अजय सिंह चौहान || आज हम सभी ‘‘सिंगल यूज प्लास्टिक’’ (single use plastic in india) पर पूर्ण रूप से निर्भर हो चुके हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि प्लास्टिक एक प्रकार से मानव जीवन में वरदान बन कर आया है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से यही प्लास्टिक हमारे जीवन में वरदान नहीं बल्कि एक स्लो पाॅयजन यानी धीमा जहर बन कर उभर रहा है। फिर भी हम इसका पीछे छोड़ने को तैयार नहीं है। हम जानते हैं कि आज बाजार में विशेष कर सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प के रूप में प्राकृतिक तौर बने अन्य कई प्रकार के उत्पादन उपलब्ध हैं लेकिन उसके बाद भी हम उसी प्लास्टिक रूपी धीमे जहर को पसंद कर रहे हैं।
हम ये भी जानते हैं कि सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic in india) को भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया है। लेकिन, अपनी दिनचर्या में हमें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है कि कब, कहां और कैसे हम इस प्लास्टिक का इस्तमाल आज भी लगातार करते ही जा रहे हैं। जबकि सच तो ये है कि भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जा चुका है। लेकिन, कोई भी इस प्रतिबंध को मानने के लिए तैयार नहीं है।
सबसे पहले तो यह जान लें कि सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic in india) पूरी तरह से एक कृत्रिम उत्पाद है। इस उत्पादन में हर प्रकार की थैलियां, डिस्पोजेबल कप, चाय-पानी के ग्लास या कप, प्लास्टिक की चम्मच, पैकेजिंग की थैलियां, दूध और छाछ की थैलियां, बिस्किट, नमकीन और किराना दुकानों पर मिलने वाले हर प्रकार के सामानों की पैकिजिंग वाली रंग-बिरंगी पन्नियां, कोल्ड ड्रिक्स, सोडा और पानी की बोतलें आदि में लगने वाला प्लास्टिक भी सिंगल यूज प्लास्टिक ही है, यानी ये सब भी सिर्फ एक ही बार में इस्तमाल किया जाने वाला धीमा जहर है।
अगर हम प्लास्टिक के उत्पान की बात करें तो, एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ भारत जैसे देश में ही हर वर्ष करीब 14 मिलियन टन प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। जबकि वर्ष 1990 में करीब 20000 (बीस हजार) टन सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic in india) की खपत हुआ करती थी। प्लास्टिक की यही खपत आज तीन लाख टन से अधिक तक पहुंच चुकी है। बावजूद इसके आज भी इसका उत्पादन कम नहीं हो पा रहा है, जिसकी वजह से लगातार बड़े पैमाने पर नदियों, तालाबों और नालियों में कचरा फैलता जा रहा है।
प्लास्टिक वेस्ट से आज हम अपने आस-पास की ही नहीं बल्कि देश के छोटे-बड़े हर एक शहर की नालियों को भरा हुआ देख सकते हैं। देश के हर हिस्से की नदियों के किनारे और छोटे-बड़े हर प्रकार के तालाबों में प्लास्टिक वेस्ट (single use plastic in india) को न सिर्फ तैरते हुए बल्कि उनके आसपास ढेर लगे हुए भी देख सकते हैं। कई खुले मैदानों में तो प्लास्टिक वेस्ट को इस प्रकार से देखा जा सकता है मानो किसी खेत या बगीचे में रंग-बिरंगे फूलों के पौधे उगे हुए हों।
हैरानी तो इस बात की है कि भारत में प्लास्टिक वेस्ट को लेकर बड़े-बड़े सेमिनार और जागरूकता अभियान चला कर लाखों-करोड़ों रुपए की राशि का देशी-विदेशी सरकारों से डोनेशन बटोरने का धंधा करने वाली स्वयं सेवी संस्थाएं और एनजीओ आदि तो अपने खुद के कार्यालयों में प्लास्टिक वेस्ट (single use plastic in india) के अंबार लगा कर बैठी हैं। तो भला ऐसी संस्थाएं समाज की सेवा कैसे कर पायेंगी?
ताजा आंकड़ों के अनुसार, इस समय भारत सहीत करीब 80 से अधिक देशों में सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic in india) पर प्रतिबंध लगा हुआ है। इसमें से कुछ पर आंशिक तो कुछ देशों में पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। इनमें सबसे अधिक अफ्रीका के 30 देश शामिल हैं जहां सिंगल यूज प्लास्टिक प्रतिबंधित है। जबकि इनमें से कुछ देश तो ऐसे भी हैं जहां एक प्रतिशत तक भी प्लास्टिक का न तो प्रयोग होता है और न ही उत्पादन होता है।
रवान्डा में सन 2008 से और केन्या जैसे देश में 2017 के बाद से प्लास्टिक न सिर्फ शत प्रतिशत प्रतिबंधित है बल्कि यदि किसी के पास प्लास्टिक का छोटा सा भी सामान मिल जाये तो उसे सजा दी जाती है। जबकि अमेरिका जैसे देश की हाल तो ये है कि सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic in india) पर अक्टूबर 2020 के बाद ही प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन वहां इस प्रतिबंध का असर न के बराबर ही देखने को मिलता है।
हालांकि, भारत सरकार सहीत तमाम प्रकार के सामाजिक संगठनों एवं संस्थाओं ने सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रति जागरूकता तो दिखाई है लेकिन, नाम मात्र के लिए। जबकि परदे के पीछे की वास्तविकता तो यह है कि वही सामाजिक संगठन और स्वयं सेवी संस्थाओं से जुड़े लोग आज भी न सिर्फ अपने सामाजिक जीवन में बल्कि निजी जीवन में भी धड़ल्ले से सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic in india) का उपयोग करते हुए दिख जाते हैं।
भारत में इस समय तमाम नेशनल और मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा आनलाइन तरीकों से जितने भी प्रकार के उत्पादों या सामानों का वितरण किया जाता है उन सामानों को सुरक्षित और संरक्षित तरीकों से घर-घर पहुंचाने के नाम पर अधिक से अधिक सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic in india) का इस्तमाल किया जा रहा है। लेकिन, यहां न तो किसी एनजीओ की और न ही सरकारों की नजर जा रही है। ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि हाथी के दांत खाने के अलग होते हैं और दिखाने के अलग होते हैं।
फिलहाल सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic in india) के उपयोग, प्रतिबंध या फिर उसके प्रति जागरूकता को लेकर न तो भारत सरकार के पास और न ही यहां की किसी स्वयंसेवी संस्था या किसी वैज्ञानिक के पास कोई ऐसी जानकारी या सुझाव है जिसके द्वारा इस समस्या से निपटा जा सके या इसका स्थायी समाधान निकाला जा सके। ऐसे में कहा जा सकता है कि भारत सरकार भले ही इसे पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर चुकी है, लेकिन जब तक हर एक व्यक्ति निजी तौर पर इसका इस्तमाल बंद नहीं कर देता तब तक हम यूं ही बीमार और निराश होते रहेंगे। क्योंकि सिंगल यूज प्लास्टिक प्रगति का प्रतीक जरूर है लेकिन, यह प्रगति महाविनाश की ओर ही ले जा रही है न कि उज्जवल भविष्य की ओर।