अजय सिंह चौहान || मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महर्षि सांदीपनि का आश्रम (Sandipani Ashram Ujjain) ऋषि सांदीपनि की वह तपोभूमी है जिसको द्वापर युग के समय से सारी दुनिया में धर्म, अध्यात्म और वैदिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए सबसे उत्तम स्थान माना जाता आ रहा है। महर्षि सांदीपनि का यह आश्रम वही तपोभूमि और शिक्षास्थली है जिसका निर्माण द्वापर युग में महर्षि सांदीपनि ने वेद, पुराण, शास्त्र, धर्म और नैतिक शिक्षा के लिए करवाया था। महाभारत, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मपुराण तथा अग्निपुराण जैसे महान ग्रंथों में भी सांदीपनि की इस विद्यास्थली या आश्रम का उल्लेख मिलता है।
धर्म, अध्यात्मक और मौक्ष की नगरी उज्जैनी में स्थित सांदीपनि आश्रम (Sandipani Ashram Ujjain) की प्रसिद्धि और पौराणिकता का महत्व इसलिए भी है क्योंकि श्रीकृष्ण, बलराम और उनके मित्र सुदामा ने यहां इसी आश्रम में महर्षि सांदीपनि से वेदों और शास्त्रों का ज्ञान लिया था। इसीलिए आज भी सांदीपनि आश्रम को श्रीकृष्ण की विद्यास्थली के नाम से जाना जाता है। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार श्रीकृष्ण आज से लगभग 5,500 वर्ष पूर्व द्वापर युग में उज्जैनी में स्थित महर्षि सांदीपनि के इसी आश्रम में शिक्षा लेने के लिए आए थे।
हमारे धर्मग्रथों में बताया गया है कि कंस का वध करने के पश्चात श्रीकृष्ण ने मथुरा का राजपाट अपने नाना उग्रसेन को सौंप दिया था। और इसके बाद श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव और माता देवकी ने बलराम और श्रीकृष्ण को यज्ञोपवीत संस्कार और शिक्षा के लिए उज्जैनी में संदीपनी ऋषि के आश्रम में भेजा था। जिसके बाद श्रीकृष्ण ने इसी आश्रम में रहकर चैंसठ कलाएं सीखीं तथा वेदों और पुराणों का अध्ययन किया था।
आश्रम का वह मुख्य स्थान जहां कभी गुरु सांदीपनि बैठा करते थे आज वहां मंदिर के रूप में एक कमरा बना हुआ है। उस कमरे के भीतर गुरु-शिष्य परंपरा को अलग-अलग तरह से मूर्ति रूप में दर्शाया गया है। इन्हीं मूर्तियों में से एक गुरु सांदीपनि की प्रतिमा और प्रतिकात्मक रूप से उनकी चरण पादुकाएं दशाई गई हैं और जहां बैठ कर बलराम, श्रीकृष्ण और सुदामा विद्यार्जन किया करते थे आज उसी स्थान पर उनकी प्रतिमाओं को भी पढ़ने और लिखने की मुद्रा में दर्शाया गया है।
इस आश्रम (Sandipani Ashram Ujjain) की सबसे खास विशेषता भी यही है कि यहां बलराम, श्रीकृष्ण और सुदामा को विद्यार्थियों के रूप में दिखाया गया है, जबकि इसके अलावा बलराम, श्रीकृष्ण और सुदामा की यह अवस्था दुनिया में और कहीं भी देखने को नहीं। गुरुकुल की दिवारों पर बनें श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा सहित महर्षि सांदीपनी के विभिन्न भित्ती चित्रों में कृष्ण की विभिन्न प्रकार की लीलाओं को बड़ी ही सुंदरता से दर्शाया गया है।
आश्रम में ही महर्षि संदीपनी (Sandipani Ashram Ujjain) स्मृति ग्रंथालय भी है जिसमें उनके जीवन से संबंधित विभिन्न प्रकार के ग्रंथ और वेद-पुराणों को रखा गया है। इसके अलावा आश्रम की ओर से इस ग्रंथालय को और अधिक विस्तार देने की योजना भी चल रही है जिसमें प्राचीनतम शिक्षा प्रणाली और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विषय में विस्तार से समझाया जायेगा। वे कौन-सी 64 कलाएं थी जो यहां पर सिखाई जाती थीं और भगवान श्रीकृष्ण ने किस प्रकार से अपने विद्यार्थी जीवन में इस आश्रम को प्रसिद्ध किया आदि विषयों पर भी प्रकाश डाला जायेगा।
आश्रम परिसर में ही मौजूद गोमती कुंड श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र है। गोमती कुंड के विषय में मान्यता है कि श्रीकृष्ण के आह्वान पर इस कुण्ड में पवित्र गोमती नदी का जल उत्पन्न हुआ था। इसके लिए श्रीकृष्ण का उद्देश्य था कि उनके गुरु महर्षि संदीपनी (Sandipani Ashram Ujjain) को बार-बार आश्रम से सैकड़ों मिल दूर अन्य पवित्र स्थलों की यात्रा न करनी पड़े। इसलिए इसे गोमती कुंड के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा पुराणों में गोमती कुंड को प्राचीन काल से ही आश्रम के लिए जल आपूर्ति का एक प्रमुख माध्यम माना गया है।
आश्रम के पास ही में स्थित एक ‘अंकपट’ को लेकर लोगों में ऐसा विश्वास है कि श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम यहीं बैठकर अंक लिखने का अभ्यास किया था। और इसी कारण इस संपूर्ण क्षेत्र को प्राचीनकाल से ही अंकपात क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
उज्जैन में स्थित महर्षि संदीपनी (Sandipani Ashram Ujjain) का यह आश्रम शैव और वैष्णव दोनों ही परंपराओं को मानने वालों के लिए सिद्ध पीठ माना जाता है।
गुरु पूर्णिमा और जन्मअष्टमी जैसे विशेष अवसरों पर आज भी हजारों की तादाद में श्रद्धालु इस आश्रम में आते हैं। इन विशेष अवसरों पर यहां ऋषि संदीपनी, श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा की प्रतिमाओं का पूरी विधि-विधान के साथ पंचामृत व गंगाजल से अभिषेक किया जाता है और इसके बाद हवन भी किया जाता है।
मध्य युगीन इतिहास में पाये गये तक्षशिला और नालंदा विश्व प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्रों की तरह ही द्वापर युग में भी वैद और विज्ञान की शिक्षा के क्षेत्र में उज्जैन एक महत्वपूर्ण केंद्र था। विभिन्न वेदों और शास्त्रों में इस बात का जिक्र है कि उस समय ऋषि संदीपनी का आश्रम (Sandipani Ashram Ujjain) वेद और विज्ञान की शिक्षा के क्षेत्र में इतना प्रसिद्धा था कि दुनियाभर के छात्र इसमें शिक्षा लेने के लिए आया करते थे। और इसमें उस समय छात्रों की संख्या भी लगभग दस हजार से ज्यादा हुआ करती थी। और गुरु संदीपनी के उन्हीं विद्यार्थियों में भगवान श्रीकृष्ण, उनके मित्र सुदामा और भाई बलराम ने भी शिक्षा प्राप्त की थी।
हालांकि आज यह कोई बहुत बड़ा या भव्य आश्रम नहीं है बल्कि एक मामुली-सा दिखने वाला और अन्य मंदिरों और आश्रमों की भीड़ में खो जाने जैसा ही है। हिन्दू धर्म के लिए पवित्र और पौराणिक महत्व का होने के बावजूद यह आश्रम उपेक्षा का शिकार है और रखरखाव के नाम पर सरकार की ओर से यहां कोई विशेष योगदान नहीं है। हालांकि सन 2016 के सिंहस्थ कुम्भ मेले को देखते हुए इस आश्रम में भी कुछ सौंदर्यीकरण किया गया, लेकिन फिर भी यहां का पवित्र गोमती कुंड विशेष मरम्मत, रखरखाव और साफ-सफाई की मांग कर रहा है।
एक छोटे से स्थान पर बना यह आश्रम हिन्दू धर्म और अध्यात्म के लिए आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की द्वापर युग में हुआ करता था। किसी समय यह आश्रम चारों और से घने वनों तथा फलों के पेड़ों से घिरा रहता था और श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ मिलकर यहां के उसी जंगल में इंधन के लिए लकड़ियां बिनने जाया करते थे। लेकिन अब यहां सिर्फ इंसानी भीड़ देखने को मिलती है। जबकि घने जंगलों के नाम पर यहां मात्र कुछ ही पैड़-पैधे नजर आते हैं। देशभर और दुनिया के कई हिस्सों से उज्जैन दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या यहां आसानी से देखने को मिल जाती है।
इस आश्रम का एक सबसे अनोखा और आश्चर्यचकीत करने वाला रहस्य यह है कि यहां आश्रम के सामने ही मराठा शैली में बना श्री कुंडेश्वर महादेव मंदिर है जो चैरासी महादेवों में से एक है। श्री कुंडेश्वर महादेव के विषय में ऐसा माना जाता है कि पूरी पृथ्वी पर यही एक ऐसा शिवलिंग है जिसके सामने नंदी की एक ऐसी छोटी-सी दुर्लभ मूर्ति है जो खड़ी है। जबकि आमतौर पर अन्य सभी मंदिरों में बैठी हुई ही दिखाई देती है।
नंदी की इस विशेष मूर्ति के बारे में मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण इस आश्रम में आये तो कार्तिक मास की बैकुंठ चतुर्दशी के दिन अवंतिका के राजा महाकाल स्वयं उनसे मिलने के लिए गुरु सांदीपनि के आश्रम में पधारे थे। और जब बात गुरु के सम्मान की हो तो भला नंदी बैठ कैसे सकते थे? इसलिए वे खड़े ही रहे। और मान्यता है कि तभी से इस आश्रम (Sandipani Ashram Ujjain) में श्री कुंडेश्वर महादेव और श्रीकृष्ण के मिलन के विशेष अवसर पर प्रत्येक बैकुंठ चैदस को यहां हरिहर मिलन के रूप में मनाया जाता है।
इसके अलावा इसी श्री कुंडेश्वर महादेव मंदिर के पीछे की तरफ एक अन्य मंदिर भी है जो श्री सर्वेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि इसकी स्थापना भी लगभग 5,500 वर्ष पहले द्वापर युग में हुई थी। श्री सर्वेश्वर महादेव के इस शिवलिंग के विषय में माना जाता है कि यह शिवलिंग भी लगभग 5,500 वर्ष पुराना शिवलिंग है और इसे स्वयं महर्षि सांदीपनि (Sandipani Ashram Ujjain) ने बिल्व पत्र से उत्पन्न किया था। इस शिवलिंग की जलाधारी में पत्थर के शेषनाग के दर्शन होते हैं जो प्रायः पूरे भारत वर्ष में और कहीं नहीं है। बताया जाता है कि महर्षि सांदीपनि इसी मंदिर में बैठकर तप किया करते थे।
महर्षि सांदीपनि आश्रम (Sandipani Ashram Ujjain) उज्जैन शहर के मंगलनाथ रोड पर अंकपात क्षेत्र में आता है। उज्जैन के रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से यहां की दूरी लगभग 6 किलोमीटर और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से मात्र 4 किलोमीटर है। इस आश्रम तक पहुंचने के लिए शहर में चलने वाली सिटी बस, आॅटो एवं टैक्सी सेवा आसानी से उपलब्ध हो जाती है।