पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी ने पंजाब में एक चुनावी सभा में प्रियंका गांधी की उपस्थिति में उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली के लोगों के बारे में जो कुछ भी कहा और उन्हें भइये कहकर जिस तरह संबोधित किया, उसका मकसद भले ही राजनीतिक रहा हो और ऐसा उन्होंने आम लोगों की बजाय कुछ नेताओं के संदर्भ में कहा हो किन्तु एक बात निश्चित रूप से कही जा सकती है जो लोग महज रोजी-रोटी की तलाश में अपना घर-परिवार छोड़कर अन्य जगहों पर जाते हैं वे बहुत प्रसन्न होकर नहीं जाते हैं।
अपना घर-परिवार छोड़ते वक्त उन्हें काफी पीड़ा होती है किन्तु रोजी-रोटी की तलाश में घर-परिवार छोड़ना मजबूरी है। हालांकि, जो लोग पलायन करके जहां भी जाते हैं वहां की अर्थव्यवस्था से लेकर सभी कार्यों में अपना सहयोग ही देते हैं किन्तु राजनीतिक कारणों से जब इन लोगों पर कटाक्ष किया जाता है या यूं कहें कि व्यंग्यात्मक वाणी से जलील किया जाता है तो बेहद कष्ट होता है।
बात सिर्फ पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की ही नहीं है बल्कि देश के अन्य प्रांतों में भी ऐसी ही भाषा सुनने को मिलती रही है। महाराष्ट्र में कई बार शिव सेना एवं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ जहर उगलने का काम किया है किन्तु इस संदर्भ में एक बात कही जा सकती है कि हर प्रांत के लोग तकरीबन सभी प्रांतों में मिल जायेंगे। यदि इस प्रकार क्षेत्रीयता की बात बार-बार प्रचारित की जायेगी तो उसकी प्रतिक्रिया हर राज्यों में देखने को मिल सकती है, इसलिए इस प्रकार की भाषा से परहेज करना ही बेहतर होगा।
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कल्पना कीजिए कि दिल्ली, मुंबई, लुधियाना, अहमदाबाद, सूरत, बड़ौदा जैसे शहरों से भइये अचानक हट जायें तो इन शहरों की अर्थव्यवस्था कैसी होगी? अतः कोई भी बात राजनीतिक कारणों से भले ही बोली जाये, बहुत सोच-समझकर बोली जाये क्योंकि जब लोगों के दिलों में गांठ बननी शुरू हो जाती है तो उसका असर लंबे समय तक रहता है। इसके साथ-साथ मैं उन लोगों से भी एक बात कहना चाहता हूं जो किसी दूसरे शहर में जाकर सम्मान पूर्वक जीवन जी रहे हैं। ऐसे लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि ये लोग भी जिस शहर में रहे हैं, उसके प्रति पूर्ण रूप से वफादार एवं जिम्मेदार रहें।
कहने का आशय यह है कि उत्तर प्रदेश, बिहार एवं अन्य किसी भी राज्य के लोग दूसरे राज्यों में जाकर रोजी-रोटी की व्यवस्था कर रहे हैं तो उन्हें अपने मन में यह भाव हमेशा रखना चाहिए कि उनकी ज्यादा जिम्मेदारी एवं वफादारी उस राज्य के प्रति बनती है जहां से उनकी रोजी-रोटी तो चल ही रही है साथ ही उनके पैत्रिक गांव का चूल्हा भी जल रहा है।
कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि किसी भी स्थिति को खुशनुमा एवं सकारात्मक बनाने की नैतिक जिम्मेदारी सभी की होती है। कहने का आशय यह है कि बात सिर्फ सस्ती लोकप्रियता एवं मात्र राजीनतिक स्वार्थों के लिए नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसके परिणाम हमेशा घातक ही साबित होते हैं।
– जगदम्बा सिंह