अजय सिंह चौहान || सद्गुरु जग्गी वासुदेव, एक ऐसी शख्सियत है जिनको हमारे अपने ही देश के हिन्दीभाषी क्षेत्रों के बहुत कम लोग जानते होंगे, लेकिन, भारत के बाहर के लोग जितना उन्हें जानते हैं और जितना चाहते हैं या जितना उनके प्रवचनों को वे लोग सूनते हैं या फिर यूं कहें कि विदेशी मूल के लोग जितने उत्सूक रहते हैं उनके कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए, उनकी संख्या किसी से छूपी नहीं है।
सीधे-सीधे कहें तो जग्गी वासुदेव, हिन्दू धर्म के लिए एक ऐसे धार्मिक गुरु हैं जो किसी भी प्रश्न का जवाब बेबाक फिलासफीकल अंदाज में देने की क्षमता रखते हैं। लेकिन, शायद ये भी एक बदकिस्मती है कि जिस धर्म या जिस समुदाय के वे धर्मगुरु हैं, खुद वही समुदाय उनके बारे में बहुत कम जानता है।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी के बारे में कहा जाता है कि कुछ साल पहले तक वे सिर्फ धार्मिक प्रवचनों और योग प्रचारक के तौर पर ही सीमित थे। लेकिन, अब वे खुल कर समाज और सामाजिक कार्यों के लिए सामने आ रहे हैं।
यहां ये भी ध्यान रखना होगा कि जग्गी वासुदेव अपने धर्म और अपने कर्म के बल पर अब एक बड़ी सख्सियत बन चुके हैं। इसलिए उन पर ऊंगनी उठाना आसान नहीं होगा, लेकिन, ये भी सच है कि उंगली उठाने वालों को कोई रोक भी तो नहीं सकता, ऐसे में उंगली तो उठेगी ही। फिर चाहे वो किसी राजनैतिक पार्टी की तरफ से हो या फिर किसी धर्म विशेष की तरफ से। जग्गी वासुदेव भी अब किसी अच्छे दाग से बच तो नहीं सकते।
लेकिन, इसमें ध्यान रखने वाली बात ये होती है कि वो कौन लोग हैं जो किसी पर उंगली उठा रहे हैं और किस पर उंगली उठा रहे हैं? और आखिर, ऐसा क्या हुआ कि लोग उन पर उठा रहे हैं? और क्योंकि ‘सद्गुरू’ जग्गी वासुदेव जिस प्रकार का या फिर जिस काम को कर रहे हैं या फिर यूं कहें कि वे जिस धर्म विशेष के लिए ये कार्य कर रहे हैं ऐसे में यहां सब कुछ बताना जरूरी भी नहीं है कि उन पर उंगली कौन उठायेगा और क्यों उठायेगा? लेकिन इतना तो तय है कि बहुत जल्द हमको इसके उदाहण भी देखने और सूनने को मिल ही जायेंगे।
जग्गी वासुदेव यानी कि ‘सद्गुरू’ जी आजकल विशेष तौर पर तमिलनाडु के मंदिरों की आजादी के लिए संषर्घ कर रहे हैं। जी हां, मंदिरों की आजादी के लिए। तो अब जब वे मंदिरों की आजादी के काम कर रहे हैं तो आप समझ ही गये होंगे कि उन पर उंगली कौन उठायेगा और क्यों उठायेगा?
दरअसल भारत के प्राचीन मंदिरों के संरक्षण के लिए सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी ‘ईशा फाउंडेशन’ के नाम से एक संस्था चला रहे हैं। ये अभियान तो वे काफी लंबे समय से चला रहे हैं। लेकिन, अब इसको वे समाज, सरकार और कानून के सामने सीधे-सीधे लाने की तैयारी में लग गये हैं।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने साफ-साफ कहा है कि वे खुद साल में एक या दो बार ही मंदिर जाते हैं लेकिन, इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि मंदिरों में मेरी आस्थान नहीं है। दरअसल हमारे मंदिर सिर्फ पूजास्थल नहीं है बल्कि स्थापत्य, कला, इतिहास और परंपरागत सांस्कृतिक और सामाजिक समारोह आदि के लिहाज से दुनिया के सबसे अनोखे, अद्भुत और बेहद अलग और पवित्र स्थान हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो मंदिर ही हमारी धड़कन हैं और मंदिरों की वजह से ही हमारी पहचान है।
खास तौर पर तमिलनाडु के मंदिरों के बारे में सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी कहते हैं कि यहां के मंदिरों जैसी भव्य और आकर्षक कारीगरी वाली प्राचीन इमारतें पूरी दुनिया में ओर कहीं भी देखने को नहीं मिलती।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी का कहना है कि तमिलनाडु सहीत भारत के हर एक प्राचीन मंदिर को दुनिया के सातों अजूबों से कहीं ज्यादा आकर्षक और अनोखा कहा जा सकता है। बावजूद इसके, सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी का कहना है कि हमारा और हमारे मंदिरों का दुर्भाग्य ये है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के राज में भारतीय मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण हो जाने के कारण न सिर्फ उनका अपमान हुआ है बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से खोखला भी कर दिया गया। और तो और, सन 1947 में हमारे देश से ईस्ट इंडिया कंपनी के चले जाने के बाद से वह सरकारी नियंत्रण समाप्त हो जाना चाहिए था, लेकिन, अफसोस कि बाद की सरकारें तो मंदिरों को लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार से भी ज्यादा विरोधी साबित हो कर उभरी।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी कहते हैं कि मैंने अपनी मोटर साइकिल पर भारत के कई हिस्सों की यात्राएं की हैं। कई धार्मिक स्थानों पर गया हूं, कई मंदिरों को करीब से देखा है। लेकिन, मैं जब भी तमिलनाडु के मंदिरों में जाता हूं तो, ये मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित करते हैं। ऐसा शायद इसलिए क्योंकि बहुत कम लोग ये बात जानते होंगे कि तमिनलाडु के ज्यादातर मंदिर ग्रेनाइट के पत्थरों को तराश कर बनाये गये हैं। और जिस तरह से इन मंदिरों में नक्काशी की गई है वैसी अद्भुत कलाकारी दुनिया में कहीं भी और किसी भी प्राचीन इमारत में देखने को नहीं मिलती।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव का कहना है कि मैं भारत से बाहर भी तमाम देशों में घूम चुका हूं। मैंने वहां की भी कई प्राचीन कलाओं को बारीकी से देखा है। उसी के आधार पर मैं ये बात कह सकता हूं कि ग्रेनाइट के पत्थरों को तराश कर उन्हें कलात्मक ढंग से आकार देना सिर्फ और सिर्फ प्राचीन भारतीयों के अलावा और कोई नहीं कर सकता था। क्योंकि ये बात सभी जानते हैं कि ग्रेनाइट पर नक्काशी करना एक बेहद मुश्किल कलाकारी का काम है, और तमिलनाडु के तमाम मंदिर तो प्रमाण हैं उस जीवंत प्राचीन कला, परंपरा और इतिहास के।
मंदिरों की दयनीय स्थित के बारे में जग्गी वासुदेव जी मानते हैं कि धर्म, अध्यात्म और समाज के लिए मंदिरों के इतना महत्वपूर्ण होने के बाद भी इनकी दयनीय हालत भविष्य के लिए चिंता में डाल देती है। क्योंकि, मंदिरों का वर्तमान दौर ऐसा चल रहा है जिसमें करीब 44,000 हिंदू मंदिरों की सालाना आय सिर्फ 128 करोड़ तक ही हो पाती है। जबकि इन हजारों मंदिरों की सालाना आय की तुलना अगर हम गुरुद्वारों से करें तो मात्र 85 गुरुद्वारों की सालाना आय से भी यह बहुत कम है।
सद्गुरु का कहना है कि यूनेस्को खुद भी तमिलनाडु के तमाम मंदिरों के ताजा हालत को लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुका है। जबकि तमिलनाडु सरकार ने खुद भी जुलाई 2020 में मद्रास हाईकोर्ट में प्रस्तुत होकर बताया था कि राज्य में करीब 11,999 ऐसे मंदिर है जिनमें वित्तीय संकट के चलते एक बार भी पूजा नहीं हो सकी है। जबकि करीब 34 हजार मंदिर ऐसे भी हैं, जिनकी वार्षिक आय मात्र 10,000 से भी कम है। इसके अलावा 37,000 मंदिर ऐसे भी थे जिनमें सिक्योरिटी, केयरटेकिंग, पूजा-पाठ और साफ-सफाई की व्यवस्था का जिम्मा केवल एक ही आदमी पर थ।
सद्गुरु ने गुरुद्वारों से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े देते हुए बताया कि हिन्दू मंदिरों को सीखना चाहिए कि कैसे ‘गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी’ अपने समुदाय के लिए कार्य करती है और करीब 85 गुरुद्वारों के माध्यम से जनसेवा के कार्यों का संचालन करती है। गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी’ हमारे लिए प्रबंधन की एक मिसाल के तौर पर हो सकती है।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी कहते हैं कि ये हमारा दूर्भाग्य है कि सरकार की देखरेख में चल रहे इन मंदिरों के इतने स्पष्ट और सटीक आंकड़े होने के बावजूद इन मंदिरों पर से अब तक भी ईस्ट इंडिया कंपनी का वो कानूनी कलंक हटाया नहीं जा रहा है।