दक्षिण भारत का एक राज्य है केरल। केरल में सिर्फ 941 ग्राम पंचायतें ही हैं जबकि मदरसों की संख्या 21,683 है। इन मदरसों के लिए करीब 511 करोड़ से अधिक मासिक खर्च आता है, जबकि रिटायर मौलवियों को दी जाने वाली पेंशन का खर्च 6,317 करोड़ से भी अधिक है।
अब अगर हम इसके विपरीत यानी कि सनातन संस्कृति के बारे में बात करें तो दक्षिण भारत के चार राज्यों में करीब 4 लाख मंदिर सरकारी कब्जे में हैं और इन सभी मन्दिरों से होने वाली आय के कुछ हिस्से को चर्च पर खर्च पर खर्च किया जाता है और कुछ मस्जिदों पर। सीधे-सीधे कहें तो मन्दिरों को एक फैक्ट्री के रूप में सरकारें इस्तेमाल कर रही हैं।
खबरें बताती हैं कि सनातन संस्कृति के इन मंदिरों के दम पर पलने वाले कितने ही सन्त केवल इस कारण से तड़प-तड़प कर मर गए क्योंकि उनके मंदिरों पर सरकारों ने कब्जा कर लिया और उनकी कमाई को सरकारों ने छीन कर चर्च और मस्जिदों को दे दिया और जो उनके शिष्य बचे हैं उनमें से कुछ तो कोर्ट के चक्कर लगा-लगा कर परमपद को प्राप्त हो चुके हैं और कुछ होने के पास पहुंच रहे हैं।
यह है इस हिंदुस्तान का वह वर्तमान जो अपने ही धर्म और संस्कृति के भविष्य को बता रहा है जबकि उधर इसी संस्कृति के कई दिग्गज लेकिन चापलूस प्रवृत्ति के सन्त, महन्त, शंकराचार्य, धर्माचार्य और कथाकार एसी वाले आलीशान मकानों में रहते हैं और एसी वाली कारों में बैठ कर देश में धर्म का दिखावे वाला प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
आज हमारे धर्म और संस्कृति का यह बहुत ही विनाशक व विध्वंसकारी स्वरूप होता जा रहा है। संसद में 303 सदस्यों वाली हिंदुओं के हित की कहे जाने वाली सरकार होने के बाद भी इस विकट समस्या के ऊपर जरा-सा ध्यान देना उचित नहीं समझ रही है।
ऐसा लगता है जैसे कि वह दिन दूर नहीं जब इस तरह का वातावरण पूरे देश में देखने को मिले और कत्लेआम का तांडव देखने को मिले। अतः धर्मप्रेमी सनातनियों को खुद ही उठना होगा और सरकारों को भी इसके लिए जगाना होगा और उन राक्षसों के खिलाफ शीघ्र-अति शीघ्र उठ खड़ा होना ही पड़ेगा।
रोहिंग्याओं के पक्ष में क्यों हैं भारतीय ?
यह संदेश सभी धर्माचार्यों के लिए सुप्रीम कोर्ट के हिन्दुत्ववादी वकील श्री अश्विनी उपाध्याय ने यह कहते हुए दिया है कि देश के सभी धर्माचार्य धर्म की रक्षा करने के लिए अपनी मूल भावना को छोड़कर सिर्फ दक्षिणा लेने में ही लगे हुए हैं। इस विषय पर हमने जब वकील साहब से फोन पर बात की तो वकील साहब ने बताया कि रोहिंग्याओं को निकालने के लिए सिर्फ एक पीआईएल सुप्रीम कोर्ट में मेरे द्वारा ही किया गया है जबकि मुस्लिम समुदायों के द्वारा 250 पीआईएल रोहिंग्याओं के पक्ष में किया गया है।
अगर हमारे धर्मगुरु जन भी इन सब मुद्दों पर पीआईएल दाखिल करें तो उसका असर पड़ेगा लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। श्री अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि हमारे धर्मगुरुओं की अकर्मण्यता के कारण ही आर्टिकल 30, 30ए अभी तक लागू है जो असंवैधानिक है। मन्दिरों पर सरकार का नियंत्रण भी असंवैधानिक है लेकिन इन मुद्दों को अगर धर्म गुरु नहीं उठाएंगे तो एक दिन सनातन संस्कृति समाप्त हो जायेगी, तब न रहेगा सनातन धर्म और न रहेंगे धर्म गुरु क्योंकि अभी तक हम अपने ही देश के नौ राज्यों में अल्प संख्यक हो चुके हैं। अश्विनी उपाध्याय जी के विचार सनातन धर्म के प्रति उत्तम तो हैं लेकिन, उन पर अमल नहीं हो पा रहा है। अतः हम सब को मिलकर एक साथ सनातन धर्म के लिए मुखर होकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है, तभी हमारा सनातन धर्म सुरक्षित होगा।
– आचार्य नन्द किशोर