मानव के श्वास लेने की दर एक मिनट में 12-16 मानी जाती है। एक बार को हम इसे 15 मान लेते हैं। 15 के हिसाब से मानव चार सेंकेंड में एक बार सांस लेता है और इसी हिसाब से प्रतिदिन 21600 बार सांस लेता है। अगर मानव लंबा जीवन जीने की आकांक्षा रखता है तो इन सांसों को कम उपयोग कर, बचाकर अपनी लंबी उम्र पाने की इच्छा को उसी हद तक, जिस हद तक हमने प्रकृतिसत्ता द्वारा निर्धारित सांसों में बचत कर संचय किया है। अब प्रश्न यह उठता है कि उन सांसों को किस प्रकार बचाया एवं उपयोग में लाया जाये और प्राचीन काल में संतों, ऋषि-मुनियों एवं महात्माओं की लंबी उम्र जीने के रहस्य क्या हैं?
मान लो हम किन्हीं भी तरीकों से 5 प्रतिशत सांसों का अपने जीवन में बचत कर, संचय कर सकते हैं तो यह समझ लेना चाहिए कि इसी अनुपात के साथ-साथ आपकी उम्र भी बढ़ सकती है और तो और, जीवन काल में ज्योतिष गणना के कारण आने वाले आकस्मिक मार्केश योगों को भी टाला जा सकता है जिससे लंबी आयु होने में लाभ मिलता है। अब आप यह कहेंगे कि सांसों को कैसे बचाया जाये, क्या-क्या तरीके संभव हैं, उनकी हम चर्चा करेंगे।
विधिवत ऊं का उच्चारण –
¬ ऊच्चारण के लिए सांस को अंदर खींचकर उदर में ले जाकर ‘¬’ से शुरू करने की आवाज करते हुए, आवाज के साथ सांस बाहर निकालते हुए और फिर ‘म’ की आवाज के साथ मिलाकर जितने लंबे समय तक कर सकते हैं, उच्चारण करना चाहिए। अभ्यास से यह उच्चारण एक सांस में 30 सेंकेंड तक खींचा जा सकता है यानी हमने लगभग एक ‘ऊं’ उच्चारण से 7 सांसों की बचत की, इन्हें भी 5 की संख्या मान ली जाये। अगर हम दिन में 10 बार ‘ऊं’ उच्चारण करते हैं तो 50 सांसों की बचत कर पाते हैं।
शंख बजाकर –
शंख को बजाने की विधि में जब हम नाभि में सांस भरकर एक सांस में ही शंख बजाते हैं तो हमारी सांसों की बचत भी होती है और श्वास की दृष्टि से पूरे शरीर की मूल तीन नाड़ियां (इंगला, पिंगला और सुषुम्ना), 10 सहयोगी नाड़ियां व 72 करोड़, 72 लाख, 10 हजार 210 सूक्ष्म नाड़ियां शुद्ध हो जाती हैं। हम शंख बजाते समय अंदर ही अंदर ‘ऊं’ का भी उच्चारण कर सकते हैं। मान लीजिये, हमने साधारणतः 20-30 सेंकेंड के लिए एक बार शंख बजाने से हमने 5 सांसों की बचत की और हमने पूरे दिन भर में 11 बार बजाया तो 50-55 सांसों की बचत होगी। शंख बजाने से सांसों की बचत के साथ-साथ फेफड़े मजबूत होना, रक्तचाप नियंत्रित होना व थायराइड पर अंकुश लगाना, वायुमंडल शुद्ध होना जैसे कार्य भी साथ-साथ हो जाते हैं। शायद, इसीलिए सनातन संस्कृति में पूजा विधान इत्यादि में शंख बजाने की परंपरा प्रचलित है।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम –
यौगिक क्रिया में सर्वप्रथम जो पाठ पढ़ाया जाता है, वह है अनुलोम-विलोम प्राणयाम या जिसे नाड़ी शोधक प्राणायाम भी कहते हैं। जिसके अनुसार अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ होता है उल्टा यानी दायीं नाक के छिद्र को अनुलोम कहा जाता है और बायें छिद्र को विलोम कहा जाता है। इसका नियमित अभ्यास करते रहने से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है एवं मानव स्वच्छ, स्वस्थ व निरोगी बना रहता है। अनुलोम -विलोम को करने के लिए पद्मासन, सिद्धासन या सुविधानुसार सुखासन में बैठकर सर्वप्रथम दाहिने हाथ के अंगूठे से नाक के दायें छिद्र को बंद कर बायीं नाक के छिद्र से सांस खींचकर 4 सेकेंड के लिए सांस खींचें और फिर बायीं नासिका को अंगूठे को बगल वाली दो अंगुलियों से बंद कर दें। 16 सेकेंड तक सांस को रोककर रखें और उसके बाद दाहिनी नासिका से अंगूठे हटाकर 8 सेंकेड तक सांस छोड़ते रहें। अगली बार यही क्रिया 4 सेकेंड के लिए दाहिनी से शुरू करें। वैसे ही 16 सेंकेड के लिए रोकें और फिर बायीं नासिका से 8 सेंकेड तक छोड़ दें। इसी प्रकार अनुलोम-विलोम की क्रिया पूरी होती है जिससे लगभग एक मिनट का समय लगा और हमने 6 सांसों में पूरा किया। अभिप्राय यह है कि 9 सांस प्रति मिनट प्रति एक अनुलोम-विलोम में हमने बचत की। अगर हम 15 अनुलोम-विलोम प्रतिदिन एक साथ करें तो हम पायेंगे 100 सांसों की बचत कर पाये। अनुलोम-विलोम करने से फेफड़ों के साथ-साथ हृदय, मासपेशियां, पाचन तंत्र के साथ-साथ तनाच एवं चिंता कम होकर स्वास्थ्य लाभ मिलता रहता हैै।
सोहम् का पाठ –
सोहम् क्रिया कुछ आध्यात्मिक संतों के द्वारा कराई जाने वाली ध्यान केंद्रों के लिए एक क्रिया है जिसमें ओउम् के उच्चारण के हिसाब से आंख बंदकर सुविधानुसार सोहम् का उच्चारण किया जाता है और उतना ही लाभ मिलता है यानी 11 बरी सोहम् का अभ्यास कर 50 सांसों की बचत कर सकते हैं।
अर्हं ध्यान योग –
यह क्रिया जैन समाज के अनुयायियों में बहुत ही चर्चित और प्रचलित पद्धति है जिसमें ‘ऊं अर्हं नमः’ जैसे मंत्र को लंबे से लंबा खींचकर योग मुद्रा में बैठकर, आंखें बंद कर नाभि से लेकर कपाल चक्र तक किया जा जाता है। लगभग एक मिनट में 3-4 सांसों के द्वारा एक बार ऊच्चारण किया जाता है और उसके साथ-साथ 5 लाइनों का 35 अक्षरों का महामंत्र 5-5 बार किया जाता है यानी कुल मिलाकर एक बार के ध्यान में 5-7 मिनट का समय लगता है और लगभग 50 से अधिक सांसों की बचत हो जाती है। इसके अलावा भी और अन्य प्रकार की मुद्रायें और योग अर्हं ध्यान योग क्रिया में सम्मिलित हैं जिनकी हम चर्चा नहीं करेंगे मगर इनमें भी सांसों को नियंत्रित कर बचत की जाती है। आध्यात्मिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी है।
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ध्यान के माध्यम से –
ध्यान योग की वह क्रिया है जिसमें सांसों को नियंत्रित कर, उन्हें साधकर, एकाग्र कर स्वयं को पहचानने का प्रयोजन किया जाता है। शुरुआत में तो किसी बिंदु पर एकाग्र कर बाहरी जगत से अनभिज्ञ रहने का प्रयास किया जाता है और थोड़े समय के बाद मानव अपने अंदर झांककर स्वयं में होने वाली क्रियाओं को देखकर अपने में ही शून्य सा हो जाता है। तत्पश्चात अपने चक्रों को जागृत करते हुए बाहरी जगत से संपर्क बनाने का प्रयास करता है। ऐसा करने से सांसों की बचत के साथ-साथ शांत और संयमित जीवन की प्रेरणा पाकर मानव चरित्र में सत्य, सरलता और प्रेम झलकने लगता है। इस प्रकार की क्रियायें लगभग ऊच्च कोटि के संत-महात्मा, ऋषि-मुनि इत्यादि करते हैं और गृहस्थ जीवन में तो लोग अपने आप में सुधार मात्र लाने का प्रयास करते हैं और सांसों को नियंत्रण द्वारा बचत करते हैं।
मौन क्रिया द्वारा –
मौन क्रिया को अंगीकार करने से पहले हमें यह समझ लेना चाहिए कि शरीर को दिनभर में 1800 से लेकर 2800 तक कैलोरी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस ऊर्जा में से प्रति घंटा 43 कैलोरी से 57 कैलोरी प्रति घंटा मानव की बोलने में खर्च होती है यानी यह सोचा जाये कि आम बातचीत में टेलीफोन, चर्चाओं, भाषण इत्यादि में हम 24 घंटे में 5 घंटे भी बोलते हैं तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम लगभग 250 कैलोरी बोलने में खर्च करते हैं। उसके साथ-साथ क्रोध, उत्तेजना इत्यादि जैसे कार्यों में ऊर्जा के साथ-साथ सांसें भी अधिक खर्च होती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर हम एक सप्ताह में एक दिन मौन उपवास रखकर अपने को संयमित सांसों और ऊर्जा की बचत के साथ-साथ शांत, चिंतन-मनन जैसे गुणों में वृद्धि कर अपने व्यक्तित्व को सुधार सकते हैं और कुछ हद तक सांसों में भी बचत कर सकते हैं।
सुर साधना –
हम जब किसी सुर साधक को देखते और सुनते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि हम उसे देखते और सुनते रहें। ऐसा इसलिए होता है कि प्रकृतिसत्ता द्वारा मानव को बालेने की क्षमता प्रदान की हुई है उनमें यही सात सुर होते हैं जो मानव शरीर की दिल-दिमाग, मन और सांस के साथ लयबद्ध हो जाते हैं, अपनी छाप छोड़ते हैं इसलिए कोई सुरों का ज्ञान न रखने वाला व्यक्ति भी यह बता सकता है या टिप्पणी कर देता है कि अमूल गायक अच्छा है या बहुत अच्छा है।
यह सब बताने का तात्पर्य केवल एक है कि जब ‘सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी सा’ सुरों का रियाज कर साधा जाता है तो एक-एक सुर को एक-एक सांस में लंबे समय तक खींचकर साधा जाता है जिससे न केवल आवाज प्रिय होती है बल्कि उसके साथ-साथ सांसों की बचत भी बहुत होती है। हालांकि, इस विषय पर कि क्या गाायकों की उम्र सामान्य उम्र्र से अधिक होती है या नहीं ? यह शोध का विषय है। इस प्रकार हम देखते हैं और कहा जा सकता है कि सांसों की बचत करने में सुर साधना भी बहुत सहायक होती है।
अंत में, इन सब उपरोक्त पद्धतियों के अलावा भी विषय यहीं पर आ जाता है कि हम अधिक से अधिक लंबा व स्वस्थ जीवन जीने के लिए अपनी सांसों की बचत करने का प्रयास करें, पद्धति चाहे कोई भी हो।
– सिम्मी जैन ( दिल्ली प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य- भाजपा, पूर्व चेयरपर्सन – समाज कल्याण बोर्ड- दिल्ली, पूर्व निगम पार्षद (द.दि.न.नि.) वार्ड सं. 55एस)