वर्तमान समय में राजनीति एवं समाज सेवा की बात आती है तो ऐसा लगता है कि उसका स्वरूप दिन-प्रतिदिन बदलता जा रहा है। एक समय ऐसा था जब सामान्य से सामान्य व्यक्ति की राजनीति में कद्र होती थी और समाज में निःस्वार्थ भाव से जो काम करता था, उससे लोगों को बहुत उम्मीदों होती थीं किन्तु राजनीति में दबे पांव जब से आर्थिक रूप से सक्षम लोगों ने अपना प्रभाव बढ़ाया है, ‘गुदड़ी के लालों’ का वजूद निरंतर कम होता जा रहा है।
कमोबेश देश के सभी राजनैतिक दलों को लगता है कि राजनीति में अब वही सफल हो सकता है जो आर्थिक रूप से सक्षम हो, चाहे वह सत्ता की राजनीति हो या संगठन की किन्तु व्यावहारिक तौर पर देखने में आता है कि अपनी आर्थिक सक्षमता का लाभ उठाकर जो लोग सत्ता एवं संगठन में जगह बनाने में कामयाब हो जाते हैं, उनमें से अधिकांश लोग धीरे-धीरे चंदागिरी की राह पकड़ लेते हैं यानी वे भी संगठन की गतिविधियों को संचालित करने के लिए आपसी सहयोग का ही सहारा लेने लगते हैं।
आर्थिक रूप से सक्षम लोगों को भी यदि चंदागिरी या यूं कहें कि आपसी सहयोग का ही रास्ता अख्तियार करना है तो अनुभवी, पार्टी के प्रति वफादार एवं कर्तव्यनिष्ठ ‘गुदड़ी के लालों’ को यदि अधिकांश संख्या में आगे लाया जाये तो चंदागिरी एवं आपसी सहयोग से वे और भी बेहतर काम कर सकते हैं। इससे राजनीति एवं समाज सेवा में ‘गुदड़ी के लाल’ भी स्थापित होते रहेंगे और समाज को उसके बीच से ही ‘लो प्रोफाइल’ सेवक भी मिलते रहेंगे।
वैसे भी देखा जाये तो यदि कोई राजनीति या जीवन के किसी भी क्षेत्र में किसी प्रभावशाली ओहदे पर होता है तो उसको मदद करने वाले काफी संख्या में मिल जाते हैं। चाहे वे ‘गुदड़ी के लाल’ ही क्यों न हों। आजकल देखने में आता है कि समाज में तमाम तरह की सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं अन्य प्रकार की संस्थाओं में ऐसे लोगों की पूछ अधिक होती है जो संस्थाओं के कार्यक्रमों में आर्थिक सहयोग करते हैं किन्तु इस मामले में जहां तक ‘गुदड़ी के लालों’ की बात है तो व्यक्तिगत रूप से वे संस्थाओं का आर्थिक सहयोग भले ही न कर सकें किन्तु अन्य लोगों से आर्थिक सहयोग करवा तो सकते हैं, इसलिए समाज की जिम्मेदारी बनती है कि ‘गुदड़ी के लालों’ को भी स्थापित करने में मदद करे क्योंकि जिस समाज में हर तरह के लोगों का विकास होता है, उस समाज को सबसे अच्छा माना जाता है।
राजनीतिक दल जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता निर्माण की बात तो करते हैं किन्तु व्यावहारिक रूप से जब काबिलियत का आधार आर्थिक सक्षमता बनने लगती है तो आर्थिक रूप से कमजोर लोग जुड़ने से कतराने लगते हैं जबकि वास्तविकता तो यह है कि राजनीति एवं समाज सेवा में जितना महत्व अर्थ का है, उससे अधिक समय का है। समय देने के मामले में निश्चित रूप से ‘गुदड़ी के लाल’ भारी पड़ते हैं। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि राजनीति एवं समाज सेवा में ‘गुदड़ी के लालों’ को भी महत्व दिया जाये। इसके लिए सभी को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
– जगदम्बा सिंह