कीर्ति चैहान | हमारे प्राचीन, वैदिक और पौराणिक ग्रंथों में, जिस नदी को ‘‘सरयू” के नाम से जाना जाता है, उस नदी का नाम बदलने की बात चल रही है। और फिर उसके बाद अगले ही महीने यानी जनवरी 2020 में, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के केबिनेट ने इसका नाम बदलने की मंजूरी भी दे दी कि, अब राजस्व अभिलेखों में यानी सभी प्रकार से सरकारी दस्तावेजों में इसका नाम अब से सरयू ही दर्ज किया जायेगा।
भले ही यह खबर हमारे आम समाचार पत्रों और टेलीविजन चैनलों में राजनीतिक कारणों से जगह नहीं ले पाई हो। लेकिन, यहां सवाल यह उठता है कि जिस सरयू नदी के किनारे पर, बसी अयोध्या नगरी में भगवान राम का जन्म हुआ था उस नदी का नाम तो पहले से ही सरयू है और हम तो उसे इसी नाम से जानते भी हैं, तो फिर इसका नाम बदलने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
और अगर इसका वास्तविक नाम बदल कर फिर से इसे वही ‘‘सरयू” नाम ही दिया गया है तो आखिर ऐसा किसलिए और क्यों किया गया है?
दरअसल, जिस प्रकार से हमारे हर प्रकार के धार्मिक स्थलों के साथ दुव्र्यवहार किया गया और उन्हें नष्ट करके उनके नामों को भी बदल दिया गया था, उसी प्रकार से ऐसा लगता है कि इस नदी के नाम और इसकी पौराणिकता के साथ भी, वही दुव्र्यवहार किया गया, और इसे क्षेत्रीय स्तर पर कुछ अटपटे और अलग-अलग नाम भी दिए गये, और उन्हें प्रचलित भी करवाया गया। यही कारण है कि आज इस नदी का नाम बदलने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
अब अगर हम इस नदी के उन नामों की तरफ जायें जिनके कारण इसे फिर से सरयू करना पड़ रहा है, तो पता चलता है कि इस नदी को कहीं काली, घाघरा और कहीं घग्घर जैसे कुछ अटपटे और अनावश्यक नामों से भी जाना जाता है। लेकिन, फिर भी पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आज भी दुनियाभर में सरयू नदी का वही वैदिक नाम प्रामाणिक और प्रचलित रूप में प्रसिद्ध है।
हालांकि, अब सरयू की लंबाई मात्र 350 किमी के दायरे में सिमट कर रह गई है। लेकिन अगर इसके पौराणिक उद्गम स्थल यानी मानसरोवर झील से इसकी लंबाई देखें तो यह करीब-करीब हजार किलोमीटर लंबी नदी है। और इसके इतने लंबे मार्ग में इसे भौगोलिक और क्षेत्रीय स्तर पर कई प्रकार के अलग-अलग नाम दिये गये हैं।
भारतीय सीमा में प्रवेश के बाद भी इसे अलग-अलग नामों से पहचाना जाता है। ऐसे में प्रदेश सरकार ने फैसला लिया है कि भारतीय सीमा में प्रवेश करने के बाद इस नदी को अब आधिकारिक तौर पर अलग-अलग क्षेत्रीय नामों के आधार पर नहीं बल्कि प्रामाणिक और प्रचलित सरयू नाम से ही पहचाना जायेगा।
वर्तमान दौर में इसके नाम को बदलने का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि अब एक बार फिर से इसी नदी के किनारे दुनिया का वही सबसे भव्य, सबसे पवित्र और सबसे महान धार्मिक स्थल यानी भगवान राम का मंदिर बन रहा है।