अजय सिंह चौहान || जहां एक ओर हिंदू धर्म के जिंदा मुर्दों को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए गाजियाबाद में डासना देवी मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद खुद ही मुर्दा बनने तक को तैयार हो चुके हैं वहीं केन्द्र सहीत देश के तमाम राज्यों में अपने दम पर शासन चलाने वाली भारतीय जनता पार्टी की वे सरकारें, जो हिंदू जनजागृति के दम पर वोट तो बटोरती रहती है लेकिन, वक्त आने पर सीधे-सीधे हिंदुओं की सहायता करने से डरती है और पल्ला झाड़ लेती है। क्योंकि हमारे सामने उदाहरण है इस बात का कि यति नरसिंहानंद सरस्वती जी की सहायता के लिए ना तो केन्द्र सरकार ने और ना ही किसी हिंदू राजनेता ने अब तक भी उनके पक्ष में कहीं से कोई बयानबाजी तक भी अब तक की है।
अब अगर हम हिंदू धर्म के अलावा अन्य किसी भी धर्म या समुदाय विशेष के सपोर्ट के लिए हर प्रकार से हमेशा तैयार रहने वाली अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों की बात करें तो आज इसी मुद्दे पर हमारे सामने सबसे बड़ा और सटीक उदाहरण खुद यति नरसिंहानंद सरस्वती जी की हत्या की सुपारी देने वाले दिल्ली के विधायक अमानतुल्लाह खान की आम आदमी पार्टी के रूप में हम सबके सामने है।
ये सच है कि हिंदू धर्म के मुर्दों को जिंदा करने के लिए डासना देवी मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद खुद ही मुर्दा बनने को तैयार हो चुके हैं। लेकिन, ये भी सच है कि जिस व्यक्ति ने उनको मारने की धमकी दी है खुद वही अमानतुल्लाह खान हिंदू वोटरों के दम पर ही जीत कर विधायक बना है।
संवैधानिक पद पर बैठे अमानतुल्लाह खान पर आरोप है कि उसने यति नरसिंहानंद को मारने की धमकी दी है। ये भी सच है कि उस धमकी के बाद अमानतुल्लाह खान के खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई करते हुए मुकदमा दर्ज किया था और जांच में शामिल होने के लिए भी कहा गया है।
दरअसल यहां हम ना तो अमानतुल्लाह खान के बारे में बात करना चाहते हैं और ना ही यति नरसिंहानंद के बारे में। क्योंकि ये मुद्दा इन दोनों ही शख्सियतों से कहीं ज्यादा बड़ा और घृणित मानसिकता वाला बन चुका है। घृणित मानसिकता चाहे हिंदुओं की हो या फिर अमानतुल्लाह खान की।
यह भी सच है कि कुछ दिनों बाद ये मुद्दा भी समाचार चैनलों और अखबारों से अपने आप ही गायब हो जायेगा और हम सब भूल जायेंगे। लेकिन, ध्यान रखने वाली बात तो ये है कि जैसे ही हम सब भूल जायेंगे, ठीक उसके कुछ दिनों बाद ही यति नरसिंहानंद सरस्वती की गर्दन काट कर उसी गेट पर लटकी मिल सकती है जिस पर लिखा है- इस मंदिर में मुसलामानों का प्रवेश वर्जित है। तब एक बार फिर से यही मुद्दा गरम होकर सोशल मीडिया में उबलने लगेगा, लेकिन, जो चीज जितनी ज्यादा उबलती है उतनी ही जल्दी भाप बन कर हवा भी हो जाती है।
यति नरसिंहानंद जी को मालूम है कि भविष्य में उनके साथ क्या हो सकता है लेकिन वे फिर भी निश्चिंत हैं। वे जानते हैं कि भले ही कुछ लोगों ने उन्हें हौंसला दे दिया हो। सोशल मीडिया में उनके पक्ष में कुछ न कुछ लिख दिया हो। जिन्हें कुछ लिखने-बोलने का वक्त नहीं मिला तो उन्होंने लाईक और शेयर करके अपना समर्थन दे दिया।
यति नरसिंहानंद सरस्वती के ज्यादातर कट्टर समर्थकों के पास इतना वक्त भी नहीं है कि इससे ज्यादा कुछ किया जा सके। यति नरसिंहानंद जी को मालूम है कि मरने से कहीं ज्यादा खतरा तो जिंदा रहने में है। तो फिर खतरा लेना ही ज्यादा अच्छा है। शायद भविष्य में देश और समाज के काम ही आ जाये।
दुनिया जानती है कि बुंद-बुंद से घड़ा भरता है। कमलेश तिवारी जैसे तमाम हिंदूओं के खून की एक-एक बूंद से अब तक ये घड़ा नहीं भर पाया है। यति नरसिंहानंद जी के खून की बूंदें भी इसमें काफी नहीं होंगी। सच तो ये है कि हजारों-लाखों बूंदें भी इस घड़े को नहीं भरतीं। तो फिर ये ऐसा कौन सा घड़ा है जो हिंदूओं के खून का इतना ज्यादा प्यासा है कि इसकी प्यास ही नहीं बूझ पा रही है।
पिछले सैकड़ों वर्षों से इसमें बूंदें तो क्या सीधे-सीधे धार बन कर केसरिया रंग समाता जा रहा है, लेकिन, घड़ा है कि भरता ही नहीं।
क्या इस घड़े में कोई ऐसा छेद है जो इसके मुंह से भी ज्यादा बड़ा है? क्योंकि मैं ऐसे ही एक दूसरे घड़े के बारे में भी पढ़ और सून चुका हूं। वो दूसरा घड़ा है यहूदियों के खून से भरा एक ऐसा घड़ा जो मात्र कुछ ही वर्षों में भर गया था। यहूदियों के उस घड़े में ना तो छेद था और ना ही वो कोई छोटा या साधारण घड़ा था। खास बात तो ये रही कि अवसर मिलते ही यहूदियों ने उस घड़े को ही फोड़ दिया, ताकि ना घड़ा रहे और ना ही उसमें खून की बूंदे डालने की जरूरत पड़े।
क्या भारतीयों के पास भी ऐसा कोई मंत्र या हथियार है जो यहूदियों की तरह इस केसरिया रंग के प्यासे घड़े को भी फोड़ सके, ताकि आगे से किसी दूसरे हिंदू को भी उसके लिए खून ना बहाना पड़े। शायद नहीं।
दरअसल, आज जिस अमानतुल्लाह खान को इस मुकाम तक पहुंचा कर उसके कद को इतना बड़ा किया गया है उसके लिए खुद सैक्यूलर हिंदू वोटर ही जिम्मेदार हैं। फिर चाहे वे किसी भी राजनैतिक दल से संबंध रखते हों या किसी भी क्षेत्र से। कल को अगर ऐसे सैक्यूलर हिंदू वोटर खुद अपने ही नेताओं के अत्याचारों से त्रस्त होकर धर्म बदल लेंगे तो इससे ना तो समस्याओं का समाधान होने वाला है और ना ही समाज का भला होगा।
ये भी सच है कि खुद को सैक्यूलर बताना भी आज अपना धर्म बताना ही हो गया है। यदि कोई पार्टी, कोई समुदाय या कोई मीडिया गु्रप कहता है कि वह सैक्यूलर है तो सीधी सी बात है कि उसने अपना धर्म और कर्म दोनों ही बता दिया है।
पिछले सैकड़ों वर्षों से जिस घड़े में केसरिया रंग की कुछ बूंदे नहीं बल्कि धार समाती जा रही है उसके लिए आज हम किसी एक क्षेत्र या जाति को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। सच है कि आज के दौर में उन लोगों की पहचान बहुत आसान हो गई है। लेकिन, फिर भी हम खुद उनके आगे चारा बन कर पसर जाते हैं और उन्हें अवसर दे देते हैं।