आम लोगों के दैनिक जीवन की बात की जाये तो उनमें से अधिकांश लोग बड़ी समस्याओं से (Public life and local problems) परेशान नहीं हैं बल्कि वे छोटी-छोटी समस्याओं से परेशान हैं। आम लोगों का इलाज आसानी से हो जाये, उनके बच्चों की शिक्षा-दीक्षा सस्ती और सुगम तरीके से हो जाये। थाना, ब्लाॅक, तहसील एवं जिला स्तर पर लोगों की समस्याओं का समाधान आसानी से हो जाये तो आम लोगों का जीवन बहुत सुगम हो जाये किंतु ये बातें सिर्फ लिखने में अच्छी लगती हैं, किंतु उतनी आसान नहीं हैं जितनी दिखती हैं। अपनी बेटी के अपहरण या गुम होने की रिपोर्ट दर्ज करवाने जो व्यक्ति पुलिस स्टेशन में जाता है, उसका अनुभव वही बता सकता है कि उसे कितना जलील होना पड़ता है। हालांकि, सभी मामलों में ऐसा नहीं होता किंतु होता है, यह सभी को पता है। सरकारी अस्पतालों में जाने पर कितनी आसानी से इलाज हो पाता है इसका तमाम लोगों के तमाम तरह के अनुभव हो सकते हैं, सरकारी स्कूलों में सभी बच्चों का दाखिला यदि ठीक से हो जाये तो आम लोगों का कष्ट काफी हद तक कम हो सकता है किंतु यह सौभाग्य सभी के भाग्य में है कहां?
ट्रेनों में किसी आपात काल स्थिति में यदि आम लोगों को टिकट मिल जाये तो उसे बहुत राहत मिल सकती है किंतु ऐसा हो नहीं पाता है, इस कारण यात्रा के नाम पर लोगों को काफी पैसा बेवजह खर्च करना पड़ता है। दिल्ली जैसे शहर में तो परिवहन व्यवस्था दिन-प्रतिदिन चैपट होती जा रही है। जो बसें शीला दीक्षित के समय ही सड़कों पर चलने के लायक नहीं थीं, वे आज सड़कों पर दौड़ रही हैं। दोपहर के समय बसें इतनी कम हो जाती हैं कि लोगों की समस्याएं बढ़ जाती हैं। दिल्ली की वर्तमान स्थितियों को देखकर इस बात की कल्पना की जाये कि यदि दिल्ली में मेट्रो नहीं होती तो दिल्ली की क्या स्थिति होती? कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि आम लोगों के दैनिक जीवन की आवश्यकताएं बहुत न्यूनतम हैं किंतु उससे निपटने के लिए दैनिक जीवन में बहुत कष्ट उठाना पड़ता है।
देखने में ये सब काम बहुत छोटे हैं लेकिन सरकारी सिस्टम की वजह से बेहद जटिल हो जाते हैं। सरकार से पचास हजार रुपये प्रति माह वेतन पाने वाला सरकारी कर्मचारी 15 हजार प्रति माह कमाने वाले से रिश्वत मांगने एवं लेने में जरा भी संकोच नहीं करता है। सरकारी बाबुओं के पास लोग गिड़गिडाते रहते हैं लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है किंतु रिश्वत की रकम मिलते ही कागजात से संबंधित सभी जटिलताएं दूर हो जाती हैं। ऐसे सिस्टम में लोक जीवन कैसे सुगम हो पायेगा। अतः, आज आवश्यकता इस बात की है कि स्थानीय स्तर के भ्रष्टाचार पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाये, अन्यथा लोक जीवन यूं ही चलेगा किंतु एक बात तय है कि एक न एक दिन स्थानीय स्तर के भ्रष्ट लोगों को सुधरना ही होगा। अतः, जितनी जल्दी ऐसे लोग सुधर जायें, उतना ही अच्छा होगा।
– जगदम्बा सिंह