देवताओं के गुरु थे बृहस्पति और असुरों के गुरु थे शुक्राचार्य। भारतीय इतिहास में एक से बढ़कर एक महान गुरु-शिक्षक रहे हैं। ऐसे गुरु हुए हैं जिनके आशीर्वाद और शिक्षा के कारण इस देश को महान युग नायक मिले। कण्व, भारद्वाज, वेदव्यास, अत्रि से लेकर गुरुनानक और गुरु गोविंदसिंह जी तक हजारों लाखों गुरुओं की सूची है। हमें मालूम है कि वल्लभाचार्य, गोविंदाचार्य, कबीर, सांईं बाबा, गजानन महाराज, तुकाराम, ज्ञानेश्वर आदि सभी अपने काल के महान गुरु थे और ओशो भी। आइए इस अंक में दस महान गुरुओं का संक्षिप्त परिचय प्राप्त करें-
गुरु वशिष्ठ –
राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता। ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरुण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया। सप्त ऋषियों में गुरु वशिष्ठ की गणना की जाती है।
विश्वामित्र –
भगवान राम को परम योद्धा बनाने का श्रेय विश्वामित्र ऋषि को जाता है। एक क्षत्रिय राजा से ऋषि बने विश्वामित्र भृगु ऋषि के वंशज थे। भगवान राम के पास जितने भी दिव्यास्त्र थे, वे सब विश्वामित्र ऋषि के दिए हुए थे। विश्वामित्र को अपने जमाने का सबसे बड़ा आयुध आविष्कारक माना जाता है। उन्होंने ब्रह्मा के समकक्ष एक और सृष्टि की रचना कर डाली थी।
माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ट होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्र ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मंत्र की रचना की, जो भारत के हृदय में और जिह्ना पर हजारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है।
परशुराम –
जब एक बार गणेशजी ने परशुराम को शिव दर्शन से रोक लिया तो रुष्ट परशुराम ने उन पर परशु प्रहार कर दिया जिससे गणेशजी का एक दाँत नष्ट हो गया और वे एकदंत कहलाए। जनक, दशरथ आदि राजाओं का उन्होंने समुचित सम्मान किया। सीता स्वयंवर में श्रीराम का अभिनंदन किया। कौरव-सभा में कृष्ण का समर्थन किया। असत्य वाचन करने के दंडस्वरूप, कर्ण को सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप दिया था। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। इस तरह परशुराम के अनेक किस्से हैं।
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शौनक –
शौनक ने 10 हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया। वैदिक आचार्य और ऋषि, जो शुनक ऋषि के पुत्र थे। फिर से बताएं तो वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक- ये हैं वे सात ऋषि जिन्होंने इस देश को इतना कुछ दे डाला कि तज्ञ देश ने इन्हें आकाश के तारामंडल में बिठाकर एक ऐसा अमरत्व दे दिया कि सप्तर्षि शब्द सुनते ही हमारी कल्पना आकाश के तारामंडलों पर टिक जाती है। इसके अलावा मान्यता है कि अगस्त्य, कश्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम आदि सभी को उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण वही दर्जा प्राप्त है।
द्रोणाचार्य –
द्वापर युग में कौरवों और पांडवों के गुरु रहे द्रोणाचार्य भी श्रेष्ठ शिक्षकों की श्रेणी में काफी सम्मान से गिने जाते हैं। द्रोणाचार्य अपने युग के श्रेष्ठतम शिक्षक थे। द्रोणाचार्य भारद्वाज मुनि के पुत्र थे। ये संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर थे। गुरू द्रोण का जन्म उत्तरांचल की राजधानी देहरादून में बताया जाता है, जिसे हम देहराद्रोण (मिट्टी का सकोरा) भी कहते थे। गुरु द्रोण ने पांडु पुत्रों और कौरवों को धनुर्धर की शिक्षा दी।
द्रोण के हजारों शिष्य थे जिनमें अर्जुन को उन्होंने विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का वरदान दिया। द्रोण ने जब देखा कि एकलव्य, अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुर्धर है तो उन्होंने एकलव्य से उसका अंगूठा मांग लिया। महाभारत युद्ध में द्रोण कौरवों की ओर से लड़े थे। द्रोणाचार्य और उनके पुत्र अश्वथामा जब पांडवों की सेना पर भारी पड़ने लगे तब एक छल से धृष्टद्युम्न ने उनका सिर काट दिया।
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रामष्ण परमहंस –
स्वामी विवेकानंद के गुरु आचार्य रामष्ण परमहंस भक्तों की श्रेणी में श्रेष्ठ माने गए हैं। मां काली के भक्त श्री परमहंस प्रेममार्गी भक्ति के समर्थक थे। उन्होंने हिन्दुत्व की रक्षा अन्य धर्मों को पछाड़कर नहीं, प्रत्युत उन्हें अपना बनाकर की। हिन्दुत्व, इस्लाम और ईसाइयत पर उनकी श्रद्धा एक समान थी। ऐसा इसलिए क्योंकि उसने बारी-बारी से सबकी साधना करके एक ही परम-सत्य का साक्षात्कार किया था। साथ ही नरेन्द्र नामक एक नौजवान को स्वामी विवेकानंद बनाकर विश्वमंच पर स्थापित करने का पुरुषार्थ कर दिखाया। इसी गुण की वजह से उनके जीवन-काल में ही उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। फलस्वरूप मैक्समूलर और रोम्यां रोला जैसे सुप्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वानों ने उनकी जीवनी लिखकर स्वयं को धन्य कर लिया।
स्वामी समर्थ रामदास –
स्वामी समर्थ रामदास छत्रपति शिवाजी के गुरु थे। उन्होंने ही देशभर में अखाड़ों का निर्माण किया था। महाराष्ट्र में उन्होंने रामभक्ति के साथ हनुमान भक्ति का भी प्रचार किया। हनुमान मंदिरों के साथ उन्होंने अखाड़े बनाकर महाराष्ट्र के सैनिकीकरण की नींव रखी, जो राज्य स्थापना में बदली। संत तुकाराम ने अपनी मृत्यु के पूर्व शिवाजी को कहा कि अब उनका भरोसा नहीं अतः आप समर्थ में मन लगाएँ। तुकाराम की मृत्यु बाद शिवाजी ने समर्थ का शिष्यत्व ग्रहण किया।
शंकराचार्य –
स्वामी शंकराचार्य ने भारत की बिखरी हुई संत परंपरा को एकजुट कर दसनामी संप्रदाय का गठन किया और भारत के चारों कोने में 4 मठों की स्थापना की। उन्होंने ही हिंदुओं के चार धामों का पुनः निर्माण कराया और सभी तीर्थों को पुनर्जीवित किया। शंकराचार्य हिंदुओं के महान गुरु हैं। उनके हजारों शिष्य थे और उन्होंने देश-विदेश में भ्रमण करके हिंदू धर्म और संस्कृति का प्रचार प्रसार किया।
महर्षि सांदीपनि –
भगवान कृष्ण, बलराम और सुदामा के गुरु थे महर्षि सांदीपनि। इनका आश्रम आज भी मध्यप्रदेश के उज्जैन में है। सांदीपनि के गुरुकुल में कई महान राजाओं के पुत्र पढ़ते थे। श्रीष्णजी की आयु उस समय 18 वर्ष की थी और वे उज्जयिनी के सांदीपनि ऋषि के आश्रम में रहकर उनसे शिक्षा प्राप्त कर चुके थे। सांदीपनि ने भगवान श्रीष्ण को 64 कलाओं की शिक्षा दी थी। भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार श्रीकृष्ण ने सर्वज्ञानी होने के बाद भी सांदीपनि ऋषि से शिक्षा ग्रहण की और ये साबित किया कि कोई इंसान कितना भी प्रतिभाशाली या गुणी क्यों न हो, उसे भी जीवन में एक गुरु की आवश्यकता होती ही है।
चाणक्य –
आचार्य विष्णु गुप्त यानी चाणक्य यानी चणक। चाणक्य को कौन नहीं जानता कलिकाल के सबसे श्रेष्ठ गुरु जिन्होंने भारत को एकसूत्र में बांध दिया था। दुनिया के सबसे पहले राजनीतिक षड्यंत्र के रचयिता, आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य जैसे साधारण भारतीय युवक को सिकंदर और धनानंद जैसे महान सम्राटों के समक्ष खड़ाकर अखंड भारत का सम्राट बनाया। पहली बार छोटे-छोटे जनपदों और राज्यों में बंटे भारत को एकसूत्र में बांधने का कार्य आचार्य चाणक्य ने किया था। वे मूलतः अर्थशास्त्र के शिक्षक थे लेकिन उनकी असाधारण राजनीतिक समझ के कारण वे बहुत बड़े रणनीतिकार माने गए।
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