जो लोग यूक्रेन में डॉक्टरी पढ़ने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों का मजाक बना रहे हैं, उन्होंने कभी उनका मजाक बनाया है, जो शून्य या उससे भी कम नम्बर पाने वाले बच्चों को भारत के सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला पाते देखा है?
60 प्रतिशत से अधिक सीटें शिक्षा में आरक्षित हैं, नौकरी में आरक्षित हैं। यह सम्मान की बात है या शर्म की?
और फिर तुम बोलते हो कि शिक्षा से लेकर प्रत्येक क्षेत्र में गुणवत्ता में गिरावट क्यों हो रही है पिछले कुछ दशकों में?
भारत के 90% मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा और इलाज का क्या स्तर है, इससे आप परिचित भी हैं?
लापरवाही एक अलग मुद्दा है।
नाकाबिलियत और निकम्मापन अलग मुद्दा है।
जो बच्चे अच्छे रैंक प्राप्त करने के बाद भी सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं पा पाते, और प्राइवेट मेडिकल कॉलेज का खर्चा नहीं उठा सकते, वे यदि यूक्रेन में जाकर डॉक्टरी पढ़ रहे हैं तो गलत क्या है?
क्या यह गैर कानूनी है?
यदि है तो ठीक है।
वरना यह मजाक बौद्धिक विकलांगता का प्रमाण है।
जब इलाज कराना होगा तो प्रत्येक व्यक्ति को AIIMS और मेदांता चाहिए। राजनीतिज्ञ से लेकर एक असफर तक को।
आरक्षित श्रेणी के डॉक्टर सिर्फ आम जनता का इलाज करते हैं। और फिर तुम शिकायत करते हो इलाज पर।
इस मुद्दे पर बहस किया जाना चाहिए।