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मानवता के लिए- शक्ति का सदुपयोग हो न कि दुरुपयोग…

admin 11 September 2021
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वर्तमान समय का यदि ठीक से मूल्यांकन एवं विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट रूप से देखने में आ रहा है कि किसी को भी किसी भी प्रकार की शक्ति चाहे वह सत्ता के रूप में, अर्थ के रूप में, धार्मिक शक्ति के रूप में, बाहुबल के रूप में या किसी अन्य रूप में प्राप्त हो रही है तो उसका उपयोग मानवता की रक्षा के लिए कम, अपनी ताकत को और अधिक बढ़ाने के लिए अधिक हो रहा है।यदि यह कहा जाये कि यदि कोई भी व्यक्ति, समूह, समाज या राष्ट्र सिर्फ अपनी ताकत को और अधिक बढ़ाने में हमेशा लगा रहे तो उस ताकत के दुरुपयोग की संभावना सदैव बनी रहती है। उदाहण के तौर पर वर्तमान में अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है, उसे सबसे ज्वलंत उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। तालिबान के पास ताकत आई तो उसने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी अपनी राजनैतिक ताकत की बदौलत अपने देश की जनता को उसके भाग्य पर छोड़कर भाग गये। अमेरिका की जब तक इच्छा थी, तब तक वह अफगानिस्तान में रहा, जब उसकी इच्छा नहीं रही तो वह भी वहां से चला गया।

अब सवाल यह उठता है कि इन तीनों घटनाओं से क्या सीख मिलती है? विश्लेषण किया जाये तो देखने में आ रहा है कि अमेरिका अपनी ताकत के दम पर जब चाहता है, किसी देश में घुस जाता है और जब उसकी इच्छा होती है तो वापस आ जाता है। तालिबानियों की बात की जाये तो यदि वे ताकतवर नहीं होते तो अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं कर पाते। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति अशरफ गनी यदि राजनैतिक रूप से असरदार नहीं होते तो उन्हें कोई दूसरा देश आनन-फानन में कैसे शरण दे देता? इन तीनों प्रकरणों पर गौर किया जाये तो क्या किसी भी मामले में मानवता की चिंता की गई या उसके लिए किसी भी प्रकार से कार्य किया गया। वैसे, देखा जाये तो इन तीनों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि अफगानिस्तान में कराह रही मानवता की रक्षा के लिए आगे आयेंगे। अफगानिस्तान छोड़कर भागने के चक्कर में कई लोग हवाई जहाज से लटक गये और उनकी जान चली गई।

जब मानवता की रक्षा एवं उसके लिए कुछ करने की बात आती है तो भारत सहित पूरे विश्व की राजनैतिक, सामाजिक आर्थिक, धार्मिक एवं अन्य सभी परिस्थितियों का आंकलन किया जाये तो स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है कि इन हालातों में जिसके पास शक्ति आ रही है, अधिकांशतः उसका दुरुपयोग ही हो रहा है। अब सवाल यह उठता है कि किसी भी समस्या का समाधान हमें वर्तमान में ही रहकर ढूंढ़ना होता है तो ऐसी स्थिति में वर्तमान में इस दिशा में कोई रास्ता दिखा पाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है तो अतीत से सीख लेते हुए वर्तमान एवं भविष्य को सजाया-संवारा जा सकता है।

यदि हम अपनी गौरवमयी सनातन सभ्यता-संस्कृति, प्रकृति एवं महापुरुषों से कुछ जानना एवं सीखना चाहें तो सब कुछ आसान हो जाायेगा। सतयुग, त्रेता और द्वापर युग में तो ऐसे-ऐसे उदाहरण हमें देखने-सुनने को मिलेंगे कि यदि उस पर अमल कर लिया जाये तो उससे सीख लेते हुए वर्तमान में शक्ति का उपयोग मानवता के लिए होने लगेगा और बिल्कुल असहाय, लाचार एवं निराश्रित व्यक्तियों का भी जीवन आसानी से कट जायेगा।

अब हम अपनी गौरवमयी सनातन संस्कृति की तरफ चलें। ते्रता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हमारे लिए सबसे बड़े प्रेरणा स्रोत हैं। उन्हें दैवीय कृपा से जब शक्ति मिली तो उन्होंने शक्ति का दुरुपयोग करने के बजाय अपनी शक्ति का उपयोग मानवता की रक्षा के लिए किया। चैदह वर्ष तक जंगलों में रहकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने राक्षसों एवं दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का वध करके ऋषियों-मुनियों एवं जनता-जर्नादन को शांति और सुखमय जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया। यदि वे चाहते तो माता कैकेयी की बात न मानकर अयोध्या का राजा बनकर ऐशो-आराम की जिंदगी बिताते किन्तु उन्होंने समाज एवं राष्ट्र का मार्गदर्शन कर बताया कि शक्ति का सदुपयोग मानवता की रक्षा के लिए होना चाहिए, न कि उसका दुरुपयोग होना चाहिए। इसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति का उपयोग मानवता की रक्षा के लिए किया। बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर समाज को एक आदर्श जीवन जीने का रास्ता भी बताया। भगवान श्रीकृष्ण ने साफ तौर पर यह भी कहा है कि मानवता की राह पर चलते हुए यदि आप को कष्ट ही कष्ट मिलें तो भी उस पर चलते रहना चाहिए क्योंकि सद्मार्ग पर चलना स्वयं में मानवता की रक्षा ही है।

महात्मा बुद्ध, गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, सम्राट अशोक, चंद्र गुप्त मौर्य जैसी महान विभूतियों ने अपने त्याग एवं आचरण से सर्वदा यह बताने का कार्य किया है कि लोग जिस ऐशो-आराम एवं रुतबे के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने में लगे हैं, उससे कभी न कभी मन ऊब जाता है और मन में वैराग्य का भाव उत्पन्न हो जाता है तो ऐसी स्थिति में बिना लाग-लपेट के यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति को सदा वही कार्य करना चाहिए जिससे उसका मन कभी न ऊबे और वह सदा उस काम में लगा रहे। इस दृष्टि से यदि देखा जाये तो वह काम मात्र मानवता की रक्षा और उसकी सेवा ही है।

महान संत वाल्मीकि पहले डाकू थे किन्तु जब उन्हें यह ज्ञात कराया गया कि वे जिस रास्ते पर जा रहे हैं, वह अनीति एवं अधर्म का है तो उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया और सद्मार्ग पर चलकर मानवता की रक्षा में लग गये। यह सब लिखने के पीछे मेरा मकसद मात्र यही है कि मानवता के रास्ते पर आने और उस पर कार्य करने के लिए हमारी गौरवमयी सनातन संस्कृति बहुत मददगार साबित हो सकती है। हमारे वेद-पुराण और धार्मिक ग्रन्थ हमें यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि मानवता की राह पर चलकर न सिर्फ हमारा वर्तमान अच्छा बनता है अपितु भविष्य भी उज्जवल बनता है और पूर्व के पापों का भी निवारण होता है।

मानवता की रक्षा के लिए यदि हम कुछ सीखना चाहें तो प्रकृति हमारे लिए सबसे बेहतर शिक्षक की भूमिका निभा सकती है। प्रकृति की तमाम चीजों को भले ही नजर अंदाज कर दें किंतु यदि पंच तत्वों यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु को ही अपना शिक्षक मान लें तो अपनी शक्ति का उपयोग मानवता के लिए करने लग जायेंगे। शक्ति की बात यदि की जाये तो मानव इन पंच तत्वों के आगे कहीं टिकता भी नहीं है।

उदाहरण के तौर पर पृथ्वी यदि यह कह दे कि मेरा उपयोग मात्र कुछ लोग ही कर सकते हैं तो क्या होगा? इस बात का अंदाजा बिना किसी के समझाये ही लगाया जा सकता है किन्तु पृथ्वी की महानता देखिये, इतना शक्तिशाली होते हुए भी उसका भाव अमीर-गरीब, शक्तिशाली एवं कमजोर सभी के लिए एक जैसा ही है। इसी प्रकार हवा ने भी कभी यह नहीं कहा कि मेरा उपयोग सिर्फ अमीर कर सकते हैं, गरीबों के लिए मैं हवा नहीं प्रदान कर सकती तो क्या होगा? किन्तु हवा का इतना शक्तिशाली होने के बावजूद उसका नजरिया ब्रह्मांड के सभी प्राणियों के लिए एक जैसा है। इसे कहते हैं, शक्तिशाली होने के बावजूद अपने अस्तित्व को सिर्फ मानवता के साथ जोड़कर रखना। इसी प्रकार अग्नि, आकाश और जल जो सर्वशक्तिमान हैं, जिनके आगे कोई टिक नहीं सकता है, यदि ये अपनी ताकत का उपयोग अपनी इच्छानुसार करने लगें और यह कह दें कि उनका उपयोग सिर्फ वही लोग करें जिन्हें वे इजाजत दें तो पूरे विश्व में त्राहिमाम मच जायेगी।

यह सब लिखने का मेरा आशय मात्र इतना ही है कि वास्तव में जो ताकतवर है, उसका जीवन समाज में मानवता की रक्षा के लिए होना चाहिए। उसकी ताकत का प्रयोग प्राणि मात्र की भलाई एवं कल्याण के लिए होना चाहिए किन्तु आज शक्ति का उपयोग किस लिए हो रहा है, इसका उदाहरण कदम-कदम पर देखा जा सकता है। अभी कोरोना की दूसरी लहर में देखने को मिला कि किस प्रकार लोगों ने आक्सीजन और दवाइयों के लिए बीमार एवं परेशान लोगों के साथ किस स्तर तक जाकर छल किया। साइबर क्राइम वाले तो अनवरत लूट का नया-नया कीर्तिमान बनाते जा रहे हैं। राजनीति एवं शासन-प्रशासन में जिसकी चल रही है, वह अपनी खूब चला रहा है। बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे जो बिना किसी स्वार्थ के लाचार एवं बेबश लोगों की मदद कर रहे हैं।

यह भी पढ़ें : – विश्व में शांति और समस्याओं का समाधान केवल भारतीय दर्शन से ही संभव…

आज तो ऐसा वातावरण बना हुआ है कि ‘काम बनता है अपना तो भाड़ में जाये जनता’ मगर यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीराम चरित मानस में लिखा है कि ‘समरथ को नहिं दोष गुंसाईं’ यानी जो व्यक्ति अपने आप में समर्थ है, उसका कोई दोष नहीं है परंतु उसी राम चरित मानस में यह भी कदम-कदम पर वर्णित है कि आप की ताकत का उपयोग यदि जन कल्याण एवं सर्व सामान्य के लिए हो रहा है तो उसका सर्वत्र स्वागत है अन्यथा उस ताकत को कहीं भी न तो सम्मान मिल पाता है और न ही कहीं स्वीकार किया जाता है।

वर्तमान समय की बात की जाये तो जैन संत आचार्य विद्या सागर, उद्योगपति रतन टाटा, अजीम प्रेम जी एवं बिल गेट्स जैसे लोग मानवता के लिए निहायत ही सराहनीय कार्य कर रहे हैं।

अपनी सनातन संस्कृति के आधार पर यदि वर्तमान भारतीय राजनीति की बात की जाए तो जनसंघ के संस्थापक सदस्य एवं जनसंघ के दूसरे अध्यक्ष पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी का ‘अंत्योदय’ का सिद्धांत भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को रास्ता दिखाने का कार्य कर सकता है।

गौरतलब है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने भारतीय राजनीति में ‘अंत्योदय’ का सिद्धांत दिया था। इस सिद्धांत के अनुसार ‘अंत्योदय’ यानी समाज में अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति ही हमारे चिंतन एवं कार्य करने का केन्द्र होना चाहिए और सरकारें जो भी नीति बनायें, समाज में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति यानी ‘अंत्योदय’ को ही ध्यान में रखकर बनायें। कमोबेश, भारतीय जनता पार्टी आज भी उसी सिद्धांत पर चलते हुए उसी पर अमल कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में ‘सबका साथ-सबका विकास’ की बात कही थी, उसके बाद उसमें ‘सबका विश्वास’ भी जुड़ गया किन्तु प्रधानमंत्री जी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से उसमें एक शब्द और ‘सबका प्रयास’ भी जोड़ दिया। अब वह पूरा वाक्य इस प्रकार हो गया है कि ‘सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास और सबका प्रयास।‘
इस पूरे वाक्य का यदि विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट होता है कि इसमें सर्व सामान्य के हित की बात कही गई है। अब यह अलग बात है कि राजनीति में सर्वत्र इसका कितना उपयोग होता है या दुरुपयोग? किन्तु यदि नीयत पाक-साफ हो तो उसका कुछ न कुछ सकारात्मक परिणाम तो आ ही जाता है। वैसे भी हर दौर में अच्छे-बुरे लोग हुए हैं। आवश्यकता सिर्फ इस बात की है कि अच्छे लोग अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वाह अच्छी तरह कर दें तो उनको देखकर बुरे लोगों को भी अच्छी राह पर आना पड़ता है, इसलिए अच्छे लोगों को आगे आकर अपनी सकारात्मक एवं सक्रिय भूमिका का निर्वाह स्वयं तो करना ही होगा और ऐसा करने के लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित करना होगा। इसी मार्ग पर ही चलकर मानवता का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता नहीं है।

– सिम्मी जैन
( दिल्ली प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य- भाजपा, पूर्व चेयरपर्सन – समाज कल्याण बोर्ड- दिल्ली, पूर्व निगम पार्षद (द.दि.न.नि.) वार्ड सं. 55एस )

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