अजय सिंह चौहान || सरयू नदी के नाम के विषय में प्रामाणिक तौर पर कहा जाता है कि यह नदी मानसरोवर झील से होकर निकलती है इसलिए इसे सरोवर से ही सरयू नाम दिया गया। सरयू नदी एक वैदिक कालीन या वैदिक युग की अति प्राचीन नदियों में से एक है। इसलिए इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी प्रमुखता से मिलता है। इसके अलावा सरयू नदी हमारे भगवान श्रीराम के अवतरण और परमधाम के गमन की साक्षी रही है। रामायण के अनुसार भगवान राम ने इसी नदी में जल समाधि ली थी। भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में सरयू नदी (Sarayu River) के दाएं तट पर स्थित है।
रामायण में बताया गया है कि सरयू नदी (Sarayu River) उस स्थान से होकर बहती है जो राजा दशरथ की राजधानी अयोध्या नगरी है और भगवान राम की जन्भूमि भी है। वाल्मीकि रामायण के 24वें सर्ग में तो सरयू नदी का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है। सनातन धर्म और संस्कृति के लिए इसका महत्व उतना ही है जितना की गंगा नदी का है।
तुलसी दास जी ने सरयू नदी (Sarayu River) को अयोध्या की पहचान के प्रतीक के रूप में बताया गया है। अथर्ववेद में तो अयोध्या को ईशपुरी भी बताया गया है और इसकी तुलना स्वर्ग से की गयी है। अयोध्या सनातन संस्कृति के सात पवित्र तीर्थस्थलों यानी सप्तपुरियों में से एक है। हमारे विभिन्न शास्त्रों और पुराणों में कहा गया है कि सरयू नदी भगवान विष्णु के नेत्रों से निकली है।
यदि हम पुराणों पर चर्चा करें तो सर्वप्रथम वामन पुराण के 13वें अध्याय और ब्रह्म पुराण के 19वें अध्याय में बताया जाता है कि सरयू और शारदा नामक नदियां हिमालय से ही प्रवाहित होकर निकलतीं हैं। इसके अलावा वायुपुराण के 45वें अध्याय में गंगा, गोमती, यमुना, शारदा और सरयू (Sarayu River) जैसी नदियों को हिमालय से प्रवाहमान बताया गया है। मत्स्यपुराण के 121वें अध्याय में सरयू का वर्णन मिलता है।
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ऐसा माना जाता है कि है कि सरयू नदी (Sarayu River) के पानी में चर्म रोगों को दूर करने की अद्भुत औषधीय शक्ति है। और इसको यह औषधिय शक्ति मिलती है इसके पानी में पल रहे विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं और वनस्पतियों से जो नदी के पानी को शुद्ध कर पानी में औषधीय शक्तियां बढ़ाती हैं। लेकिन, अब दुर्भाग्य यह है कि पिछले कुछ वर्षों से इस नदी के साथ लगातार छेड़छाड़ होती जा रही है जिसके चलते इसका प्राकृतिक संतुलन और प्रवाह दोनों ही बिगड़ गया है।
भौगोलिक दृष्टि से देखें तो सरयू (Sarayu River) का उदगम स्थल कैलास मानसरोवर झील माना जाता है, परंतु अब कई प्रकार के भौगोलिक, पर्यावरण और प्रदूषण संबंधि भयंकर बदलावों के चलते यह नदी दुर्भाग्यवश उत्तर प्रदेश के लखीमपुरी खीरी जिले के खैरीगढ़ रियासत में स्थित सिंगाही के जंगल की एक छोटी सी झील से होकर अयोध्या नगरी तक ही सिमट चुकी है।
भौगोलिक दृष्टि से सरयू का प्रवाह कैलास मानसरोवर झील से कब और कैसे थम गया, इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती, लेकिन सरस्वती व गोमती नदी की तरह ही इस नदी का प्रवाह संपर्क टूट जाने में भी भौगोलिक कारणों को ही माना जा रहा है। आशंका है कि आने वाले समय में इस नदी के अस्तित्व पर भयंकर संकट मंडरा रहा है।
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दक्षिणी तिब्बत के ऊंचे पर्वत शिखरों यानी हिमालय के ऊंचे पर्वतों में जन्मी सरयू नदी की लंबाई लगभग 1,080 किमी है। इसके उद्गम के एक दम सटीक स्थान के विषय में अगर बात की जाय तो यह स्थान समुद्र तल से लगभग 13,000 फिट की ऊंचाई पर पवित्र मानसरोवर झील से होकर ही निकलती है।
लेकिन क्योंकि इसके उद्गम स्थान को अब चीन ने हथिया लिया है इसलिए वहां यानी चीन में इसे जियागेलाहे नदी के नाम से पहचाना जाता है। जबकि हमारे पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस नदी को मैदानी क्षेत्रों में आने से पहले यानी पहाड़ी क्षेत्रों में जैसे नेपाल और उत्तराखंड के हिस्सों में कर्णाली नदी के नाम से पहचाना जाता है।
इसके आरंभिक स्थान से लगभग 72 किलोमीटर के बाद ही यह कर्णाली नदी यानी सरयू नदी (Sarayu River) नेपाल में प्रवेश कर जाती है और नेपाल में इसे स्थानीय भाषा में मंचू के नाम से भी पहचाना जाता है। इसके बाद यह उत्तरी भारत में प्रवेश करती है और उत्तराखंड से होते हुए बहराइच, गोंडा, अयोध्या और फिर पूर्वांचल के छोटे-बड़े कई शहरों को पवित्र करती हुई आगे बढ़ती है और बिहार में छपरा के पास यह एक बड़ी और प्रमुख सहायक नदी के रूप में गंगा नदी में मिल जाती है।
यहां ध्यान रखने वाली बात है कि उत्तराखंड में पहुंचते-पहुंचते इसका नाम करनाली या काली नदी हो जाता है। जबकि यही नदी जब उत्तर प्रदेश में पहुंचती है तो यह शारदा नदी भी बन जाती है। उत्तर प्रदेश में गोंडा से अयोध्या तक यही नदी अपने अति प्राचीन और पौराणिक नाम यानी सरयू के नाम से संपूर्ण संसार में प्रसिद्ध है। लेकिन, सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि यही पवित्र सरयू नदी और इसका यह सरयू नाम अयोध्या से आगे जाकर घाघरा या फिर घर्घरा नदी के नाम में बदल जाता है।