आज तक जितनी शादियों में मैं गया हूँ, उनमे से करीब 80% में दुल्हा-दुल्हन की शक्ल तक नही देखी… उनका नाम तक नही जानता था… अक्सर तो विवाह समारोहों मे जाना और वापस आना भी हो गया पर ख्याल तक नही आया और ना ही कभी देखने की कोशिश भी की, कि स्टेज कहाँ सजा है, युगल कहाँ बैठा है… बैठा भी है कि नहीं, या बरात आई या नहीं…
भारत में लगभग हर विवाह में हम 70% अनावश्यक लोगों को आमंत्रण देते हैं…
अनावश्यक लोग वो है जिन्हें आपके विवाह मे कोई रुचि नही..वे केवल दावत में आये होते हैं… जो आपका केवल नाम जानते हैं… जो केवल आपके घर की लोकेशन जानते हैं.. जो केवल आपकी पद-प्रतिष्ठा जानते हैं…
और जो केवल एक वक्त के स्वादिष्ट और विविधता पूर्ण व्यञ्जनों का स्वाद लेने आते हैं…
ये होते हैं अनावश्यक लोग….
विवाह कोई सत्यनारायण भगवान की कथा नही है कि हर आते जाते राह चलते को रोक रोक कर प्रसाद दिया जाए…
केवल आपके रिश्तेदारों, कुछ बहुत निकटस्थ मित्रों के अलावा आपके विवाह मे किसी को रुचि नही होती..
ये ताम झाम, पंडाल झालर, सैकड़ों पकवान, आर्केस्ट्रा DJ, दहेज का मंहगा सामान एक संक्रामक बीमारी का काम करता है.. कैसे..?
लोग आते हैं इसे देखते हैं और सोचते हैं.. “मै भी ऐसा ही इंतजाम करूँगा, बल्कि इससे बेहतर करूंगा “… और लोग करते हैं… चाहे उनकी चमड़ी बिक जाए…
लोग 70% अनावश्यक लोगों को अपने वैभव प्रदर्शन करने में अपने जीवन भर की कमाई लुटा देते हैं.. लोन तक ले लेते हैं…
और उधर विवाह में आमंत्रित फालतू जनता, गेस्ट हाउस के गेट से अंदर सीधे भोजन तक पहुच कर, भोजन उदरस्थ करके, लिफाफा पकड़ा कर निकल लेती है…
आपके लाखों का ताम झाम उनकी आँखों में बस आधे घंटे के लिए पड़ता है, पर आप उसकी किश्तें जीवन भर चुकाते हो… क्या हमें इस अपव्यय और दिखावे को रोकना नहीं चाहिए..!
– साहिल पटेल