अजय सिंह चौहान || एक मुस्लिम इतिहासकार ने लिखा है कि- “महमूद गजनी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। क्षय रोग यानी टीबी की बीमारी से उसका पूरा स्वास्थ्य चौपट हो चुका था, फिर भी भारत में लूट की लालसा लिए उसने सशस्त्र सेना को एकत्रित कर लिया। यह अब तक का सबसे बड़ा दल था जो भारत को लूटने और कुचलने के लिये पूरी तरह से तैयार हो चूका था।
अरब से आये यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृतान्त में साफ़ साफ़ लिखा है कि महमूद गजनी के उस गिरोह में अरब के कुछ क्रूरतम अन्तर्राष्ट्रीय अपराधियों के अलग-अलग क्षेत्रों के गिरोहों को शामिल किया गया था जिसे एक सेना का नाम दिया गया। उस सेना के कोई नियम नहीं थे। यह ठीक उसी प्रकार से था जैसे की आज भी नहीं देखे जाते। लेकिन उद्देश्य और उससे होने वाले लाभों के बारे में सभी को बता दिया गया था। नियम था तो बस एक कि हम सबको भारत में एक बड़ी लूट के लिए चलना है। और सफल होने पर सबको खूब माल मिलेगा।
महमूद गजनवी के उस गिरोह में लगभग ५४००० हजार घोड़े, १३०० हाथी और एक लाख से अधिक पैदल सेना शामिल थी। १८ अक्टूबर, वर्ष १०२५ का वो दिन था जब वह गिरोह सोमनाथ मंदिर को लूटने के लिये अपने अब तक के सबसे क्रूरतम अभियान पर निकला था। सेना की कोई वर्दी नहीं बल्कि जिसको जो मिला पहन लिया। उनके हाथों में कुछ ऐसे हथियार भी थे जो साधारण सी लूटपाट में काम आते थे। लालच और निर्दयता के हथियारों से लेस महमूद गजनवी के उस गिरोह में उत्साह की कोई कमी नहीं थी।
महमूद गजनवी का अब तक का वह सबसे क्रूर दस्ता ३००० ऊँटों के ऊपर अन्न, जल लादकर, रेगिस्तान पार करके, राह में लूटपाट करता हुआ जनवरी १०२५ के दूसरे सप्ताह में सोमनाथ के पास पहुँच चुका था।
अगले दिन शुक्रवार को शहर में आग के गोलों व पत्थरों से वर्षा कर, शनिवार तक, उसने बाहरी रक्षा पंक्ति के कवच को भेद दिया। तभी महमूद गजनवी को समाचार मिला कि भारत के अन्य कई राज्यों की एक संयुक्त सेना सोमनाथ की रक्षा के लिए आ रही है। लेकिन समस्या ये थी की उन अलग-अलग सेनाओं का नेतृत्व भी अलग अलग ही हो रहा था। यानी उस विकट परिस्थिति में भी सभी सेनाओं की रणनीतियां अलग-अलग ही थीं।
भारतीय इतिहासकारों ने लिखा है कि- “एक सक्षम और समग्र केन्द्रीय नेतृत्व एवं रणनीति से युक्त व्यूह रचना के अभाव में भारत के राजाओं की सेनायें वीरता पूर्वक लड़ रहीं थीं।“ लेकिन, जब हम यहाँ इतिहासकारों की बात को सच मानते हैं तो फिर ऐसा क्या कारण था कि भारतीय सैनिक वीरता के साथ लड़ते हुए भी महमूद की उस बिना प्रशिक्षण प्राप्त सेना के आगे पराजित हो रहे थे। तो इस विषय पर भी उन मुग़ल इतिहासकारों ने साफ़-साफ़ लिखा है कि- “भारतीय राजाओं की सेनाएं नीतियों एवं नियमों को आधार बनाकर महमूद की सेना का मुकाबला कर रहीं थीं, और जो कोई भी महमूद का सैनिक अपने हाथ उठाकर क्षमा की भीख माँगता था उसे आसानी से क्षमा कर बंदी बना लिया जा रहा था। लेकिन अल्लाह का शुक्र है कि अवसर मिलने पर क्षमादान प्राप्त महमूद का वही सैनिक अपने दीन के फ़र्ज़ को पहले निभा रहा था।
उस असंगठित भारतीय राजाओं की संयुक्त सेना को भी ध्वस्त कर महमूद गजनवी पुनः मन्दिर की ओर बढ़ा, और सम्पूर्ण मन्दिर संरचना और परिसर के अन्य मंदिरों को भी इस प्रकार से ध्वस्त कर दिया मानो किसी छत्ते से निकरकर हजारों मधुमक्खियों ने किसी एक ही व्यक्ति पर हमला कर दिया हो। वहाँ फँसे हजारों भक्तों और मंदिर की रक्षा में हथियार उठाने वाले तमाम नागरिकों और बच्चों तथा स्त्रियों का भी उन्होंने वध कर दिया। उस पवित्र स्थान पर मस्जिद का ढांचा बना दिया गया और उसकी अकूत सम्पत्ति को अपने कब्जे में ले लिया। करीब ३००० ऊँटों, हजारों घोड़ों और हाथियों पर उस खजाने को लादा गया।
कुछ मुस्लिम इतिहासकार लिखते हैं कि सोमनाथ मन्दिर में २०० मन वजन की एक सोने की मोटी जंजीर सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र थी, जिस पर सैकड़ों बड़ी और विशाल आकार वाली घंटियाँ टंगी थी। पूजा और आरती के समय की घोषणा करने के लिये उस जंजीर में बंधी घंटियों को बजाया जाता था।
इतिहासकारों का कहना है कि भगवान् सोमनाथ का यह मंदिर एक खजाने और उस समय की बैंकिंग व्यवस्था के तौर पर संचालित होता था जिसमें नागरिक अपनी जमापूंजी को सुरक्षित रखते थे और आवश्यकता पड़ने पर उसको निकाल लेते थे। मात्र गुजरात के ही नहीं बल्कि भारतवर्ष के अन्य कई राजा और श्रद्धालु जो यहाँ तीर्थ यात्रा के लिए आया करते थे, वे भी इसमें अपनी क्षमता और श्रद्धा के अनुसार इसमें दान दिया करते थे। यही कारण है कि इस मंदिर का वह खजाना उस समय तक का सबसे अधिक चर्चित हुआ करता था, और उसकी वही चर्चा उन आक्रान्ताओं को भी आकर्षित करती रहती थी।
इतिहासकारों का कहना है कि महमूद गजनवी और उसके उन क्रूर लूटेरों के पास न तो कोई विशेष सैन्य प्रशिक्षण था और न ही कोई विशेष या आधुनिक हथियार या उपकरण जिनकी सहायता से वे भारत में बड़े-बड़े युद्ध जीतते जा रहे थे, बल्कि उनके पास जो आधार था वह उनके अन्दर के वहशीपने और उनके लूट के उद्देश्यों और मजहब की शिक्षा के आधार पर मिला हुआ उनका वहा जज्बा था जो भारतीय सैनिकों और राजाओं के योद्धाओं के लिए एकदम नया और समझ से परे था।
मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखा है कि महमूद गजनवी ने वहां से जो धन का विशाल भण्डार अर्जित किया था उसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि, भारत के उस समय के किसी भी राजा के खजाने में इस सम्पत्ति का संभवतः १००वाँ भाग भी नहीं था। इसके अलावा वह हजारों महिलाओं, पुरुषों और छोटे बच्चों को भी रस्सियों से बांधकर अपने साथ गुलाम बनाने के लिए ले गया।
उधर सोमनाथ मंदिर के ध्वंश, लूट और भक्तों की हत्याओं का समाचार सुन कर, राजस्थान के कई राजाओं ने अपनी सेनाओं को रातोंरात तैयार किया और महमूद गजनवी को रोकने और लूट के सामान के साथ वापस न जाने देने का संकल्प किया। महमूद को इसकी खबर लग चुकी थी। इसलिए उसने सिंध की मरूभूमि से होते हुए मुल्तान जाने का निश्चय किया।
राह में गजनवी के उस काफिले को कठिनाईयाँ तो खुब आई, कई बंदियों को छुड़ा भी लिया गया, धन का कुछ भाग भी बचा लिया गया, पर अपनी अधिकांश लूट सहित वह गजनी तक पहुँचने में सफल हो ही गया। महमूद गजनवी उस सारी लूट का भंडार और कई स्त्री-पुरुष तथा बच्चों को भी मरुभूमि के रास्ते से अपने साथ लेकर चला गया।
जबकि इधर कई सेनाएं जो उसको रोकना चाहती थीं वे राजस्थान की पहाड़ियों पर उसका इंतजार करते और पैर पटकते रह गई। हिंदू राजाओं में एक बार फिर वही पुरानी नेतृत्वहीनता का अभाव और एक साथ मिलकर न लड़ने के कारण होने वाली हार का परिचय दिया।