
अजय सिंह चौहान | इस दुनिया में और खासकर एशिया महाद्वीप में तो शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने गेंदे का पुष्प नहीं देखा होगा। सनातन वैदिक धर्म में अनादिकाल से चली आ रही समस्त प्रकार की समृद्ध परंपराओं में प्रकृति के सभी तत्वों का किसी न किसी रूप में महत्त्व जुड़ा हुआ है, और उन्हीं में से गेंदे का पुष्प भी एक है। गेंदे के पुष्प को संस्कृत में “पीतपुष्प”, “स्थूलपुष्प” अथवा “झण्डू” भी कहा जाता है। इसीलिए गेंदा सनातन वैदिक हिंदू धर्म में हर एक प्रकार की पूजा-पाठ, उत्सव, त्योहारों और अनुष्ठानों आदि का अभिन्न अंग बना हुआ है। देवी-देवताओं को अर्पित करने से लेकर घरों को सजाने तक में इसका सबसे अधिक उपयोग होता है, इसीलिए गेंदा हमारे जीवन के उत्सव और पवित्रता का प्रतीक है। और यदि कोई गेंदे का उपयोग अपनी पूजा-पाठ में नहीं करता है तो समझ लीजिये की वह मत और पंथ सनातनधर्मी नहीं है। इसीलिए गेंदे से जुडी इस जानकारी के माध्यम से हम इसके सनातन धर्म में महत्व के साथ इसकी अन्य उपयोगिताओं को भी समझेंगे, साथ ही इसके वैदिक और पौराणिक साक्ष्यों पर भी प्रकाश डालेंगे।
गेंदे का सनातन धर्म में महत्व –
सनातन धर्म में कुछ फूलों को देवी-देवताओं के प्रति सबसे अधिक भक्ति और समर्पण का माध्यम माना जाता है तो कुछ को उनके गुणों और प्रकृति के कारण निषेध। लेकिन, गेंदे का फूल विशेष रूप से हर एक पूजा-पाठ में सबसे और हर एक देवी-देवता के लिए शुभ माना जाता है क्योंकि इसका सात्विक रंग सूर्य देव की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। दिवाली, दशहरा, नवरात्रि और गणेश उत्सव में सबसे अधिक गेंदे की मालाओं से ही मंडप सजाए जाते हैं, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता को आमंत्रित करते हैं। ज्ञानीजन का मानना है की यदि गेंदे का पुष्प किसी भी शुभ काम या पूजा में न हो वह शुभ कार्य अधुरा ही होता है, क्योंकि यह फूल गणेश जी, को बहुत प्रिय है। इसके अलावा माता लक्ष्मी और विष्णु जी को भी यह बहुत प्रिय है ईसलिए सनातन वैदिक धर्म में इसकी सबसे अधिक मांग होती है। पुराणों में गेंदे के पुष्प को आशावाद, समृद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक बताया गया है।
देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा में विशेष रूप से गेंदा चढ़ाया जाता है। इसके पीछे की मान्यता है कि गेंदे के फूल से देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है, साथ ही गेंदा हमारी संतान से जुड़ी परेशानियां भी दूर करता है। गेंदे के पुष्प हनुमान जी को भी बहुत प्रिय हैं; इसलिए उन्हें सबसे अधिक गेंदा ही चढ़ाया जाता है।
गेंदे को पूजा-पाठ के अलावा सौभाग्य और सुरक्षा का प्रतीक भी माना जाता है। जिस प्रकार आजकल गुलाब के फुल से प्रेम का इजहार किया जाता है उसी प्रकार मध्य युग से पूर्व जब भात में गुलाब का आगमन नहीं हो पाया था तब तक, गेंदे का फूल ही प्रेम का इजहार करने का माध्यम हुआ करता था।
धार्मिक अनुष्ठानों में गेंदे का उपयोग मात्र सजावटी ही नहीं है; बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। इसके पंखुड़ियां कीटाणुनाशक गुण रखती हैं, जो पूजा स्थल को शुद्ध रखती हैं। विवाह आदि समारोह में यह खुशी और समृद्धि का संदेश देता है, जबकि अंतिम संस्कारों में भी यह शुद्धता और नई शुरुआत का प्रतीक बनकर मृत्यु के चक्र को दर्शाता है। इसका अभिप्राय है कि सनातन धर्म की दृष्टि में गेंदा जीवन में सदा दिव्य प्रकाश के प्रतिक के तौर पर सहयोगी की भूमिका में रहता है और धर्म के साथ संस्कारों को भी याद दिलाता है, जो हमें मोक्ष की ओर प्रेरित करता है।
गेंदे के वैदिक साक्ष्य –
अति प्राचीन और वैदिक काल में भी फूलों को देवताओं के प्रति अर्पण का महत्वपूर्ण साधन माना जाता था। ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद में विभिन्न पुष्पों का उल्लेख मिलता है, जिनमें हमें उनकी दिव्यता, नवीनीकरण और आध्यात्मिक महत्व के प्रतीक के तौर पर जानने का अवसर मिलता है। हालांकि आधुनिक काल के इतिहासकारों ने गेंदे को वैदिक ग्रंथों में नकार दिया है, और इसको मूल रूप से मैक्सिकन पौधा बताया है और लगभग 16वीं शताब्दी में इसके भारत में आने की बात कही है, लेकिन कैलेंडुला ऑफिसिनैलिस यानी पॉट मैरिगोल्ड जैसे पौधे या पुष्प का भारत में प्राचीन काल से जोड़कर उल्लेख किया है, जिसे संस्कृत में “झण्डू” कहा जाता है, और जो प्राचीन भारतीय परंपराओं में भी मौजूद था। जबकि यह नहीं भूलना चाहिए कि बोद्ध काल में ऐसी कई सारी मिलावटें हमारे मूल ग्रंथों में की गई थीं जिनसे हमारे ग्रंथों और उनमें दर्ज जानकारियों को एक षड्यंत्र के तहत भारत के बाहर का बताया गया है।
वेदों में जिन उज्ज्वल और सुनहरे फूलों को सूर्य देव से जोड़ा गया है, और जो आशावाद और प्रचुरता का प्रतीक हैं वो गेंदा ही है। उदाहरणस्वरूप, अथर्ववेद में इन फूलों का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और उत्सवों में वर्णित है, जहां वे नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने वाले माने जाते हैं। इसके अलावा गेंदे का फूल वैदिक परंपरा में औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता था, जैसा कि कई आयुर्वेदिक संदर्भों में मिलता है। यह सनातन धर्म की उस परंपरागत निरंतरता को दर्शाता है, जहां नए तत्वों को प्राचीन मान्यताओं में समाहित किया जाता है।
गेंदे के पौराणिक साक्ष्य –
लगभग सभी पौराणिक ग्रंथों में पुष्पों का महत्व और भी स्पष्ट है। महाभारत के अनुशासन पर्व के अध्याय 101, श्लोक 19-21 में कहा गया है कि “पुष्प मन को प्रसन्न करते हैं और समृद्धि प्रदान करते हैं, इसलिए पुष्प को ‘सुमन’ भी कहा गया है।” इसके अलावा गेंदे को भगवान् श्रीकृष्ण से भी विशेष तौर पर जोड़ा गया है। विष्णु पुराण और अन्य पुराणों में फूलों को सृष्टि, संरक्षण और विनाश के चक्र से जोड़कर बताया गया है, जिसमें गेंदा शुभता और दिव्य कृपा का माध्यम बनता है।
गेंदे का सबसे प्रमुख और सबसे अच्छा उदाहरण और साक्ष्य हमें गणेश पुराण और अन्य पौराणिक कथाओं में मिलाता है जहां गणेश जी को गेंदा अर्पित करने को बताया जाता है, जो बुद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक है। हालाँकि 14वीं शताब्दी के नरहरि पंडित द्वारा रचित “राजनिघंटु” नामक एक ग्रंथ में जिस “झण्डू” नाम के पुष्प का उल्लेख मिलता है उसको गेंदा ही समझा गया है। और उसके अनुसार आयुर्वेदिक संदर्भों में इस पुष्प का वर्णन कड़वा और कसैला बताया जा रहा है। हालांकि यह वैदिक काल से बहुत बाद का है, लेकिन यह सनातन धर्म की निरंतर विकसित आयुर्वेदिक परंपरा को भी दर्शाता है। साथ ही पुराणों में सूर्य देव से जुड़े फूलों का महत्व गेंदे की वर्तमान भूमिका को मजबूत करता है।
गेंदे के तमाम तथ्यों को जानने के बाद हम यह कह सकते हैं कि इसका पुष्प सनातन धर्म में केवल एक पुष्प ही नहीं, बल्कि जीवन में दिव्य और सात्विक ज्ञान, विज्ञान और महत्त्व के प्रकाश का दर्पण भी है। वैदिक और पौराणिक साक्ष्यों से स्पष्ट है कि फूलों के द्वारा इश्वर की पूजा-आराधना प्राचीन है, और गेंदा इसमें समाहित होकर आधुनिक हिंदू प्रथाओं का हिस्सा बन गया है। यह हमें याद दिलाता है कि सनातन धर्म प्रकृति से जुड़ा है, जहां हर तत्व भक्ति का माध्यम बन सकता है।
गेंदे के कुछ वैज्ञानिक तथ्य –
गेंदे को आधुनिक वैज्ञानिक नाम Tagetes erecta और Tagetes patula दिया गया है जिसे आमतौर पर मैरिगोल्ड (Marigold) कहा जाता है। अपनी सुंदरता, सुगंध और औषधीय गुणों के कारण ही विश्व प्रसिद्द, जबकि इसके वैज्ञानिक गुण इसे पर्यावरण, कृषि, और स्वास्थ्य के लिए खास बनाते हैं।
प्राकृतिक कीटनाशक गुण –
वैज्ञानिक द्रष्टि से गेंदे के फूल में थायोफिन्स (Thiophenes) जैसे रासायनिक गुण पाए जाते हैं, जो एक प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में काम करते हैं। गेंदे को खेतों में टमाटर, आलू सहित अन्य कई फसलों के साथ या फिर खेतों की मेड़ों पर भी लगाया जाता है ताकि इसके कारण फसलों को कीटों से बचाया जा सके। क्योंकि गेंदे की जड़ें और पत्तियां एक खास तरह की गंध छोड़ती हैं, जो मिट्टी में मौजूद नेमाटोड्स (Nematodes) जैसे सूक्ष्म कीटों को भगाने में मदद करती हैं। इसीलिए, इसे सह-रोपण (Companion Planting) की तकनीक भी कहा जाता है। इसी तरह गेंदे के पौधे की जड़ों से निकलने वाले अल्फा-टेर्थिनाइल (Alpha-terthienyl) यौगिक नेमाटोड्स और अन्य हानिकारक कीटों के लिए जितने विषैले होते हैं, उतने ही मनुष्यों के लिए सुरक्षित भी हैं।
गेंदे में एंटीऑक्सिडेंट्स, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं और इसकी पंखुड़ियों में ल्यूटिन (Lutein) और ज़ीएक्सैन्थिन (Zeaxanthin) जैसे यौगिक भी पाए जाते हैं, जो आंखों की सेहत के लिए लाभकारी हैं। इसीलिए आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा में गेंदे का फूल सदियों से इस्तेमाल होता रहा है। इसके अलावा गेंदे का अर्क त्वचा की जलन, घाव, और सूजन को कम करने में भी मदद करता है। इसी तरह गेंदे की चाय पाचन संबंधी समस्याओं जैसे अपच और पेट दर्द में राहत देती है।
पर्यावरणीय शुद्धिकरण में गेंदा –
पर्यावरण को शुद्ध करने में गेंदे का पोधा और इसके पुष्प भी मदद करते हैं। असल में गेंदे के फूल की गंध और इसके रासायनिक यौगिक हवा में मौजूद कुछ हानिकारक सूक्ष्मजीवों को कम करते रहते हैं। यही कारण है कि इसे पूजा स्थलों और मंदिरों में सजावट के लिए सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। इसका वैज्ञानिक आधार देखें तो गेंदे में मौजूद वाष्पशील तेल (Volatile Oils) और फाइटोकेमिकल्स हवा में बैक्टीरिया और फंगस की वृद्धि को रोकते हैं। इसके अलावा, यह मच्छरों और अन्य कीटों को भी भगाता है।
गेंदे में रंगों का रहस्य –
गेंदे की पंखुड़ियों से निकलने वाला प्राकृतिक रंग खाद्य पदार्थों, कपड़ों और सौंदर्य प्रसाधनों में प्राकृतिक रंगाई या डाई के रूप में इस्तेमाल होता है। इसका रंग ल्यूटिन से आता है, जो एक शक्तिशाली कैरेटेनॉइड है। ल्यूटिन न केवल इसको रंग प्रदान करता है, बल्कि खाद्य उद्योग में भी इसे प्राकृतिक रंगद्रव्य (Food Colorant) के रूप में भी उपयोग किया जाता है, जैसे मक्खन और पनीर में। यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित और रासायनिक रंगों का बेहतर विकल्प है।
पर्यावरणीय परिस्थितियों और देखभाल के अनुसार गेंदे के पौधे का जीवनकाल लगभग 3 से 4 महीनों तक का ही देखा जाता है। गेंदे की कई प्रजातियां हैं जो गर्म और शुष्क जलवायु में आसानी से पनपती हैं, साथ ही इसकी जड़ें मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखती हैं। गेंदे का फूल सूर्य की रोशनी के प्रति संवेदनशील होता है और दिन में खिलता है, जो इसे सूर्य देव का प्रतीक बनाता है। इसीलिए इसका रंग सूर्य की ऊर्जा और जीवन शक्ति को दर्शाता है।
गेंदा केवल एक सुंदर पुष्प नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक रहस्य छिपे हैं। यह प्राकृतिक कीटनाशक, औषधीय गुणों का भंडार, पर्यावरण शुद्धिकर, और प्राकृतिक रंगद्रव्य का स्रोत है। इसके चमकीले रंग और सूर्य से जुड़ाव इसे सनातन धर्म में शुभ और आध्यात्मिक बनाते हैं, जबकि इसके वैज्ञानिक गुण इसे आधुनिक दुनिया में भी प्रासंगिक बनाए रखते हैं। गेंदे का प्रकृति, ईश्वर और मनुष्य के स्वस्थ और संस्कृति के साथ जो अनूठा संगम है वही इसको विशेष महत्वपूर्ण बनाता है।