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यहां स्वयं ब्रह्याजी ने की थी शिवलिंग की स्थापना | History of Sambhal

admin 5 December 2021
Sambhal-Railway-station-up
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अजय चौहान ||  उत्तर प्रदेश का जिला सम्भल (History of Sambhal in Uttar Pradesh), एक ऐसा नगर है जिसको लेकर हजारों सालों का इतिहास, पौराणिक मान्यताएं और किंवदंतिया युगों-युगों से चली आ रहीं हैं। आज के सम्भल नामक इस क्षेत्र को लेकर हमारे पौराणिक ग्रंथों के जानकार बताते हैं कि सतयुग में इस स्थान का नाम सत्यव्रत था, त्रेता युग में महदगिरि या महेंद्रगिरी, द्वापर युग में पिंगल था और अब इस कलयुग में यह सम्भल के नाम से प्रसिद्ध है।

युगों-युगों के प्रमाण और साक्ष्य आज भी यहां प्रत्यक्ष देखने को मिलते हैं। उन प्रमाणों के अनुसार यहां उस दौर के 68 तीर्थ आज भी मान्य हैं और पौराणिक काल में बनवाए गए 18 से भी ज्यादा कुंए और तालाब आज भी यहां की अलग-अलग जगहों पर देखने को मिल जाते हैं।

सम्भल (History of Sambhal in Uttar Pradesh) किसी समय में भगवान शिव की नगरी और सनातन एवं वैदिक धर्म के लिए एक पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ हुआ करता था। लेकिन, वर्तमान में यह एक घनी मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र बन चुका है और यहां स्थित एक प्रसिद्ध मस्जिद को आज भले ही जामा मस्जिद के नाम से जाना जाता है, लेकिन पौराणिक और तमाम प्रकार के ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार वास्वत में वह एक ऐसा मंदिर हुआ करता था जिसका जिक्र और अस्तित्व हमारे पौराणिक ग्रंथों में हरिहर मंदिर के नाम से आज भी मौजूद है।

लेकिन, हरिहर मंदिर का दुर्भाग्य था कि अफगान से आये मुस्लिम आक्रांता मोहम्मद गौरी ने एक भयंकर युद्ध में हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चैहान को परास्त करके इस पर कब्जा कर लिया और इसको ध्वस्त करके यहां एक मस्जिद का निर्माण करवा दिया जिसको आज जामा मस्जिद के नाम से जाना जाता है।

पौराणिक साक्ष्यों और मान्यताओं के अनुसार युगों पहले इस हरिहर मंदिर में शिवलिंग की स्थापना स्वयं ब्रह्याजी ने अपने हाथों से की थी। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि सम्भल उर्फ शम्भलेश्वर नगर की संरचना स्वयं भगवान शिव ने विश्वकर्मा से कराई और इसकी रखवाली के रूप में खुद तीन कोनों पर विराजमान हुए थे। सम्भल की इसी त्रिकोणीय परिधि में 68 तीर्थ और 19 कूप के दर्शन मात्र से ही मानव को पापों से मुक्ति के साथ-साथ चारों तीर्थों की यात्रा का पुण्य फल भी मिल जाता है।

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हरिहर मंदिर के अतिरिक्त सम्भल में तीन और प्रसिद्ध शिवलिंग भी हैं, जिसमें से जो पूर्व दिशा में है वह चन्द्रशेखर महादेव, उत्तर में भुवनेश्वर महादेव और दक्षिण में सम्भलेश्वर महादेव के नाम से जाने जाते हैं।

सम्भल को लेकर पुराणों में लिखा है कि कलियुग में होने वाला भगवान विष्णु का कल्कि अवतार इसी क्षेत्र के शंबल नामक एक नगर में होगा। जबकि यहां प्रचलित लोक मान्यताओं में सम्भल को ही शंबल माना जाता है। यहां होने वाले भगवान विष्णु के कल्कि रूपी जन्म और उससे संबंधित मान्यताओं के आधार पर यहां पहले ही उनका एक विष्णु मंदिर बना लिया गया है।

इस क्षेत्र की परत दर परत में न जाने कितने बेशकीमती ऐतिहासिक और पौराणिक साक्ष्य छिपे हुए हैं। सम्भल में कई स्थान ऐसे हैं जो खुद ब खुद ही इसके हजारों साल के इतिहास के प्रमाण आज भी देते हैं। यहां के कुछ टीले, ऐतिहासिक काल के कीले, और कई स्थानों पर बने हुए बुर्ज, आज भी पौराणिक युग के उस प्राचीन, सशक्त और समृद्धशाली सम्भल के इतिहास की कहानी बयां करते हैं। हर साल आयोजित होने वाले यहां के कार्तिक शुक्ल चतुर्थी और पंचमी के मेले के लिए आज भी शिवभक्त दूर-दूर से दर्शन करने और इसकी परिक्रमा करने आते हैं।

ऐतिहासिक नगरी सम्भल उर्फ शम्भलेश्वर में प्राचीन काल के ऐसे कई मंदिर और संरचनाएं हैं जो अनदेखी के चलते लुप्त हो रहे हैं और अब मात्र कुछ ही तीर्थ वास्तविक रूप में बचे हैं। स्थानिय हिंदू जागृति मंच का मानना है कि शम्भलेश्वर के तीर्थस्थलों की परिक्रमा को करने से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की तरह ही पुण्य लाभ मिलता है।

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