अजय सिंह चौहान || सारागढ़ी का युद्ध यानी बेटल ऑफ सारागढ़ी के नाम से जाना जाने वाला युद्ध और इसका परिणाम हमारे इतिहास का एक बहुत बड़ा अध्याय बन सकता था। लेकिन हमारे इतिहासकारों ने इसे इतिहास की एक बड़ी घटना नहीं बल्कि एक छोटी सी घटना बताकर अनछूआ ही रहने दिया। यह घटना इतिहास के पन्नों में मात्र कुछ ही शब्दों में सिमट कर रह गई। और उन डिजाइनर और प्रायोजित इतिहासकारों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे जानते थे और आज भी जानते हैं कि अगर इसको उजागर किया होता तो इसमें लाभ किसको होगा और हानि किसकी होगी।
तो चलिए आज हम बात करते हैं बेटल आॅफ सारागढ़ी की। यानी सारागढ़ी का वह युद्ध जो मात्र 21 बहादुर सैनिकों और 10,000 दुश्मनों के बीच लड़ा गया। हालांकि, यह स्थान आजकल आधुनिक पाकिस्तान में हैै लेकिन, इतिहास की वह घटना आज भी देश के कई लोगों को ना तो मालूम है और ना ही इसके बारे में कईयों ने कभी सूना भी था। इस विषय और घटना पर बाॅलीवुड में एक फिल्म भी बन चुकी है जिसका नाम है ‘केसरी’।
दरअसल, यह घटना है आधुनिक पाकिस्तान के सारागढ़ी की है जहां सन 1897 में मात्र 21 बहादुर सैनिकों ने अफगानिस्तान के पश्तून की ओर से आने वाले 10,000 दुश्मनों का जबर्दस्त मुकाबला किया।
‘थर्मोपाइले’ से भी भयंकर था सारागढ़ी युद्ध –
हो सकता है कि कई लोगों ने हाॅलीवुड में बनी एक बहुत ही प्रसिद्ध फिल्म ‘300’ को देखा होगी। और अगर नहीं देखा हो तो हम बता देते हैं कि आखिर ऐसा क्या था उस फिल्म में जिसकी चर्चा यहां हम कर रहे हैं। दरअसल, ‘300′ नामक वह फिल्म एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित है जिसमें थर्मोपाइले के युद्ध में स्पार्टा के राजा लियोनाइडस ने अपने 300 बहादुर स्पार्टन सैनिकों के साथ पर्शिया की भारी सेना का बहादुरी से मुकाबला किया था। सन 2006 में बनी यह फिल्म उस समय की बहुत अच्छी फिल्म मानी जाती है। इतिहास में थर्मोपाइले के युद्ध के नाम से घटीत एक घटना के आधार पर यह फिल्म बनी थी। और इसमें उन 300 सैनिकों की विरता को दर्शाया गया है।
सारागढ़ी की लड़ाई का इतिहास –
12 सितम्बर, सन 1897 को सारागढ़ी नामक स्थान पर यह युद्ध लड़ा गया था। अब यह स्थान आधुनिक पाकिस्तान में है। तथ्यों के अनुसार, उस दिन के घटनाक्रम के अनुसार लगभग 10,000 अफगान पश्तूनों ने तत्कालीन भारतीय आर्मी की सारागढ़ी पोस्ट पर आक्रमण कर दिया था। जबकि, सारागढ़ी के किले पर बनी आर्मी पोस्ट पर ब्रिटिश इंडियन आर्मी की 36वीं सिख बटालियन के मात्र 21 सिख सिपाही तैनात थे। ऐसे में अफगानियों को लगा कि इस छोटी सी पोस्ट को जीतना काफी आसान होगा। लेकिन यह उनके लिए बहुत बड़ी भूल साबित हुई और इसमें उनको बहुत बड़ा नुकसार उठाना पड़ा।
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अफगानिस्तान की ओर से आने वाले पश्तूनों को पता भी नहीं था कि सिख बटालियन के जाबांज सिपाही किस मिट्टी के बने हुए थे। उन सभी 21 बहादुरों ने दस हजार से अधिक पश्तूनों से घिरा हुआ देखकर वहां से भागने के बजाय अपनी आखिरी सांस तक लड़ने का फैसला कर लिया। घटना बताती है कि जब उनके पास गोलियां खत्म हो गयी तो उन्होंने तलवारों से ही युद्ध शुरू कर दिया और ऐसा घमासान युद्ध हुआ कि उसकी मिसालें आज तक दी जाती हैं।
मात्र कुछ इतिहासकार जिन्होंने इस युद्ध को तवज्जो दी और उसका बखान किया उनके अनुसार, यह एक ऐसा महानतम युद्ध है, जब सभी 21 योद्धा आमने-सामने की लड़ाई में आखिरी साँस तक अद्भुत वीरता से लड़े। वे यह भी मानते हैं कि मानव इतिहास में ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं हो सकता है, जब ऐसा भयंकर मुकाबला हुआ हो।
इतिहासकार इस युद्ध को थर्मोपयले के युद्ध से भी भयानक और नृशंस युद्ध मानते है। क्योंकि थर्मोपयले के युद्ध में स्पार्टा के राजा लियोनाइडस ने अपने 300 बहादुर सैनिकों के साथ पर्शिया की भारी सेना सामना किया था, जबकि सारागढ़ी के इस युद्ध में तो मात्र 21 ही योद्धा थे।
सारागढ़ी किला –
सिख बटालियन के उन सभी 21 जाबांजों को यह अच्छी तरह पता था कि जो युद्ध वे लड़े जा रहे हैं उसका परिणाम क्या होने वाला है। वे यह तो नहीं जानते थे कि इतिहास में उनको जगह मिलेगी या नहीं लेकिन वे यह बात जरूर जानते थे कि उनके देश और धर्म के कम से कम कुछ लोग तो उन्हें बहादुर जरूर मानेंगे।
लेकिन, उन दस हजार से भी अधिक अफगानिस्तानी पश्तूनों को तो इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वे जहां हाथ डाल रहे हैं उसका अंजाम क्या होने वाला है? सारागढ़ी के युद्ध का परिणाम यह हुआ कि वे सभी 21 के 21 सिख सैनिक अंत तक लड़ते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन वीरगति को पाप्त होने से पहले उन्होंने अफगानियों के 600 से अधिक लड़ाकों को मौत के घाट उतार दिया था। हालांकि, अफगान उस पोस्त को जीत तो गए थे, लेकिन, उनका इतना बड़ा नुकसान हुआ कि वे भी हैरान हो गए।
ब्रिटेन में आज भी मनाया जाता है सारागढ़ी डे –
ऐतिहासिक घटनाक्रम के अनुसार, इस युद्ध के दो दिन बाद ब्रिटिश इंडियन आर्मी ने आक्रमण करके एक बार फिर से सारागढ़ी की उस पोस्ट पर कब्जा कर लिया था। सिख बटालियन के उन सभी 21 महान भारतीय सैनिकों को ‘ब्रिटिश एंपायर’ की तरफ से मरणोपरांत बहादुरी का सर्वोच्च पुरस्कार इंडियन आर्डर ऑफ मेरीट दिया गया। माना जाता है कि यह पुरस्कार वर्तमान में दिए जाने वाले सम्मान परमवीर चक्र के बराबर ही है।
उन जांबाज 21 सिख लड़ाकों की याद में 12 सितम्बर को ही ब्रिटेन में सारागढ़ी डे भी घोषित किया गया था और यह आज भी हर वर्ष मनाया जाता है। भारत में सिख रेजीमेंट इसे रेजिमेंटल बैटल होनर्स डे के रूप में मनाती है।
हमारे लिए यह बहुत ही दुःख और शर्म की बात है कि हमारे इतिहास में मुगलों के इतिहास का तो बखुबी वर्णन किया जाता है, लेकिन, उनके आक्रमण और अत्याचारों की कहानियों और कायरता के तथ्यों को छुपा लिया जाता है। सारागढ़ी युद्ध की अद्भुत बहादुरी और इसकी गौरव गाथा इस बात का प्रमाण है कि इतिहासकारों ने कितना भेदभाव किया है और न जाने ऐसी कितनी ऐतिहासिक घटनाओं और उनके प्रमाणों को नष्ट कर दिया होगा।