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एक हिन्दू स्त्री के अपवित्र होने का क्या अर्थ क्या है?

admin 30 January 2023
HINUD-WOMAN
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आज हिन्दु धर्म का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि, भारत भूमि पर आक्रमण करने वाले विधर्मियों ने और उसके बाद उसी मानसिकता वाले राजनेताओं ने हमारी परंपरागत सनातन संस्कृति पर आधारित जीवन पद्धति को निशाना बनाकर इसपर अनेकों बार अनेकों प्रकार से कुठाराघात किया और यह आज भी जारी है. लेकिन जितना इसे हम अपना दुर्भाग्य कह सकते हैं उससे कहीं अधिक हमारा सौभाग्य भी रहा और आज भी हम सौभाग्यशाली ही हैं कि सनातन परम्परा और सनातन समाज और सनातन देश की महान् नारियों (Traditional Hindu women) ने अपने मुश्किल समय में भी उन षड्यंत्रकारियों को मुँहतोड़ जवाब दिया है. सनातन की महान् नारियों ने अपने शौर्य व तेजस्विता से शत्रुओं को यह बता दिया कि भारत की नारी जितनी त्यागमयी होती है उतनी ही साहसी भी हैं.

आज भले ही नारीवाद का ढोल पीटने वाले षड्यंत्रकारी नारी को अपना अधिकार दिलाने के लिए गले फाड़ रहे हैं और नारी के खिलाफ ही षड्यंत्र रच रहे हैं लेकिन प्राचीन भारत की नारियां (Traditional Hindu women) उस दौर में भी समाज में अपना स्थान माँगने नहीं गयी, और न ही आज जाती हैं. क्योंकि सनातन परम्परा में नारियों को मंच पर खड़े होकर अपने अभावों की माँग पेश करने की आवश्यकता कभी महसूस ही नहीं हुई और न ही किसी संस्था या व्यक्तिविशेष का सहारा लेकर या उनकी स्थापना के माध्यम से उसमें नारी के धार्मिक और सामाजिक अधिकारों पर वाद-विवाद किया या अपने अधिकार गिनवाए.

हिन्दू धर्म की नारी (Traditional Hindu women) ने समाज में अपने महत्वपूर्ण स्थान, कर्त्तव्य और क्षेत्र को अनादिकाल से न सिर्फ पहचाना था बल्कि उसका सम्मान भी किया और पुरुष को भी उसका महत्व समझाया और समय-समय पर याद दिलाया कि आवश्यकता पड़ने पर यही नारी पुरुष के बराबर फैसले ले सकती है और युद्ध भी कर सकती है, राजसिंहासन का कार्यभार भी संभाल सकती है और निस्वार्थ भाव से परिवार, समाज, देश व संसार को सुचारु रूप से आगे ले जा सकती है.

आज यह सोचने वाली बात नहीं बल्कि हैरानी की बात है कि अपना सर्वस्व समय और मानव जीवन को आकार देने वाली वही सनातनधर्मी नारी भला उस पुरुष के आगे अपने हाथ क्यों फैलाएगी जो खुद नारी की कृपा पर पलता है और नारी को अपना आदर्श मानकर सदा नतमस्तक रहता है? और भला एक सनातनवादी नारी अपने सामने हाथ पसारे खड़े उस पुरुष से क्या माँगे और क्यों माँगे?

हैरानी होती है कि पश्चिमी विचारधारा और मानसिकता सनातनवादी नारी को आधुनिक शिक्षा के माध्यम से सदैव बहकाती रहती है, ताकि सनातन समाज की यह नारी छोटे-छोटे कपड़ों को पहन कर अपने ही समाज से विद्रोह कर ले और उसको आँख दिखा सके.

पश्चिमी मानसिकता चाहती है कि किसी भी प्रकार से उस अवसर का लाभ लेकर सनातन के इस गौरव को एक भोग्या बनाकर उसके समाज को बिखरने पर विवश कर दिया जाय. पश्चिम यह बात अच्छी प्रकार से जानता है कि एक हिन्दू स्त्री के अपवित्र होने का क्या अर्थ है. तभी तो वह षड्यंत्रों के माध्यमों से प्रयास करता रहता है कि एक निष्ठावान और धर्मपरायण हिन्दू नारी किसी भी प्रकार से अपवित्र हो जाय, ताकि उससे जुड़ा परिवार और समाज टूटकर बिखर जाय.

जहां एक और पश्चिमी मानसिकता हिन्दू समाज और विषेशकर स्त्रीशक्ति को निशाना बनाना अपनी प्राथमिकता समझता है वहीं वह अपने खुद के समाज की स्त्रीशक्ति को कितने हद तक एक  भोग्या और खिलौना समझता है यह हमें उन्हीं की कथनी और करनियों में देखने को मिलता है. लेकिन वे इस बात को स्वीकार ही नहीं करते कि उनकी खुद की हक़ीक़त क्या है.

– अमृति देवी

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