हमारे राष्ट्रीय पक्षी मोर को आदिवासियों द्वारा सबसे ज्यादा सम्मान मिलता है। आदिवासियों की मोर के प्रति कई आस्थाएं हैं, जो उनकी लोककथाओं में हमें देखने को मिलती है।
तमिलनाडु के कुछ आदिवासी गांवों में ‘मोर’ को ग्राम देवता माना जाता है। उसी तरह से उड़ीशा में एक रियासत है मयूरगंज, जिसकी लोककथा बताती है कि वहां के पहले राजा का जन्म मोरनी के अण्डे से हुआ था।
भारत में प्राचीन काल से ही मोर को पवित्र और विशेष मानकर पूजा जाता रहा है। हिंदू धर्म में मोर को भगवान कार्तिकेय के वाहन के रूप में विशेष स्थान दिया जाता है। इसी तरह विख्यात मौर्य वंश के साम्राज्य का नामकरण ही मोर के नाम पर किया गया था और इसके प्रमाण हमें मौर्य साम्राज्य के सिक्कों पर खुदे हुए मोर के चित्रों से हैं।
असम की प्रमुख आदिवासी जनजाति है ‘खेषरी’, और इस खेषरी जनजाति के अंतर्गत भीलों की एक उपजाति ‘मयूरी’ कहलाती है। इसी खेषरी कबीले की बोली में लगभग तीन सौ साल पहले ‘गीति रामायणी’ के नाम से रामायण की रचना हुई थी, मोर के प्रति उनकी आस्थाएं अब तक कायम हैं। शुभ अवसरों पर वे मोर की प्रतिमा की पूजा भी करते हैं।
मयूरी जाति की स्त्रियों को अगर जंगल में मोर दिख जाता है, तो उसे देखकर वे घूंघट भी निकाल लेती हैं। जंगल में कहीं मोर के पदचिन्ह पड़े हुए मिल जाएं, तो वे उससे बचकर चलते हैं। उनका ख्याल है कि उन पदचिन्हों पर हमारे पैर पड़ जाएं तो मोर का अनादर होता है, जससे वे बीमार पड़ सकते हैं या किसी भारी संकट में पड़ सकते हैं। ये लोग मोर की रक्षा करना अपना परम कर्तव्य मानते हैं।
रोचक है आदिवासियों की विवाह पद्धतियां | Marriage Practices of Indian Tribals
कई आदिवासी लोककथाओं में देवी सीता की उत्पत्ति की कल्पना भी मोरनी से ही की जाती है। लोक कथाओं के अनुसार राजा जनक जब खेत जोत रहे थे, उस समय उन्हें वहां से मोरनी का एक अण्डा मिला। उन्होंने देखा कि वह अण्डा आकार में थोड़ा बड़ा था और एक मोरी उस अण्डे की रक्षा कर रही थी। उन्होंने उस अण्डे को टोकरी में रखकर एक खूंटी पर टांग दिया। कुछ दिनों में सभी उसके बारे में भूल गये। उस अण्डे में से एक दिन अनुपम कन्या का जन्म हुआ। जिसका नाम उन्होंने सीता रख दिया।
वैज्ञानिकों का दावा – सैकड़ों वर्ष पहले विलुप्त हो चुका एक पक्षी फिर होने वाला है जिंदा
मोर से जुड़ी एक और लोकथा भी प्रचलित है, जिसके अनुसार मनुष्य ने मोर से ही नाचा सीखा है। मोर को मोरनियों के साथ मस्त होकर नाचते देखकर मनुष्य ने भी नाचना शुरू किया। एक लोकथा के अनुसार एक बार एक गोंड बालक मोर के नन्हें बच्चों को पकड़कर लाया। बड़े होने पर उनमें से जो नर थे, वे नाचने लगे। उन्हें नाचते देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए और वे भी उनके साथ नाचने लगे। बस यहीं से नृत्य की शुरूआत मानी जाती है।
– अमृति देवी