अजय चौहान || एक दौर था जब पतंग का उत्सव आते ही आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों की रौनक-सी आ जाती थी। हर शहर के मुहल्लों और गलियों में या दुकानों पर सैंकड़ों की संख्या में पतंगों की बिक्री होने लगती थी। पतंगों का व्यापार अच्छा खासा होने लगता था। घरों की छतों पर इक्का-दुक्का बच्चे ही नहीं बल्कि परिवार के परिवार पतंग उड़ाते देखे जा सकते थे।
लेकिन, वर्तमान दौर में मोबाइल, इंटरनेट और कम्प्यूटर तकनीक ने न सिर्फ पतंगबाजों को बल्कि पतंग उड़ाने की उस दिलचस्पी को भी एक दम से कम कर दिया है जिसके कारण अब पहले की अपेक्षा पतंग का बाजार और व्यापार दोनों ही ठंडा पड़ गया है। अब तो मात्र गिनती के बच्चे ही पतंग खरीदने के लिए दुकानों पर जाते हैं। और इसमें भी बड़ी बात तो ये कि उन बच्चों को भी ठीक से पतंग उड़ाने की जानकारी नहीं होती।
पतंगबाजी को लेकर इस बेरूखी के चलते दुकानदारों में भी अब इसके व्यवसाय को लेकर वो रुचि नहीं रह गई है।
कुछ वर्षों पहले तक भी देश के कई हिस्सों में पतंगबाजी के प्रति आकर्षण देखने को मिल जाता था। लेकिन, अब तो यह मात्र खानापूर्ति के तौर पर ही देखा जा रहा है। जबकि, देश के कई हिस्सों में और खास कर बड़े महानगरों में तो मार्च-अप्रैल के आते-आते आसमान में रंग-बिरंगे पतंगें उड़ती हुई नजर आने लग जाती थीं।
पतंगजाबी का दौर आते ही शहरों और गांव देहातों के मकानों की छतों पर और किसी भी ऊंचे स्थानों पर पतंग उड़ाते बच्चों के झुंड दिखाई देना आम बात हो जाती थी। लेकिन पिछले कुछ सालों से यह नजारा खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है। अब तो गिनती के बच्चे ही पतंग उड़ाते दिखाई देते हैं।
जहां एक ओर कंप्यूटर और मोबाइल पर खेले जाने वाले तमाम तरह के आकर्षक और लुभावने गेम्स के चलते बच्चों में पतंग उड़ाने के प्रति दिलचस्पी कम हो चुकी है वहीं जानकार मानते हैं कि इसके कारण से आजकल के बच्चों में सामाजिक मेलजोल और दोस्ती-यारी के प्रति लगाव कम होता जा रहा है।
तमाम शिक्षाविदों और जानकारों का मानना है कि कम्प्यूटर और मोबाइल पर बच्चों का लगातार गेम खेलना सेहत के लिए तो नुकसानदायक है ही साथ ही साथ सामाजिक मेलजोल और पास-पड़ोस में रहने वाले दोस्तों के लिए भी समय नहीं दे पा रहे हैं। जबकि बच्चों को आॅउटडोर गेम्स भी समय-समय पर खेलते रहना चाहिए जिससे की उनका मानसिक और शारीरिक विकासस हो सके।
पतंग व्यावसायियों का कहना है कि, टीवी, कंप्यूटर और मोबाइल के आने के बाद से यह व्यवसाय लगातार गिरता ही जा रहा है क्योंकि बच्चे अब छुट्टियों में पतंग उड़ाने की बजाय कंप्यूटर, टीवी और मोबाइल गेम्स में ज्यादा व्यस्त रहने लगे हैं।
बहरहाल, जो भी हो, कहा जाता है कि बाल मन को जो अच्छा लगता है वह वही करता है। भले ही उससे किसी का व्यवसाय डूब जाये या परवार चढ़ जाये, उन्हें इससे न तो कोई फर्क पड़ता है और ना ही वे इसके बारे में कोई जानकारी रखते हैं।
हालांकि, माता-पिता को इस विषय में जरूर सोचना चाहिए और ध्यान भी देना चाहिए कि कम्प्यूटर के सामने लगातार बैठे रहने से उनके बच्चे न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक तौर पर भी अपना ही नुकसान कर रहे हैं।