अजय सिंह चौहान || उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले की एक तहसील का नाम है अनूपशहर, जो शहर गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसा हुआ है। वैसे तो पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अनूपशहर को ‘छोटी काशी’ के नाम से जाना जाता है लेकिन, यदि इतिहासकारों की बात पर विश्वास करें तो पता चलता है कि उन्होंने तो इसके इतिहास को मुगलकाल से जोड़ कर एक तरह से इसके पौराणिक अस्तित्व को ही लगभग नष्ट कर दिया।
हमारे आधुनिक इतिहासकार बताते हैं कि गंगा के तट पर स्थित आज का अनुपशहर मुगल शासक जहांगीर के शासनकाल में बसाया गया था। और उसने यहां के एक गांव जिसका नाम बलभद्र नगर था उसको अपनी राजधानी घोषित कर दिया और इसका नाम बदल कर अनूपशहर कर दिया था।
जबकि यहां हम आपको बता दें कि यह नगर गंगा के तट पर स्थित है और ‘अभिधानचिंतामणि’ नामक संस्कृत के शब्दकोश में अनूप का जो शाब्दिक अर्थ मिलता है उसके अनुसार एक ऐसा भू-भाग जहां जलस्रोत या जहाँ से जल का बहाव निरंतर बना रहता हो उसके किनारे के क्षेत्र को अनूप नगर कहा जाता है। और क्योंकि यह शहर गंगा नदी जैसे प्रमुख जलस्रोत के तट पर बसा हुआ है इसीलिए इसे अनूपशहर नाम दिया गया होगा।
लेकिन अगर हम अनूपशहर के प्राचीन और पौराणिक इतिहास पर नजर नजर डालें तो हमें पता चलता है कि द्वापर युग से ही यह नगर हमारे लिए धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत ही महत्व का रहा है।
पौराणिक तथ्यों के अनुसार, महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम तीर्थ यात्रा के लिए चले गए थे और उसी तीर्थ यात्रा के दौरान वे इस क्षेत्र में आए और यहां तपस्या की थी। इसके चलते इसको बलभद्र नगर कहा जाता था।
इसके साक्ष्य के रूप में अनूप शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित आहार गांव में पुरातत्व विभाग के द्वारा की गई खुदाई के दौरान महाभारत कालीन कई प्रकार के अवशेष भी मिले हैं। और उन अवशेषों से इस स्थान की प्राचीनता के प्रमाण मिलते हैं। इसके अलावा, अनूपशहर से मात्र 12 किमी की दूरी पर अवंतिका देवी का एक ऐसा प्रसिद्ध मंदिर भी है जो साक्षी है भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मीनि के विवाह का। यही वह मंदिर है जहां से भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मणी का अपहरण किया था। माना जाता है कि यह मंदिर द्वापर युग से भी पहले का है।
और अगर हम मध्य युगीन इतिहास को देखें तो उस समय भी हमारे आदि शंकराचार्य ने इसी नगर के गंगा तट पर एक विशाल शास्त्रार्थ सभा की थी। इसके अलावा गंगा किनारे सनातन धर्म के कई जाने माने और उच्च कोटि के साधु-संतो के आश्रम भी है जिन्होंने समय-समय पर यहां आकर तपस्या की, प्रवचन दिए और अनेकों ऋषि-मुनियों ने अपनी तपस्या के बल पर इस भूमि को तपोभूमि बनाया है। इसके अलावा सिखों का प्रसिद्ध तीर्थ बाबा खड़क सिंह का आश्रम भी यहीं पर बना हुआ है।
यहां कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर अनूपशहर में गंगा किनारे लगने वाले विशाल मेले और उसके अलावा भी अन्य अनेकों विशेष स्नान पर्वों के अवसर पर हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ प्राचीन काल से ही जुटती आ रही है। इसके अलावा यहां श्राद्ध पूर्णिमा के अवसर पर दूरदराज से आने वाले लाखों श्रद्धालु गंगा के घाटों के दोनों ही ओर पुरोहितों से विभिन्न संस्कार करा कर भगवान सत्यनारायण की कथा का श्रवण करवाते देखे जा सकते हैं।
प्राचीन काल से ही छोटी काशी के नाम से विख्यात यह धार्मिक नगरी भी अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुख्य तीर्थ स्थल के रूप में विशेष रूप से विकसित हो रही है। धार्मिक दृष्टि हरिद्वार के बाद अनूपशहर दूसरा ऐसा प्रमुख शहर है, जो गंगातट पर आबाद है। यहां हर शाम गंगा जी की आरती में रोजाना सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल होते हैं।
अनूप शहर से होकर बहने वाली पवित्र गंगा नदी के तटों की सूरत बदलने के लिए नमामि गंगे योजना के तहत कुछ विशेष प्रयास भी किए जा रहे हैं। जिसके अंतर्गत प्राचीनकाल के मस्तराम आश्रम का आधुनिकीकरण करवा कर यहां के घाटों को पक्का करवाने और उनका सौंदर्यकरण करवाने का कार्य प्रमुख है।
देश के लिए आजादी की लड़ाई में योगदान देने वाले यहां के दर्जनों गुमनाम देशभक्तों ने अपने प्राण न्यौछावर किये थे। इसके अलावा अनूपशहर में मक्खन, जड़ी बूटी और इमरती लकड़ी का एक बहुत बड़ा कारोबार होता है।