अजय सिंह चौहान || अगर आप राजस्थान में अजमेर या पुष्कर की ओर जा रहे हैं तो ‘‘मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर’’ (Manibandh Shaktipeeth Temple in Pushkar, Rajasthan) के दर्शनों के लिए भी अवश्य ही जाना चाहिए। राजस्थान के अजमेर जिले की पुष्कर तहसील (Pushkar tehsil of Ajmer district of Rajasthan) में स्थित ये सनातन धर्म के प्रमुख 52 शक्तिपीठों में से एक है। इसलिए इसका पौराणिक, धार्मिक, आध्यात्मिका के साथ सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक और पर्यटन के लिहाज से भी बहुत अधिक महत्व है।
अरावली पर्वत श्रंखलाओं (Aravali mountain range in Pushkar, Rajasthan) में से एक गायत्री पहाड़ी पर स्थापित माता सती का यह मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर (Manibandh Shaktipeeth Temple in Pushkar, Rajasthan) अजमेर शहर से करीब 12 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम और पुष्कर से दक्षिण दिशा की ओर स्थित है, जबकि इसी शक्तिस्थल से मात्र 5 से 6 किलोमीटर की दूरी पर पुष्कर धाम भी है जहां जगतपिता ब्रह्मा जी का एकमात्र विश्व प्रसिद्ध मंदिर है।
पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से पुष्कर संसार के सबसे प्राचीनतम नगरों में से एक है, इसलिए पुष्कर में हिंदू धर्म के अन्य कई सर्वोत्तम तीर्थ स्थान भी हैं इसलिए दुनियाभर से सनातन प्रेमी यहां आते रहते हैं। पौराणिक तथ्यों और महत्व के अनुसार संपूर्ण पुष्कर तीर्थ क्षेत्र और मणिबंध शक्ति पीठ और यहां के पवित्र पुष्कर सरोवर का उल्लेख ब्रह्म पुराण सहीत अन्य कई पुराणों और ग्रंथों में भी मिलता है, इसलिए इसके बारे में मान्यता है कि यह संपूर्ण स्थान ब्रह्मांड के निर्माण से जुड़ा है।
पुष्कर में स्थित मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर (Manibandh Shaktipeeth Temple in Pushkar, Rajasthan) का महत्व भी उसी पौराणिक घटना से जुड़ा हुआ है जिसके अनुसार भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कट कर माता सती की मृत देह के टुकड़े जहां-जहां भी गिरते गये वे सभी स्थान शक्तिपीठ होते गये और उन सभी स्थानों पर शक्तिपीठ मंदिरों की स्थापना होती गई। पुराणों में ऐसे स्थानों की संख्या 52 बताई जाती है। और ऐसे ही 52 शक्तिपीठों में से एक है अजमेर जिले की पुष्कर तहसील (Aravali mountain range in Pushkar, Rajasthan) में स्थित मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर। पौराणिक महत्व के अनुसार इस मंदिर को शक्तिपीठों में 27वां स्थान प्राप्त है।
मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर के बारे में मान्यता है कि माता सती की कलाई में पहने हुए दोनों ही कंगन इस स्थान पर गिरे थे। जबकि, कुछ लोगों की मान्यता है कि यहां माता के हाथ की कलाई का भाग और कंगन भी गिरे थे। और क्योंकि देव भाषा संस्कृत में हाथ की कलाई को मणिबंद कहा जाता है, इसीलिए इसे ‘‘मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर’’ के नाम से पहचाना जाता है। हालांकि, कुछ लोग इसे चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर और ‘‘गायत्री’’ शक्तिपीठ मंदिर के नाम से भी पहचानते हैं। लेकिन, प्रमुख रूप से ये स्थान मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर के नाम से ही प्रसिद्ध है।
कुछ लोगों का कहना है कि आधुनिक इतिहास के दौर में यहां माता गायत्री की प्रतिमा को भी स्थापित कर दिया गया था जिसके बाद से इस मंदिर के गर्भगृह में दो प्रतिमाएं होने के बाद इसको इन दोनों ही नामों से पहचाना जाने लगा। लेकिन, अधिकतर लोगों का मानना है कि यहां माता सती की दोनों कलाईयां गिरी थीं इसलिए अनादिकाल से ही इस स्थान पर माता की दो प्रतिमाएं स्थापित हैं। जिनमें से एक प्रतिमा को ‘मणिबंध’ और दूसरी प्रतिमा को ‘गायत्री’ के नाम से पुकारा जाता है।
विशेषकर गायत्री मंत्र साधना और ध्यान योग के लिए ये मंदिर यहां आने वाले दर्शनार्थियों को, आध्यात्मिक अनुभूति भी कराता है। भक्तों का मानना है कि यहां गायत्री मंत्र की साधना करने से घरेलू समस्याओं से छुटकारा मिलने के साथ ही आत्मिक शांति का भी आभास होता है।
आधुनिक इतिहास के दौर में विदेशी आक्रमणों के दौरान अन्य धार्मिक स्थानों की भांति यहां भी कुछ प्रमुख मंदिरों के साथ-साथ अन्य कई मंदिरों में लूटपाट के बाद उनको नष्ट कर दिया गया था। हालांकि बाद में उनका पुननिर्माण और जिर्णोद्धार भी होता रहा। लेकिन वर्तमान में तो यहां मात्र एक छोटा सा मंदिर ही बना हुआ नजर आता है।
माता मणिबंध का ये शक्तिपीठ मंदिर अरावली पर्वत श्रृंखलाओं (Aravali mountain range in Pushkar, Rajasthan) में से एक ‘‘गायत्री पर्वत’’ की तलहटी में स्थापित है। मंदिर तक सड़क मार्ग से बहुत ही आसानी से पहुंचा जा सकता है। देखने में यहां कोई विशाल या भव्य आकार का मंदिर नहीं है बल्कि, एक छोटा और बहुत ही साधारण-सा मंदिर बना हुआ है। और इसकी संरचना में अन्य कई देवी-देवताओं की मूर्तियों के भी दर्शन हो जाते हैं। फिलहाल इस मंदिर के विस्तार और अन्य प्रकार के निर्माणकार्य चल रहे हैं जो बहुत ही जल्द पूरे होने वाले हैं।
माता मणिबंध के इस शक्तिपीठ मंदिर (Manibandh Shaktipeeth Temple in Pushkar, Rajasthan) के साथ आधुनिक इतिहास में हमें एक बहुत ही बड़ा दुर्भाग्य देखने को मिल रहा है, जिसमें सनातन के सबसे पवित्र स्थानों में से एक होने के बाद भी यहां आम श्रद्धालुओं की संख्या बहुत ही कम देखी जा रही है। और इसी के चलते यहां मंदिर की दुर्दशा भी दयनीय स्थिति में दिख रही है। इसके पीछे के कुछ सामान्य कारणों को देखें तो पता चलता है कि यहां तक पहुंचने के लिए प्रशासनिक स्तर पर कोई विशेष व्यवस्था है ही नहीं।
दरअसल, मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर आम भीड़भाड़ और शहर से दूर आरावली पर्वत श्रृंखला की एक शांत वातावरण वाली पहाड़ी की तलहटी में मौजूद है जहां सिर्फ दिन के समय ही जाना-आना किया जा सकता है। ऐसे में यहां बहुत ही कम दर्शनार्थी आना-जाना कर पाते हैं। स्थानीय लोगों को तो यहां बहुत कम देखा जा सकता है, जबकि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं को ही यहां अधिकतर देखा जाता है।
मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर के प्रांगण में प्रसाद के अलावा कहीं कोई विशेष दुकानें देखने को नहीं मिलतीं। ऐसे में मंदिर तक आने-जाने के साधनों की बात करें तो उसके लिए भी श्रद्धालुओं को या तो यहां स्वयं के वाहन से आना-जाना करना होगा या फिर ऑटो और टेक्सी जैसी सुविधा लेकर ही यहां आना होगा।
मणिबंध शक्तिपीठ (पुष्कर) में अन्य दर्शनीय स्थान –
मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर अजमेर (Pushkar tehsil of Ajmer district of Rajasthan) शहर से करीब 11 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम दिशा में अरावली पर्वत श्रृंखला की एक पहाड़ी पर स्थित है, जबकि इस शक्तिपीठ मंदिर से मात्र 5 से 6 किलोमीटर की दूरी पर ही विश्व प्रसिद्ध पुष्कर धाम भी है जहां ब्रह्माजी का एक मात्र विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। इसके अलावा यहां अजमेर और इसके आस-पास के कुछ अन्य धार्मिक एवं पर्यटन स्थानों में रंगजी मंदिर, आत्मेश्वर मंदिर, ऐतिहासिक मोती महल और पवित्र पुष्कर झील, नौसर माता मंदिर, रामगंज, चांदबावड़ी का काली माता मंदिर, अंबा माता मंदिर और आशापुरा माता मंदिर आदि कुछ प्रमुख स्थान भी हैं।
एक मंदिर जिसे बचाने के लिए रातोंरात मिट्टी से ढंक दिया था
मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर (Manibandh Shaktipeeth Temple in Pushkar, Rajasthan) से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर अरावली पर्वत श्रृंखलाओं की ही एक अन्य पहाड़ी है जिसे सावित्री चोटी कहा जाता है उस पर्वत पर भी एक प्राचीन मंदिर है जिसे ‘सावित्री माता मंदिर’ के नाम से पहचाना जाता है। इस मंदिर में देवी सावित्री की प्रतिमा के दर्शन होते हैं। मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर के प्रांगण से उस मंदिर को देखा जा सकता है।
मणिबंध शक्तिपीठ (पुष्कर) में पर्व/उत्सव –
चैत्र और शरद नवरात्र के अवसर पर यहां अन्य कई समारोह और अनुष्ठान किये जाते हैं। इसके अलावा यहां शिवरात्रि का उत्सव भी धुमधाम से मनाया जाता है।
मणिबंध शक्तिपीठ (पुष्कर) में भाषा –
पुष्कर जी में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में हिंदी और राजस्थानी का बोलबाला है, इसलिए यहां दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं को भाषा से जुड़ी कोई परेशानी नहीं होती।
मणिबंध शक्तिपीठ (पुष्कर) का सही मौसम –
अगर आप भी अपने परिवार के साथ मणिबंध शक्तिपीठ के साथ पुष्कर की यात्रा पर जाना चाहते हैं तो यहां जाने के लिए सबसे अच्छा मौसम सितंबर-अक्टूबर से लेकर मार्च-अप्रैल के बीच का हो सकता है।
मणिबंध शक्तिपीठ (पुष्कर) में कहां ठहरें –
मणिबंध शक्तिपीठ के दर्शनों के लिए जाने से पहले यहां इस बात का भी ध्यान रखें कि माता के इस मंदिर के आस-पास रात को ठहरने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए शहर से बाहर होने के कारण दिन के समय ही यहां जाना पसंद किया जाता है। लेकिन, पुष्कर शहर में बजट के अनुसार अनेकों प्रकार के छोटे-बड़े होटल, गेस्ट हाउस और और धर्मशालाएं आदि मिल जाते हैं।
मणिबंध शक्तिपीठ (पुष्कर) तक कैसे पहुंचे –
मणिबंध शक्तिपीठ (Manibandh Shaktipeeth Temple in Pushkar, Rajasthan) के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन अजमेर शहर में है जो मंदिर से करीब 16 किलोमीटर दूर है। रेल द्वारा आने वाले यात्रियों के लिए यहां पुष्कर तक कोई सीधी रेलवे कनेक्टिविटी नहीं है, इसलिए यहां के सबसे नजदीकी अजमेर स्टेशन के लिए ही जाना होता है। अजमेर रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी लेकर आसानी से पुष्कर पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा यह स्थान सड़क मार्ग द्वारा भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। हालांकि हवाई जहाज से आने वाले यात्रियों के लिए यहां का निकटतम हवाई अड्डा पुष्कर तहसील से करीब 150 किलोमीटर दूर जयपुर में है, जहां से सड़क के रास्ते ही यहां तक आना होता है।