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अजय सिंह चौहान | हमारे प्राचीन, वैदिक और पौराणिक ग्रंथों में जिस नदी को ‘‘सरयू” के नाम से जाना जाता है उस नदी का नाम बदल दिया गया है। भले ही यह खबर हमारे समाचार पत्रों में और टेलीविजन चैनलों में राजनीतिक कारणों से ज्यादा जगह नहीं ले पाई हो। लेकिन, यहां सवाल यह उठता है कि जिस सरयू नदी के किनारे पर बसी अयोध्या नगरी में भगवान राम का जन्म हुआ था उस नदी का नाम तो पहले से ही सरयू है और हम उसे इसी नाम से जानते हैं तो फिर इसका नाम बदलने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
और अगर इसका वास्तविक नाम बदल कर फिर से वही ‘‘सरयू‘‘ नाम ही कर दिया गया है तो आखिर ऐसा किसलिए और क्यों किया गया है?
भौगोलिक दृष्टि से सरयू का उदगम स्थल कैलास मानसरोवर झील है, लेकिन, अब कई प्रकार के भौगोलिक, पर्यावरण और प्रदूषण जैसे भयंकर बदलावों के कारण यह नदी दुर्भाग्यवश उत्तर प्रदेश के लखीमपुरी खीरी जिले के खैरीगढ़ रियासत में स्थित सिंगाही के जंगल की एक छोटी सी झील से होकर अयोध्या नगरी तक ही सिमट चुकी है।
ऐसे में जाहिर है कि जिस प्रकार से हमारे हर प्रकार के धार्मिक स्थलों के साथ दुव्र्यवहार किया गया और उन्हें नष्ट करके उनके नामों को भी बदल दिया गया था उसी प्रकार इस नदी के नाम और इसकी पौराणिकता के साथ भी वही दुव्र्यवहार किया गया और इसे क्षेत्रीय स्तर पर अलग-अलग नाम दिए गये और उन्हें प्रचलित भी करवाया गया। यही कारण है कि आज इस नदी का नाम बदलने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
दरअसल, सरयू नदी ना सिर्फ भगवान राम के साथ जुड़ी हुई है बल्कि उनसे भी हजारों वर्ष पहले से ही इसका धार्मिक महत्व रहा है। इसीलिए धर्म और अध्यात्म की दृष्टि से यह हमारे देश की भी सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है। लेकिन, इसका दूर्भाग्य यह है कि इसको यहां घाघरा या घग्घर जैसे कुछ अटपटे और अनावश्यक नामों से भी जाना जाता है।
वर्तमान दौर में इसके नाम को बदलने का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि अब एक बार फिर से इसी नदी के किनारे दुनिया का वही सबसे भव्य, सबसे पवित्र और सबसे महान धार्मिक स्थल बन रहा है। ऐसे में प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ जी द्वारा इसके किनारे पर बसी अयोध्या नगरी को जिस तरह से उपहार पर उपहार दिए जा रहे हैं उसमें सरयू नदी का वह पवित्र वैदिक और पौराणिक नाम एक बार फिर से लौटाना भी शामिल है।
अब यहां सवाल उठता है कि हम जिसे मुख्य रूप से सरयू नदी के नाम से जानते हैं भला उसको इतने नाम कैसे मिले? इस विषय पर कई इतिहासकारों और भूगर्भ शास्त्रियों का मानना है कि खास तौर से स्थानीय स्तर पर या जिन क्षेत्रों से होकर ये नदियां बहतीं हैं वहां उनके नाम और उनकी पहचान अलग-अलग तरह से हो सकती है।
हालांकि अधिकतर लोग इसी बात से भी भ्रमित हो जाते हैं कि घाघरा और सरयू दो अलग-अलग नदियों के नाम हैं। जबकि सच्चचाई तो यह है कि यह एक ही नदी है और क्षेत्रीय स्तर पर इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
लेकिन, पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इस समय भी दुनियाभर में सरयू नदी का वही वैदिक नाम प्रामाणिक और प्रचलित रूप में प्रसिद्ध है। ऐसे में इसको आधिकारिक तौर पर अब क्षेत्रीय नामों के आधार पर नहीं बल्कि प्रामाणिक और प्रचलित सरयू नाम से ही पहचाना जायेगा।
भूगर्भ शास्त्रियों का यह भी कहना है कि स्थानीय स्तर पर तो नदियों के नामों में कुछ भी बदलाव किए जा सकते हैं लेकिन इनकी भौगोलिक स्थिति एवं पहचान से संबंधित मानचित्र आदि में किसी भी प्रकार के नाम के बदलाव का निर्णय केवल सर्वे आॅफ इंडिया ही कर सकता है और सर्वे आॅफ इंडिया केंद्र सरकार के अधीन काम करता है। और ऐसे में इस नदी का या फिर किसी भी अन्य नदी के नाम में बदलाव होता है तो सर्वे आॅफ इंडिया के मानचित्र में भी यह बदलाव करना पड़ता है।
सरयू का नदी का जन्म दक्षिणी तिब्बत के ऊंचे पर्वत शिखरों यानी हिमालय के ऊंचे पर्वतों में हुआ है। और अगर हम सरयू नदी के उद्गम के एक दम सटीक स्थान का वर्णन करें तो यह स्थान समुद्र तल से लगभग 13,000 फिट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र श्री कैलाश मानसरोवर झील से होकर निकलती है।
लेकिन क्योंकि सरयू नदी के उद्गम स्थान पर अब अब हमारे लाल पड़ौसी का कब्जा हो चुका है इसलिए वहां इसे जियागेलाहे नदी के नाम से पहचाना जाता है। जबकि उन पर्वतों में इस नदी को कर्णाली नदी के नाम से पहचाना जाता था और आज भी हमारे पौराणिक गं्रथों में इसका यही नाम प्रचलन में मिलता है।
इसके आरंभिक स्थान से लगभग 72 किलोमीटर के बाद ही यह नदी नेपाल में प्रवेश कर जाती है और नेपाल में इसे मंचू और कर्णाली जैसे नामों से पहचाना जाता है। इसके बाद यह उत्तरी भारत में प्रवेश करती है और उत्तराखंड से होते हुए बहराइच, गोंडा, अयोध्या और फिर पूर्वांचल के छोटे-बड़े कई शहरों को पवित्र करती हुई आगे बढ़ती है और बिहार में छपरा के पास यह एक बड़ी और प्रमुख सहायक नदी के रूप में गंगा में मिल जाती है।
सबसे मजेदार बात यह है कि उत्तराखंड में पहुंचते-पहुंचते इसका नाम बदल कर करनाली नदी या फिर या काली नदी हो जाता है। जबकि यही नदी जब उत्तर प्रदेश में पहुंचती है तो यह शारदा कहलाती है। जबकि उत्तर प्रदेश गोंडा से अयोध्या के आस-पास तक यही नदी अपने प्राचीन और पौराणिक नाम यानी सरयू के नाम से जानी जाती है। और इससे भी आश्यर्च की बात तो यह है कि यही पवित्र सरयू नदी और इसका यह सरयू नाम अयोध्या से आगे जाकर घाघरा नदी के नाम में बदल जाता है।
जबकि अंग्रेजी हुकुमत के समय के कई दस्तावेजों में इसको भाषा और उच्चारण की सहूलियत के अनुसार गोगरा और घाघरा नाम दे दिया गया था जो कि लकीर के फकीर कहे जाने वाले नौकरशों के कारण ही अब तक भी प्रचलन में रहा।
वहीं कुछ दस्तावेज ऐसे भी हैं जिनके बारे में जानकार मानते हैं कि इसका वही प्राचीन, वैदिक और पौराणिक नाम सरयू और शारदा प्रचलन में इसलिए रहा क्योंकि उन दिनों में इन दस्तावेजों पर कुछ ऐसे भारतीय अधिकारी और राष्ट्रवादी लोग भी काम कर रहे थे जो इस नदी का महत्व और इसके नाम का सही ऊच्चारण जाननते थे इसलिए उन्होंने इसका वही सरयू नाम लिखना जारी रखा।
सरयू नाम के विषय में प्रामाणिक तौर पर कहा जा सकता है कि यह नदी मानसरोवर झील के पास से होकर निकलती है इसलिए इसे सरयू नाम दिया गया। लेकिन, क्षेत्रीय स्तर पर सरयू को भला घाघरा नाम कैसे मिला, तो उसके विषय में हमें कोई स्पष्ट प्रमाण हमें नहीं मिलता।
लेकिन, अगर हम कुछ जटील शब्दों का मतलब ढूंढते हैं तो यहां स्पष्ट तौर पर तो नहीं लेकिन कहा जा सकता है लेकिन, फिर भी पता चलता है कि इसको यह घाघरा नाम असल में घर्घरा शब्द से ही मिला होगा। और घर्घरा से यह विकृत होकर घाघरा बन गया होगा। यानी भाषा और उच्चारण के अनुसार यह घर्घरा से घाघरा हो गया।
दरअसल, घर्घरा एक प्रकार के वाद्ययंत्रों को कहा जाता है जिसमें प्राचीनकाल की वीणा भी शामिल है। इसके अलावा घुघँरू और घोड़े के गले में पहनाई जाने वाली छोटी-छोटी घंटियों को भी घर्घरा कहा जाता है।
लेकिन, अब सवाल यह उठता है कि भला यहां इन वाद्ययंत्रों का इस नदी के नाम से क्या लेना-देना? तो ऐसे में यहां माना यह जाता है कि विशेषकर इस क्षेत्र से होकर बहने पर सरयू नदी के जल में एक प्रकार का मध्यम संगीत सुनाई देता है इसलिए इसे यहां घर्घरा वाद्ययंत्र का यह नाम दिया गया जो बाद में भाषा और उच्चारण के अनुसार घर्घरा से घाघरा हो गया होगा।
दरअसल, यह एक वैदिक कालीन या वैदिक युग की अति प्राचीन नदी है इसलिए इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। रामायण में बताया गया है कि सरयू नदी उस स्थान से होकर बहती है जो राजा दशरथ की राजधानी अयोध्या नगरी है और भगवान राम की जन्भूमि भी है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हमारे हर प्रकार के छोटे-बड़े पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों में इस नदी का जिक्र सरयू के नाम से ही आता है। लेकिन, अब ऐसा नहीं होने वाला है। क्योंकि आधिकारिक तौर पर राजस्व अभिलेखों में इसका नाम सरयू दर्ज कर दिया गया है। और योगी सरकार के इस फैसले से अयोध्या सहित देश के सभी साधु-संत बहुत खुश हैं। इसके नाम को लेकर न सिर्फ अयोध्या के बल्कि देशभर के संतों और महंतों की यह बहुत पुरानी मांग थी कि इस नदी को केवल इसके उसी वैदिक और पवित्र सरयू नाम से पहचाना जाना चाहिए।
हालांकि, वर्तमान में भौगोलिक कारणों से इस नदी का दायरा अब सिमट चुका है। और पर्यावरण की मार झेल रही यह नदी अब स्वयं भी अपने अस्त्तिव की लड़ाई लड़ रही है।