
अजय सिंह चौहान | ये बिल्कुल सच है कि “पाकिस्तान हो, बांग्लादेश हो, अफगानिस्तान हो या भारत के शांतिप्रिय लोग। ये सभी कुरान और हदीस के अनुसार चलते हैं। इनमें कोई अंतर नहीं है।” लेकिन ये भी सच है कि भविष्य पुराण में जो हिंदुओं के लिए लिखा गया है ठीक उसी धर्म पर आज ये अरब के लोग पालन कर रहे हैं। हमारे समाज सुधारकों ने हमको वो सब दकियानूसी बताकर हमसे छुड़वा दिया है। जबकि अधिक से अधिक संतान पैदा करना, धर्म विरोधी राजा के विरुद्ध और धर्म के लिए सड़क पर उतरने का आदेश भी हमारे इसी पुराण और मनुस्मृति में है और पश्चिमी अर्थात अरब के निवासी अथवा उनकी मानसिकता आज भी अधिक से अधिक संतान पैदा करना पसंद करते हैं ।
भले ही हमारे पुराणों में अरब के समाज जैसी कोई भी अनावश्यक और अधिक महिला विरोधी बातें नहीं हैं, लेकिन हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि यह हमारी ही गलतियां हैं जिसके कारण आज वे लोग हमारे महिला समाज को दूषित करते जा रहे हैं और हम आधुनिकता के नाम पर उसको स्वीकार भी करते जा रहे हैं। लेकिन यह भी ठीक है कि म्लेच्छों ने ठीक उसी का अनुसरण किया और आज भी कर ही रहे हैं जो हमारे पुराण हमें शिक्षा देते हैं। तभी तो वे सड़क पर उतर कर अपने धर्म के लिए लड़ रहे हैं।
भविष्य पुराण में सनातन धर्म की महिलाओं के लिए किसी न किसी पुरुष की छत्रछाया में रहने और कभी भी कहीं भी अकेले न छोड़ने का स्पष्ट आदेश है। जबकि हमने तो उसको दकियानूसी मान लिया और महिलाओं को अकेला छोड़ दिया। नतीजा देख ही रहे हैं। लेकिन उन लोगों ने समाज सुधारकों को नहीं माना और उसी धर्म पर आज भी चल रहे हैं। अर्थात वे आज हमारे ही धर्म का पालन करने में हमसे बहुत आगे हैं।
हमारे समाज की महिलाओं को समाज सुधारकों और मानवाधिकारों के नाम पर कुछ इस प्रकार से भ्रमित कर दिया गया है कि उल्टा आज हमारे समाज के पुरुष ही सबसे अधिक प्रताड़ित हो रहे हैं। जबकि उनका समाज जिसे हम घटिया मानते हैं खुद उनके पुरुष आज भी उसका पालन करते हुए अपने समाज की महिलाओं को कैद किए हुए हैं और वहां कोई सुधारक नजर भी नहीं आता।
जब से मैने स्वयं ही पुराणों का अध्ययन शुरू किया है मैं हतप्रभ हूं कि हमारी ही जिन प्राचीन प्रथाओं को बेकार समझ कर हमने नकार दिया है, अरब के समाज ने उसे वैसा का वैसा ही अपना लिया है और फिर हम उन्हीं पर हंस रहे हैं। जबकि ये सारी प्रथाएं तो हमारी ही हैं। इसको स्वीकार करने में आज मुझे कोई संकोच नहीं है।