैब या रोडवेज की बस ले सकते हैं। धोलावीरा का निकटतम शहर रापर है जहां के लिए आप टैक्सी या बस ले सकते हैं। रापर से आपको धोलावीरा के लिए सरकारी और निजी बसें मिलती हैं, जिसमें करीब तीन घंटे और लगते हैं। यहां सुबह से देर शाम तक बसें चलती रहती हैं। आप चाहें ता रापर में भी रात को ठहर सकते हैं।
Dholavir by Train: ट्रेन से – धोलावीरा के लिए रेल की भी कोई सीधी कनेक्टिविटी नहीं है। भुज का रेलवे स्टेशन ही यहां के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो यहां से करीब 220 किमी दूर है।
Dholavir by Flite : फ्लाइट से – धोलावीरा (Dholavira) के लिए अभी तक उड़ान की कोई सीधी कनेक्टिविटी नहीं है। इसके लिए निकटतम हवाई अड्डा भुज में है, जो यहां से करीब 220 किमी दूर है। हवाई अड्डे से धोलावीरा के लिए प्रीपेड टैक्सियां और रोडवेज की बसें उपलब्ध हैं।
– अजय सिंह चौहान