झारखंड के बरही में रूपेश पांडे की हत्या के बाद से उसकी माताजी ने खाना नहीं खाया है। रुपेश इकलौता लड़का था जो कट्टरपंथियों ने मोब लिंचिंग करके मार दिया था, यह कहना है मृतक रुपेश के चाचा का। लेकिन अफसोस इस बात का है कि हिजाब वाली लड़की भारत के जेहादी मीडिया से स्टार बन कर इंटरनेशनल मीडिया में पहुंच गई है, जबकि, एक 17 साल के बच्चे की सरेआम माॅब लिंचिंग हो गई और यह खबर सोशल मीडिया के अलावा अन्य किसी भी मीडिया में प्रमुखता से जगह नहीं प्राप्त कर सकी है।
‘रूपेश पांडेय’ के साथ हुई इस माॅब लिंचिग की घटना और इससे जुड़ी अन्य जानकारियों से साफ जाहिर होता है कि पिछले करीब 26 महीनों से झारखंड में जब से हेमंत सोरेन के नेतृत्व में श्रडडए ब्वदहतमेे और त्श्रक् की गठबंधन की सरकार बनी है तब से राष्ट्रविरोधी और जिहादी मानसिकता वालों का मनोबल कितना बढ़ गया है। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 26 महीनों में यह 10 वीं ऐसी माॅबलिंचिंग की घटना है जो हिंदुओं के खिलाफ अकेले झारखंड में घटित हुई है। जबकि इससे न तो देश के बाकी हिस्सों में रहने वाले हिंदुओं को कोई फर्क पड़ रहा है और न ही वे इसके बारे में अधिक जानना ही चाहते हैं। वे तो बस एक प्रकार से ‘‘चुनावी हिंदू’’ और ‘‘राजनीति हिंदू’’ बन कर रह गये हैं।
‘रूपेश पांडेय’ के साथ हुई इस माॅब लिंचिग की घटना के विषय पर उस दिन क्या हुआ था इस बारे में एक स्थानिय पत्रकार राहुल पांडे के ट्वीट के माध्यम से हमें पता चलता है कि- ‘‘मियां का बच्चा ले कर गया पकड़ कर और मेरा बेटा के जान मार दिया… फिर अपना घर खुद ही तोड़ कर हमें फंसा दिया…।’’
‘रूपेश पांडेय’ के साथ हुई इस माॅब लिंचिग की घटना के बाद की स्थिति को लेकर स्थानीय हजारीबाग पुलिस के ट्वीट से लगता है कि उसने इस मामले को एक प्रकार से दबाने, भटकाने और हिंदुओं का उत्पीड़ने करने का काम किया है। अपने ट्वीट में पुलिस ने कहा है कि- ‘‘सोशल मीडिया पर झूठे, भ्रामक वीडियो से अफवाह फैलाने, समाज में विद्वेष उत्पन्न करने के आरोप में निम्नांकित 15 व्यक्तियों के विरुद्ध सदर थाना द्वारा कार्रवाई की गई है। कई पुराने, एडिटेड वीडियो को हजारीबाग जिला के बताकर सोशल मीडिया पर दुर्भावनासे पोस्ट करनेवाले लोगों पर भी कार्रवाई होगी।’’
दरअसल, हजारीबाग पुलिस ने इस घटना के संबंध में ऐसे 15 व्यक्तियों को नामजद किया है और उन पर केस दर्ज किया है जो इस घटना से संबंध रखते है। झारखण्ड की हजारीबाग पुलिस ने उन सभी 15 नामजद लोगों की सूची को भी प्रकाशित किया है। हैरानी की बात तो ये है कि उन 15 लोगों में से 11 लोग तो उस मृतक ‘रूपेश पांडेय’ के ही समुदाय से आते हैं जबकि मात्र चार (4) ही ऐसे नाम दिये गये हैं जो इस घटना में उस विशेष समुदाय के शामिल थे।
उधर झारखंड में इस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार है और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री हैं। ऐसे में जाहिर सी बात है कि वहां की पुलिस भी उन्हीं के हाथ के नीचे काम कर रही है। जग जाहिर है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार और केन्द्र की भाजपा सरकार के विचार और कार्यशैली में काफी अंतर है। और वैसे भी भाजपा की सरकार के विचार और कार्यशैली भले ही राष्ट्रवादी कहे जाते हैं लेकिन, हिंदुत्ववादी तो बिल्कुल भी नहीं कही जा सकती।
अब जरा हम ये भी जान लें कि भारतीय जनता पार्टी जो हिंदुओं के हित की बात करती है और एक राष्ट्रवादी पार्टी कहलाती है, उन्हीं की केन्द्र सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री के तौर पर सत्ता में बैठी अन्नपूर्णा देवी ने ‘रूपेश पांडेय’ के साथ हुई इस माॅब लिंचिग के विषय पर मात्र एक ट्वीट के माध्यम से यह कह कर पल्ला झाड़ लिया है कि- ‘‘झारखण्ड सरकार की चुप्पी, कार्रवाई के नाम पर आईवाश और पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता इनके जख्मों पर नमक छिड़क रही है। जनाक्रोश उबल रहा है। हम चुप नहीं बैठेंगे। मासूम रूपेश के बर्बर हत्यारों को सख्त सजा दिलाने की पहल करे झारखण्ड सरकार।’’
केन्द्र में शिक्षा राज्यमंत्री के तौर पर सत्ता में बैठी अन्नपूर्णा देवीयानी अन्नपूर्णा देवी ने अपने विचार साफ-साफ जाहिर कर दिए हैं कि हम जो चाहते थे वह हमें मिल गया है अब आप लोग अपनी लड़ाई स्वयं ही लड़ें। हालांकि, अन्य भाजपाई नेताओं ने भी इस विषय पर अपनी-अपनी प्रतिक्रया दी है लेकिन वे सब स्थानीय और प्रदेश स्तर के नेता हैं। केन्द्रीय मंत्रियों में या प्रवक्ताओं में ये बात कहां। जबकि झारखण्ड की सत्ता में बैठे मुखिया से लेकर स्थानीय स्तर के सभी नेता उसी विशेष समुदाय के समर्थन में हैं।
खानापूर्ति के तौर पर झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवरदास ने हालांकि पीड़ित परिवार से मुलाकात अवश्य की है और कहा भी है कि हम सरकार से मांग करते हैं कि- ‘‘फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए हर दिन ‘रूपेश पांडेय’ हत्या मामले की सुनवाई हो और पीढ़ित परिवार को 50 लाख रुपए का मुआवजा और एक सरकारी नौकरी दी जाए।’’ लेकिन, यहां बात आती है कि अगर पीढ़ित परिवार को मात्र मुआवजा देकर ही मामले को रफा-दफा करवाना है तो क्या आवश्यकता है 50 लाख रुपए की। दस-बीस हजार में भी मामला दब सकता है।
– गणपत सिंह, खरगौन (मध्य प्रदेश)