वीर सावरकर से कुछ लोग इतनी नफ़रत क्यों करते हैं? क्योंकि वीर सावरकर ने अपने विचारों में ‘हिंदू राजनीति’ को आधार मान कर धार्मिक प्रथाओं के साथ-साथ क्षेत्रीय प्रथाओं को भी आधार बनाने पर जोर देने की बात कही थी। उन्होंने अपनी एक किताब में लिखा है कि मुस्लिमों और ईसाईयों की भूमि अरब या फिलिस्तीन है जो की यहां से बहुत दूर है। उनकी पौराणिक कथाएं और ईश्वर से जुड़ी तमाम अवधारणाएं भी मनगढ़ंत हैं। भारत के प्रति न तो उनके राष्ट्रवादी विचार हैं और ना ही उनके कोई पौराणिक नायक हैं। यही कारण है कि भारत की मिट्टी में जन्में उनके बच्चों के नाम और उनका दृष्टिकोण भी पूरी तरह से विदेशी मूल का ही है, तभी तो उनका राष्ट्र प्रेम भी विभाजित है और राजनीति भी दोहरी है।
वीर सावरकर ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, हिंदू महासभा के अध्यक्ष के नाते एक नारा दिया था- ‘राजनीति का हिंदूकरण’। बस फिर क्या था, उनके इतना कहते ही कांग्रेस उनके विरोध में हो गई। यहां तक की संघ ने भी उनका साथ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि संघ नहीं चाहता था कि कोई मुसलामानों या अंग्रेज़ों को बुरा कहे।