अजय सिंह चौहान || मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के किनारे पर स्थित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में चैथे स्थान पर माने जाने वाले इस ज्योतिर्लिंग की सबसे अलग और सबसे अनूठी बात यह है कि यहां दो ज्योतिस्वरूप शिवलिंग ओमकारेश्वर और ममलेश्वर हैं। इनमें से श्री ओंकारेश्वर का मंदिर नर्मदा के उत्तरी तट पर स्थित है जबकि श्री ममलेश्वर का मंदिर नर्मदा के दक्षिण तट पर। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इन दोनों शिवलिंगों की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है इसलिए श्री ओंकारेश्वर और श्री ममलेश्वर नामक दोनों ही ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की यह यात्रा पुरी मानी जाती है।
मध्य प्रदेश से होकर बहने वाली नर्मदा नदी के तट पर स्थित श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के ये मंदिर इंदौर से करीब 75 किमी एवं मोरटक्का नामक कस्बे से 12 किमी की दुरी पर स्थित हैं। यहाँ पर नर्मदा नदी दो भागों में बंट कर एक ओम के आकार का टापू बनाती हुई फिर से अपने वास्तविक आकार में आ जाती है। इस द्वीप या इस टापू का आकार ओम या ओमकार के समान दिखता है। भाग को मान्धाता या शिवपूरी नामक द्वीप कहा जाता है। यह टापू करीब 4 किमी लंबा और 2 किमी चैड़ा है। इसी ओम के आकार के टापू पर स्थित है श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर जो नर्मदा के उत्तरी तट पर स्थित है।
ज्योतिर्लिंग का दूसरा भाग यानी ममलेश्वर पार्थिव लिंग मंदिर नर्मदा नदी के दक्षिण तट पर स्थित है। इस लिंग को श्री अमरेश्वर या श्री ममलेश्वर के नाम से जाना जाता है। श्रद्धालुओं को यहां ओंकारेश्वर के बाद इस श्री ममलेश्वर में भी दर्शन करना होता है तभी उनकी यात्रा पुरी मानी जाती है। श्री अमरेश्वर या श्री ममलेश्वर का यह मंदिर प्राचीन वास्तु कला एवं शिल्पकला का अद्वितीय नमूना है। यह मंदिर पांच मंजिला मंदिर है और इसकी हर मंजिल पर शिवालय है।
हालांकि, यह मंदिर कब बना था इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है। मंदिर की दीवारों पर विभिन्न स्त्रोत उकेरे गए हैं जो की 1063 ईस्वी के बताये जाते हैं। महारानी अहिल्या बाई होलकर इस मंदिर में अक्सर पूजा अर्चना करने आया करतीं थीं। तब से आज तक होलकर स्टेट के पुजारी यहां पूजा-पाठ करते हैं। इस मंदिर प्रांगण में छह अन्य मंदिर भी हैं। इस मंदिर का प्रबंधन ‘अहिल्याबाई खासगी ट्रस्ट’ द्वारा किया जाता है। यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।
ओम टापू पर स्थित श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का मंदिर उत्तर भारतीय नागरा वास्तुकला के अनुरूप बना हुआ है। मंदिर के निर्माण के विषय में स्पष्ट रूप से कोई प्रामाणिक या ऐतिहासिक जानकारी नहीं है। मगर इसकी निर्माण शैली बताती है कि यह प्राचिनतम निर्माण शैली में बना हुआ है। मंदिर का गर्भ गृह एक छोटे मंदिर जैसा है। अन्य शिव मंदिरों की तरह इस मंदिर में गर्भ गृह एवं मुख्य ज्योतिर्लिंग न तो सीधे प्रवेश द्वार के सामने की तरफ है और ना ही गर्भगृह के ठीक बीचोंबीच में।
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के इस मंदिर का सभा मंडप 14 फुट ऊँचा और 60 विशालकाय खम्बों पर टिका हुआ है। इस मंदिर में 5 मजिलें हैं और सभी मंजिलों पर अलग अलग देवता स्थापित हैं। इसमें सर्वप्रथम श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है, ऊपर की मंजिलों पर श्री महाकालेश्वर, श्री सिद्धनाथ, श्री गुप्तेश्वर, एवं ध्वजाधारी शिखर देवता हैं।
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर जो नर्मदा के उत्तरी तट पर स्थित है यहां पौराणिक तथ्यों के अनुसार भगवान शिव स्वयं ओमकार स्वरुप में प्रकट हुए थे। माना जाता है कि भगवान शिव प्रतिदिन तीनों लोकों में भ्रमण के पश्चात यहां आकर आज भी विश्राम करते हैं। इसलिए यहां प्रतिदिन भगवान शिव की शयन आरती की जाती है। श्रद्धालु और तीर्थयात्री विशेष रूप से इस शयन दर्शन और आरती के लिए यहां आते हैं।
Omkareshwar Jyotirling : ओंकारेश्वर के ज्योतिर्लिंग के पौराणिक रहस्य
मध्यकालीन समय में ओंकारेश्वर पर धार के परमार, मालवा के सुल्तान और ग्वालियर के सिंधिया ने राज किया और अंत में मंधाता के राजा के द्वारा इसे सन 1824 में अंग्रेज अधिकारियों के हाथों में सौप दिया था। उस समय इस मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी दर्याव गोसाई नामक पुजारी के हाथ में थी। दर्याव गोसाई के बाद नाथू भील को मंदिर का पुजारी बनाया था।
इस मंदिर में प्रतिदिन 3 बार पूजा की जाती है जिसमें प्रातःकालीन पूजा मंदिर ट्रस्ट द्वारा, दोपहर की पूजा सिंधिया घराने के पुजारी द्वारा और शाम को होने वाली पूजा होलकर स्टेट के पुजारी द्वारा की जाती है।
यहां भगवान ओंकारेश्वर की शयन आरती के लिए श्रद्धालुओं को विशेष इंतजार रहता है। शयन आरती के बाद रात्रि 9 बजे से 9ः30 बजे तक भगवान के शयन दर्शन भी किए जा सकते हैं। इसमें भगवान शिव के शयन या रात्रि विश्राम के लिए चांदी का विशेष झूला लगाया जाता है। साथ में सेज पर चोपड़ पासा भी सजाया जाता है। इसके अलावा संपूर्ण गर्भगृह का आकर्षक श्रृंगार भी किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि यहां प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ एवं माता पार्वती रात का विश्राम करने के लिए आते हैं। यदि कोई श्रद्धालु यहां पर अपनी ओर से भगवान ओंकारेश्वर का विशेष श्रृंगार करवाना चाहें तो मंदिर कार्यालय में संपर्क करके शयन श्रंगार आरती में विशेष भेंट राशि का योगदान भी दे सकते हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के सामने नर्मदा नदी के तट पर कई सुन्दर घाट बने हुए हैं। यहां नदी की गहराई अन्य जगहों के मुकाबले बहुत अधिक है, इसलिए घाटों पर श्रद्धालुओं को गहरे पानी में जाने से बचाने के लिए लोहे की जालियां और पकड़ने वाली चैन लगाईं गई हैं। यहां नर्मदा का पानी शुद्ध और प्रदूषण से मुक्त है। कोटि तीर्थ घाट जो कि मुख्य मंदिर के ठीक सामने स्थित है सभी घाटों में महत्वपूर्ण माना गया है।
यहां ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के आसपास के अन्य दर्शनीय स्थलों में पंचमुखी गणेश मंदिर, गोविन्देश्वर मंदिर व गुफा, अन्नपूर्णा मंदिर, गुरुद्वारा ओंकारेश्वर साहिब प्रमुख हैं। पंचमुखी गणेश मंदिर श्री ओंकारेश्वर में मुख्य मंदिर के ठीक पहले स्थित है। गणेश जी की यह मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है। कहा जाता है कि यह उसी पाषाण में से उत्पन्न हुई है जिसमें श्री ओंकारेश्वर प्रकट हुए थे।
एक अन्य मंदिर जो गोविन्देश्वर मंदिर व गुफा के नाम से प्रसिद्ध है ओंकारेश्वर मंदिर के प्रवेशद्वार के पास ही में है। यह वह स्थान है जहाँ जगद्गुरु शंकराचार्य ने विक्रम संवत 745 को अपने गुरु गोविन्द भाग्वदपाद से दीक्षा और योग की शिक्षा दीक्षा ग्रहण की थी। इसमें वह स्थान जहां गुरु गोविन्द भाग्वदपाद निवास करते थे तथा तप किया करते थे गोविन्देश्वर गुफा कहलाता है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार सन 1989 में जगद्गुरु जयेन्द्र सरस्वती द्वारा करवाया गया था। जबकि इसके निर्माण कार्य का शिलान्यास उस समय के राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण ने किया था।
श्री गुरुनानक देव जी महाराज अपनी देशव्यापी धार्मिक यात्रा के दौरान ओंकारेश्वर भी आये थे। उनकी स्मृति में यहाँ पर एक गुरुद्वारा भी बनाया गया है जो ‘गुरुद्वारा श्री ओंकारेश्वर साहिब’ कहलाता है।
ओंकारेश्वर में अनेकों श्रद्धालु अपनी मनोकामनापूर्ति के लिए नर्मदा का जल लेकर भगवान ओंकारेश्वर एवं मान्धाता पर्वत की परिक्रमा करते हैं। यह परिक्रमा लगभग 7 किलोमीटर की होती है। परिक्रमा के इस रास्ते में कई नए पुराने मंदिर और पुरातत्वीक महत्व के स्मारक आते हैं।
यहां प्रतिदिन शाम को माता नर्मदा की आरती होती है। आरती के बाद श्रद्धालुओं द्वारा नदी में दीपक प्रवाहित करने की भी परंपरा है जिसे ‘दीपदान’ कहा जाता है। ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी दो भागों में बंटकर एक द्वीप का निर्माण करती हैं जिसे पुराणों में ‘वैदूर्यमणि पर्वत’ और ओम पर्वत भी कहा गया है। इस द्वीप के उत्तर में बहने वाले भाग को कावेरी नदी माना जाता है, जो कि आकार में चैड़ी एवं उथली है, जबकि उत्तर में बहने वाला भाग नर्मदा है जो संकरा एवं गहरा है।
नर्मदा को रेवा या मेकल कन्या के नाम से भी जाना जाता है। यह मध्य भारत कि सबसे बड़ी और भारतीय उपमहाद्वीप कि पांचवी सबसे बड़ी नदी है। गंगा और गोदावरी नदी के बाद भारत की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। मां नर्मदा की पावन जलधारा तन ही नहीं, मन को भी पवित्र करती है। नर्मदा के दर्शन मात्र से मनुष्य पापमुक्त हो जाता है। ‘नर्मदा पुराण’ में भी माता नर्मदा की इसी महिमा का उल्लेख मिलता है। नर्मदा उत्तर एवं दक्षिण भारत के बीच पारम्परिक विभाजन रेखा के रूप में पश्चिम दिशा कि ओर लगभग 1312 किलोमीटर तक बहती हुई अपने उद्गम स्थल अमरकंटक से निकल कर अरब सागर में स्थित खम्बात कि खाड़ी में जाकर मिल जाती है।
संपूर्ण भारत के लिए ओंकारेश्वर एक ऐसा तीर्थ स्थल है जहाँ पर सनातन संस्कृती और इतिहास में कई प्रकार से समानताएं देखने को मिलती है।