अजय सिंह चौहान || आज भले ही हम बढ़िया से बढ़िया प्लास्टिक की पैकेजिंग वाले किसी भी प्रकार के सामान को स्टेटस सिंबल समझ कर चलते हों, लेकिन, भविष्य के लिए यह सबसे बड़ा अभिषाप बनता जा रहा है। बढ़िया प्लास्टिक की पैकेजिंग के तौर पर हम चाहे खाने-पीने का सामान खरीदते हैं या फिर पहनने वाले ब्रांडेड कपड़े, या फिर डेली यूज का या राशन का कोई भी सामन। हर प्रकार की चीज आज हमें जितनी बढ़िया प्लास्टिक (single use plastic) की पैकेजिंग में मिलती है उतनी ही वह वस्तु भरोसेमंद और हैल्दी मानी जाती है।
लेकिन, आस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी आफ न्यूकैसल में किए गए एक हैरान करने वाले अध्ययन में पाया गया है कि इस धरती पर रहने वाला हर इंसान एक हफ्ते में किसी न किसी रूप में औसतन पांच ग्राम तक प्लास्टिक निगलता जा रहा है, और खासतौर पर उस प्लास्टिक को जो हमारे डेली लाईफ में एक अच्छी प्लास्टिक पैकेजिंग (single use plastic) के तौर पर हमें पसंद आती है। फिर चाहे वह इंसान अमेरिका का हो, फ्रांस का हो, इंग्लैंड का हो, जापान का हो या फिर भारत में रहने वाला ही क्यों न हो।
इसके अलावा, मेडिकल यूनिवर्सिटी आफ विएना और एनवायरमेंट एजेंसी आफ आस्ट्रिया के शोधकर्ताओं ने भी अपने अध्ययन में यही पाया है कि प्लास्टिक के करीब नौ तरह के कण खाने-पीने या फिर अन्य तरीकों से इंसान के शरीर में पहुंच रहे हैं। प्लास्टिक (single use plastic) के ये कण लसीका तंत्र और लीवर तक पहुंच कर न सिर्फ इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित कर रहे हैं बल्कि अन्य प्रकार के पशु एवं पक्षी भी इससे बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार प्लास्टिक (single use plastic) के कण आंतों और पेट की बीमारी से पीड़ित मरीजों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं। प्लास्टिक के इन कणों से कोशिकाएं तो प्रभावित होती ही हैं साथ ही इससे रक्त के प्रवाह में भी बाधा आती है।
एक अन्य शोध के मुताबिक, हर साल एक व्यक्ति 52 हजार से ज्यादा प्लास्टिक (single use plastic) के माइक्रो कण खाने-पानी और सांस के जरिए निगल रहा है। माइक्रो कण यानी ऐसे छोटे-छोटे कण जिनको एक आम इंसान अपने जीवन में कभी भी आसानी से देख भी नहीं सकता। लेकिन, आज हम उसे खा भी रहे हैं और पी भी रहे हैं।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार पीने के लिए इस्तमाल में आने वाले नल के पानी में प्लास्टिक फाइबर पाए जाने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है। आंकड़ों के अनुसार, भारत में उपलब्ध पीने के पानी में 82.4 फीसदी तक प्लास्टिक (single use plastic in Hindi) फाइबर पाया जाता है। यानी प्रति 500 मिली लीटर पानी में चार प्लास्टिक फाइबर मौजूद होते हैं।
इसके अलावा प्लास्टिक कचरे का एक तिहाई से भी अधिक हिस्सा प्रकृति में मिलता जा रहा है, खासकर उस पानी में जो हमारे पीने का सबसे बड़ा स्रोत है। हैरानी की बात तो ये है कि प्लास्टिक (single use plastic in Hindi) के जलने से उत्पन्न होने वाली कार्बन डायआक्साइड की मात्रा भी वर्ष 2030 तक तीन गुणा तक होने वाली है, जिसके कारण आम लोगों में दिल का दौरा पड़ने की समस्या और भी तेज हो जायेगी। यानी हृदय रोगों के बढ़ने के मामलों में कहीं ज्यादा तेजी आ जाएगी।
देश-विदेश के सभी विशेषज्ञों का एकमत से यही मानना है कि किसी भी प्रकार का प्लास्टिक सेहत के लिए खतरनाक होता है, लेकिन, सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic in Hindi) लोगों के स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक जहरीला और पर्यावरण के लिए भी सबसे अधिक खतरनाक होता जा रहा है।
सेहत से जुड़े डाॅक्टरों और अन्य एक्सपर्ट लोगों का कहना है कि प्लास्टिक हमारी सेहत को सीधा-सीधा भी, और अन्य कई तरीकों से भी प्रभावित करता जा रहा है। इसका कारण यही है कि प्राकृतिक कचरा तो अधिक से अधिक 6 से 8 महीनों में गल कर समाप्त हो जाता है और प्रकृति के साथ मिल कर शुद्ध हो जाता है, लेकिन, किसी भी प्रकार का प्लास्टिक (single use plastic in hindi) सदियों तक न तो गलता है और न ही प्रकृति और वातावरण के साथ मिलकर अपना आकार बदलता है, जिसके कारण यह सबसे अधिक पानी, हवा और मिट्टी को प्रदूषित करता जा रहा है।
जाॅर्जिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, लगभग 41 लाख टन से 1.27 करोड़ टन के बीच प्लास्टिक (single use plastic in Hindi) का कचरा हर वर्ष समुद्र में चला जाता है, जिसके कि वर्ष 2025 तक इसके दोगुना होने की उम्मीद है।
हैरानी तो इस बात की है कि समुद्र में पहुंचने वाला 90 फीसदी प्लास्टिक का कचरा दुनिया की दस बड़ी नदियों से होकर जा रहा है। एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि समुद्रों और महासागरों में हर वर्ष करीब 10 लाख से अधिक समुद्री पक्षी और करीब एक लाख स्तनधारी जीव प्लास्टिक (single use plastic in Hindi) प्रदूषण के कारण बेमौत मरते जा रहे हैं।
समुद्र और नदियों में जमा प्लास्टिक (single use plastic in Hindi) के मलबे से उनमें पलने वाले कछुओं की दम घुटने से मौत होती जा रही है, जबकि व्हेल मछलियां भी इसी प्लास्टिक के जहर का शिकार होती जा रही हैं।
खबरों के अनुसार प्रशांत महासागर में जमा प्लास्टि का कचरा ‘द ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच’ (The Great Pacific Garbage Patch) के नाम से प्रसिद्ध हो चुका है जो समुद्र में प्लास्टिक कचरे का अब तक का सबसे बड़ा ठिकाना बन चुका है। अनुमान है कि यहां पर लगभग 80 हजार टन से भी ज्यादा प्लास्टिक कचरा जमा हो चुका है।
एक्सपर्ट लोगों का कहना है कि सिंगल यूज प्लास्टिक को सबसे अधिक शहरी आबादी ही इस्तमाल करती है और यही कारण है कि शहरी आबादी ही इसके प्रति सबसे अधिक लापरवाह भी दिखती है। क्योंकि आम शहरी आबादी बड़ी ही लापवारी से सिंगल यूज प्लास्टिक को इधर-उधर फैंक देती है, जिसके कारण वही प्लास्टिक (single use plastic in Hindi) नालियों में घुस जाता है और उनमें बहने वाले गंदे पानी को जाम कर देता है। धीरे-धीरे नालियों का वही पानी उस सिंगल यूज प्लास्टिक के साथ मिलकर नई-नई प्रकार की बीमारियों को जन्म देता है और आसपास की घनी आबादी को अनेकों प्रकार से संक्रमित करता रहता है।