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अजय सिंह चौहान || भगवान परशुराम और उनकी माता श्री रेणुका जी के पावन वात्सल्य और प्रेम का पौराणिक साक्षी श्री रेणुकाजी धाम और इसकी पवित्र झील, हिमाचल प्रदेश के उन अति प्राचीन और पवित्र सनातन तीर्थ स्थलों में से एक है जिनका उल्लेख तमाम पौराणिक गं्रथों और जनश्रुतियों में मिलता है। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित श्रीरेणुकाजी धाम को भले ही आज हिमाचल प्रदेश के कुछ महत्वपूर्ण तीर्थ और पर्यटन स्थलों में भी विशेष स्थान प्राप्त है लेकिन पौराणिक काल में यही स्थान एक सनातन तीर्थ के रूप में संपूर्ण संसार में विशेष स्थान रखता था। नाहन से करीब 40 किमी की दूरी पर स्थित श्री रेणुका जी धाम और इसकी पौराणिक महत्व और पौराणिक घटनाओं से जुड़ी यह पवित्र झील प्रदेश के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है।
झील का महत्व –
आज यह श्रीरेणुकाजी धाम और इसकी यह पवित्र झील मात्र पर्यटन स्थल ही नहीं बल्कि सनातन के लिए लोकप्रिय तीर्थ के साथ प्राचीनकाल से प्रबोधिनी एकादशी की पूर्व संध्या पर लगते आ रहे पांच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर के श्री रेणुका जी मेले में से एक है जो हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक लगता है।
पौराणिक मान्यता और जनश्रुति के अनुसार भगवान परशुराम आज भी इस धरती पर जीवित हैं और जामूकोटी के पर्वत पर उनका निवास है। और इसी मेले के दौरान भगवान परशुराम जामूकोटी से वर्ष में एक बार साधारण मानव का रूप धारण करके अपनी माता रेणुका से मिलने जरूर आते हैं।
भगवन परशुराम ने भी यहां की एक शिला पर बैठ कर ध्यान-साधना के साथ कठीन तप किया और भगवान शिव को प्रसन्न किया था जिसके बाद भगवान शिव से दिव्य परशु नामक हथियार प्राप्त करने के बाद उन्हें परशुराम का नाम मिला।
श्रीरेणुकाजी धाम की प्रसिद्ध रेणुका झील के किनारे माता श्री रेणुका जी और उनके पुत्र भगवान परशुराम जी के दिव्य मंदिर बने हुए हैं। श्रीरेणुकाजी धाम की इस झील का नाम भगवान परशुराम की माता देवी रेणुका के नाम पर उनके जीवनकाल में घटित एक प्राचीन घटना के बाद ही रखा जा चुका था।
झील का उदय –
पौराणिक परंपरा के अनुसार पूर्णमासी के पावन अवसर पर इस रेणुका झील में स्नान करने का विशेष पर्व होता है। इस पर्व के दौरान यहां न सिर्फ आस-पास के बल्कि दूर-दूर से असंख्य श्रद्धालु इस रेणुका झील के पवित्र जल में स्नान करके पुण्य प्राप्त करते हैं। जबकि पर्यटन के तौर पर आने वाले लोग यहां नौका विहार और मौज-मस्ती का आनंद लेते हैं।
जहां एक ओर इसे एक प्राकृतिक झील माना जाता है वहीं, पौराणिक तथ्य बताते हैं कि श्री रेणुका झील का उदय एक पौराणिक घटना के बाद हुआ था, जिसके अनुसार माता रेणुका ने इसी स्थान पर अपनी देह त्यागी थी, इसीलिए इसका आकार किसी मानव शरीर की आकृति में दिखता है। यह विशाल श्री रेणुका झील, समुद्र तल से 672 मीटर यानी करीब 2205 फिट की ऊँचाई पर स्थित है। रेणुका झील हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी और सबसे पवित्र झील के रूप में भी जानी जाती है। इसकी परिधि लगभग 3214 मीटर बताई जाती है।
पौराणिक साक्ष्य –
पौराणिक तथ्यों के अनुसार, रेणुका तीर्थ को भगवान विष्णु के छठे अवतार, यानी भगवान परशुराम जी का जन्मस्थान माना जाता है। भगवान परशुराम जी के माता-पिता महर्षि जमदग्नि और उनकी पत्नी भगवती रेणुका जी ने इसी झील के पास की एक पहाड़ी पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए लंबे समय तक तपस्या की थी।
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उस तपस्या के बाद भगवान शिव ने प्रसन्न होकर महर्षि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका को आशीर्वाद दिया और पुत्र के रूप में स्वयं भगवान विष्णु ने उस दिव्य वचन को पूरा किया और उनके पुत्र के रूप में भगवान परशुराम ने छठे अवतार के तौर पर जन्म लिया। माता रेणुका और महर्षि जमदग्नि के पुत्र परशुराम ने भी यहां ध्यान-साधना के साथ कठीन तप किया और भगवान शिव को प्रसन्न किया था जिसके बाद भगवान शिव से दिव्य परशु नामक हथियार प्राप्त करने के बाद उन्हें परशुराम का नाम मिला।
कैसे पहुंचे –
श्री रेणुका झील तक जाने के लिए अब यहां पक्की सड़कों का निर्माण कार्य हो चुका है जिसके बाद से यहां धीरे-धीरे न सिर्फ तीर्थ यात्रियों की बल्कि झील पर नौका विहार करने वालों की भी संख्या भी बढ़ने लगी है।
श्री रेणुकाधाम झील तक पहुंचने के लिए सड़क के रास्ते ही जाया जा सकता है। इसलिए पांवटा साहिब और अंबाला से श्री रेणुकाजी धाम तक सीधी बस सेवाएं मिल जाती हैं।
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अगर आप यहां वायु सेवा से आ रहे हैं तो श्री रेणुकाजी के सबसे नजदीक एयरपोर्ट देहरादून और चंडीगढ़ में हैं। लेकिन, अगर आप यहां अपने किसी भी शहर से रेल द्वारा आना चाहते हैं तो उसके लिए आपको यहां के नजदीकी रेलवे स्टेशनों में कालका, धर्मपुर, यमुनानगर, चंडीगढ़ और देहरादून में उतरना होगा।
रेणुकाजी की दूरी –
कालका रेलवे स्टेशन से श्री रेणुकाजी की दूरी करीब 145 किलोमीटर, यमुनानगर से 110 किमी, और चंडीगढ़ करीब 95 किलोमीटर और देहरादून से करीब 105 किलोमीटर है। देश की राजधानी दिल्ली से श्री रेणुकाजी धाम की दूरी करीब 320 किमी है जबकि हिमाचल की राजधानी शिमला से इसकी दूरी करीब 160 किमी है। इसके अलावा परवाणू से श्री रेणुकाधाम झील की दूरी करीब 115 किमी, पांवटा साहिब से करीब 50 किमी और नाहन से करीब 45 किमी की दूरी पर है।