अजय सिंह चौहान || आम तौर पर जब भी हम किसी सिद्ध या प्रसिद्ध धार्मिक स्थल पर जाते हैं तो हम जानते हैं कि उसके लिए वहां एक ही सबसे प्रमुख स्थान या मंदिर होता है। लेकिन, श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में दर्शन करने जाने वाले अधिकतर श्रद्धालुओं के लिए यह समस्या रहती है कि वे अनजाने में ही सही पर अपनी इस ज्योतिर्लिंग दर्शन यात्रा को अधूरा ही छोड़ कर चले आते हैं, फि चाहे उन्होंने यहां श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) मंदिर में कितने ही आराम से और शांतिपूर्वक दर्शन क्यों न किये हों। ऐसे में यहां मैं उन दर्शनार्थियों को बताना चाहता हूं कि यहां एक नहीं बल्कि श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दो अलग-अलग मंदिर हैं और उन दोनों ही मंदिरों में दर्शन करने पर यह यात्रा पूर्ण होती है।
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) की यही सबसे अनूठी बात है कि यहां दो ज्योतिस्वरूप शिवलिंग श्री ओंकारेश्वर और ममलेश्वर (Mamleshwar Jyotirling) हैं। और ये दोनों ही शिवलिंग या ज्योतिर्लिंग किसी एक मंदिर में या एक ही स्थान पर नहीं, बल्कि नदी के दो अलग-अलग किनारों पर स्थित हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इन दोनों ही मंदिरों में दर्शन करने पर ही श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूर्ण माने जाते हैं। इसमें भी सबसे पहले श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन और बाद में श्री ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करना होता है। लेकिन, यदि कोई श्रद्धालु इसको करने में सक्षम नहीं है तो वे अपनी सुविधा के अनुसार पहले किसी भी मंदिर में दर्शन कर सकते हैं, जबकि सक्षम श्रद्धालुओं के लिए ऐसा नहीं माना जाता।
श्री ओंकारेश्वर मंदिर तक पहुंचना –
सबसे पहले श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) मंदिर में दर्शन करने जाने के लिए बता दें कि यह मंदिर नर्मदा नदी के ओम पर्वत पर यानी टापू पर बना हुआ है। इस टापू को ओम पर्वत, शिवपुरी या फिर मंधाता द्वीप जैस नामों से भी पुकारा जाता है। इस टापू पर या उस मंदिर तक पहुंचने के लिए यहां तीन अलग-अलग रास्ते हैं। जिनमें से एक है झूला पूल जो कार पार्किंग के नजदीक है। इसको ममलेश्वर सेतु के नाम से जाना जाता है, जबकि दूसरा है पक्का पूल।
और क्योंकि उस टापू पर कोई भी वाहन नहीं जा सकता है इसलिए इन दोनों ही पूल को पार करने के लिए यात्रियों को पैदल चलना होता है। जबकि तीसरे रास्ते के तौर पर आप चाहें तो नाव का सहारा लेकर नर्मदा नदी को पार कर ओम पर्वत पर यानी टापू पर पहुंच सकते हैं। अगर आप यहां नाव से जाते हैं तो उसके लिए गौमूख घाट से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तक एक सवारी के करीब 15 रुपये देना होता है।
Omkareshwar Jyotirling : ओंकारेश्वर के ज्योतिर्लिंग के पौराणिक रहस्य
नदी पार करने के बाद अधिकतर श्रद्धालु श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) मंदिर में दर्शन करने से पहले नर्मदा नदी में स्नान करते हुए देखे जा सकते हैं। आप भी यहां आराम से स्नान कर सकते हैं। लेकिन, ध्यान रखें कि यहां नदी की गहराई बहुत अधिक है इसलिए सावधान रह कर ही नहायें और गहरे पानी में ना जायें।
श्री ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचने के बाद –
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Omkareshwar Jyotirling) मंधाता पहाड़ी की एक दम ढलान पर बना हुआ है इसलिए यहां अन्य मंदिरों की तरह बहुत बड़ा और ज्यादा खुला आंगन या सभा मंडप नहीं है। लेकिन, मंदिर का यह सभा मंडप भी बहुत ही आकर्षक और मनमोहन लगता है। देवी अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा निर्मित यह ज्योतिर्लिंग मंदिर और इसके सभा मंडप में कुल 60 बड़े और 15-15 फिट ऊंचे विशाल आकार वाले नक्काशीदार स्तंभ हैं।
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) मंदिर के पास पहुंच कर आपको यहां लगभग 50 से भी अधिक सीढ़ियां चढ़नी होती है। उसके बाद ही आप मुख्य मंदिर के प्रांगण में पहुंच पाते हैं। मंदिर के प्रांगण में दर्शनार्थियों की भीड़ को देखते हुए और लंबी-लंबी कतारों को देखकर आप परेशान ना हों।
लेकिन, अगर आप लाईन में नहीं लगना चाहते हैं तो फिर आप 300 रुपये का वीआईपी टिकट लेकर लाईन से बच सकते हैं और सीधे ज्योतिर्लिंग मंदिर के गर्भगृह में पहुंच कर दर्शन कर सकते हैं।
श्री ओंकारेश्वर के गर्भगृह पहुंच कर –
ध्यान रखें कि गर्भगृह में पहुंच कर आप ना ही सीधे जल चढ़ा सकते और और ना ही ज्योतिर्लिंग को स्पर्श कर सकते हैं। बल्कि यहां आपको एक पात्र में जल डालना होता है। वहां से वह जल एक नली के द्वारा सीधे ज्योतिर्लिंग पर पहुंच जाता है।
श्री ओंकारेश्वर (Omkareshwar Jyotirling) का यह ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है और इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। अगर आप यहां शाम के 4 बजे के बाद पहुंचते हैं तो आपको यहां जल चढ़ाने की अनुमति नहीं मिलेगी क्योंकि 4 बजे के बाद यहां भगवान शिव का विशेष श्रंगार किया जाता है।
यहां एक खास और सबसे महत्वपूर्ण बात ध्यान रखने वाली है कि अगर आप ने श्री ओंकारेश्वर मंदिर (Omkareshwar Jyotirling) में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग दर्शन कर लिए हैं तो आप यहां ये न समझें कि आपके श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन संपूर्ण हो चुके हैं, क्योंकि जब तक यहां आप एक अन्य मंदिर में, यानी श्री ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन नहीं कर लेते तब तक आपकी श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की यह यात्रा अधूरी ही मानी जायेगी।
Omkareshwar : ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर संरचना का संपूर्ण इतिहास
तो ध्यान रखें कि परंपरा और मान्यता के अनुसार सबसे पहले श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) के दर्शन करने चाहिए, उसके बाद श्री ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है तब जाकर आपकी यह यात्रा, यानी श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा संपूर्ण मानी जायेगी।
श्री ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के दर्शन –
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के बाद श्री ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mamleshwar Jyotirling) मंदिर के दर्शन करने के लिए आपको एक बार फिर से नदी पार करके इस टापू से बाहर यानी गौमूख घाट की ओर जाना होता है। और इसके लिए यहां आप को उसी तरह पूल से या फिर नाव के सहारे जाना होता है।
नदी पार करने के बाद आपको सामने ही श्री ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के दर्शन हो जाते हैं। श्री ममलेश्वर मंदिर (Mamleshwar Jyotirling) को श्री अमरेश्वर मंदिर के नाम से भी पहचाना जाता है। यह एक अति प्राचीन मंदिर संरचना है, जबकि इसके प्रांगण में 6 अन्य मंदिर भी बने हुए हैं।
वैसे तो श्री ओंकारेश्वर की यात्रा ही अपने आप में एक संपूर्ण यात्रा है। लेकिन, फिर आप यहां के कुछ अन्य मंदिरों के भी दर्शन करना चाहें तो उनमें कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध मंदिर हैं – श्री सिद्धनाथ मंदिर, आशा माता मंदिर, मामा-भांजा मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, मंधाता का मंदिर और मां नर्मदा मंदिर और गुरुद्वारा भी प्रमुख हैं। ये सभी मंदिर शिवपुरी यानी मंधाता द्वीप पर ही मौजूद हैं।
यदि यहां आपके पास अतिरिक्त समय है और नर्मदा नदी में विशेष स्नान करने और आनंद लेने का मन करे तो मंदिर से करीब ढेड किलोमीटर की दूरी पर नदी के बहाव की दिशा में यहां के संगम घाट पर जरूर जाना चाहिए।
संघम घाट विशेष महत्व का माना जाता है। यहां नर्मदा और कावेरी नदी का पवित्र संगम स्थल है। वास्त में यह संगम वह संगम है जो इस टापू की दूसरी ओर से निकल आ रही नर्मदा नदी ही है। धार्मिक दृष्टि से इस संगम का एक विशेष और पौराणिक महत्व माना जाता है। संगम तक पहुंचने के लिए आप चाहें तो आटो से या पैदल भी जा सकते हैं।