समाज में कोई आपके या संगठन के बारे में निगेटिव टिप्पणी करे तो आप उससे प्रभावित न हों बल्कि अपने आपको दृढ़ करो और हर पल सजग रहो। सच्चा साधक वही है जो 24 घण्टे साधक का जीवन जीता हो। मात्र सुबह-शाम की साधना ही पर्याप्त नहीं है।
जब भी गलत भाव मन में उठें उन्हें तुरन्त रोको और सद्विचारों एवं सत्कर्मों की ओर मोड़ दो। सदैव साधक प्रवृत्ति मन में रखो। जीवन की अन्तिम सांस तक इस सौभाग्य को बढ़ाने का इरादा करके शिष्यत्व की चरम सीमा प्राप्त करने वाला ही सच्चा शिष्य होता है। यदि आप शिष्यत्व की गहराई में डूब गए तो गुरु की चेतना आपकी चेतना बन जाएगी।
समाज आज भटककर मुक्तिपथ को ही भूल चुका है और भौतिक जगत में लिप्त होकर रह गया है। हमारी लिप्तता मात्र भौतिक जगत में ही नहीं होनी चाहिए। अपनी शक्ति-सामथ्र्य का सदुपयोग आत्मोत्थान और समाजसेवा में करना चाहिए। ‘मां’-गुरुवर की भक्ति गंगाजल की तरह हमारे तन-मन को निर्मल कर देती है। अपने विकारों को दूर करने का यही मार्ग है। बस, इस भक्ति में डूबने की आवश्यकता है। हमें स्थूल जगत का नहीं वरन चेतना का जीवन जीना चाहिए।’
इस दुर्दशा के लिए अधर्मी-अन्यायी और बेईमान राजनेता जिम्मेदार हैं, चाहे वे किसी पार्टी के हों। इन्होंने ही हमें लूटा है। यदि ये लोग ईमानदारी से काम करते तो आज हर घर के सामने रोड होती, हर गांव में बिजली, अस्पताल और स्कूल-काॅलेज होते। आज इलाज के बिना लोग मर रहे हैं। गरीबों के बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं जबकि बेईमान नेताओं के काॅलेज चल रहे हैं। क्या सदैव इसी तरह लुटते रहोगे?
इसके विषय में हमें डोर टू डोर जाकर लोगों को समझाना है अन्यथा भ्रष्टाचार को आसानी से रोका नहीं जा सकता। इसके लिए लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। एक न एक दिन हम बेईमान अफसरों को रिश्वत लेने से अवश्य रोकेंगे। अवैध शराब के व्यवसाय को रोकने के लिए अपने सराहनीय कार्य किया है। देर-सवेर शराब के वैध ठेकों को भी बन्द करने के लिए हम सरकार को बाध्य करेंगे।
आप लोग मेरे लिए अनमोल रत्न हैं। इसकी पहचान समाज को नहीं है। मैं इन बिखरे मोतियों को बटोरकर भगवती मानव कल्याण संगठन से जोड़ रहा हूं। आप लोग सामान्य नहीं हैं। आपके अन्दर अलौकिक क्षमताएं हैं। उन्हें पहचानो अपनी कमजोरियों को मत देखो बल्कि अपनी अच्छाइयों को खोजकर उन्हें उभारो।
मेरा लक्ष्य देश की ही नहीं, विदेश की भी संस्थाओं के विपरीत है। वे सब अपना वैभव बढ़ा रही हैं जबकि मेरा लक्ष्य है अनीति-अन्याय और अधर्म को मिटाकर सत्यधर्म की स्थापना करना और ऐसा ही हो रहा है। मैं भी चाहता तो दूसरे धर्मगुरुओं की तरह आराम का जीवन जी सकता था किन्तु मैं समाज कल्याण के लिए अपने शरीर को तपा रहा हूं।
हमें यह विचार करना चाहिए कि हम परमसत्ता से जुड़े हैं, अपने गुरु से जुड़े हैं। उन्होंने हमारा चयन समाज कल्याण के लिए किया है। यही हमारा सौभाग्य है। हमारे संगठन का लक्ष्य सीमित नहीं है। हमें कोई दिखावा या प्रचार-प्रसार नहीं करना है बल्कि अपनी नींव को मजबूत करना है।
आप लोगों को यहां पर संस्कारवान, धर्मवान तथा कर्मवान बनाया जा रहा है। जिस परिवर्तन की शुरुआत आप लोगों ने की है, जिस परिवर्तन की शुरुआत में आपके बारे में नाना प्रकार की टिप्पणियां करते थे, आज वे यहां पर आने के लिए लालायित हैं। अनेक राजनेता भी हमारे संगठन की ओर ललचाई निगाहों से देख रहे हैं।
राजसत्ता अधर्मी-अन्यायी है उससे पूरा समाज प्रभावित होता है। हमें उसे बदलना पड़ेगा। परिवर्तन के लिए मार्गदर्शन करना मेरा कर्तव्य है और मैं बार-बार कहता हूं कि मुझे कभी चुनाव नहीं लड़ना है। हर दिशा में समाज का पतन हो रहा है। मां-बहन की इज्जत लूटी जाती है और गरीबों को अपमानित किया जाता है। हमारे नौकर आज हमारे मालिक बने बैठे हैं। आजादी मिलने के इतने साल बाद भी हमारी यह दुर्दशा है।
हमारा लक्ष्य रचनात्मक है, विध्वंसात्मक नहीं। हम भारत की धरती को मां कहते हैं। यह हमें अन्न-जल देती है। हम इस धरती पर पैदा हुए हैं। यहीं पर एक से एक समाज सेवक पैदा हुए हैं, वीरांगनाएं पैदा हुई हैं। जो कार्य उन्होंने किये, क्या हम वह नहीं कर सकते? जाति-धर्म-सम्प्रदाय को भूलकर तुम्हें मानव कल्याण के लिए जीवन जीना है। आप लोग भी अपने काम में तेजी लाओ।
मैंने आप लोगों को चिन्तन दिया था कि जब भी आप आश्रम में रहें, अपने समय का अधिक से अधिक सदुपयोग करें। मेरे द्वारा प्रदान किये गये जो मार्ग हैं, उन पर आप लोग चलोगे तो मैं आपसे बोलूं या न बोलूं, आपके सम्मुख चिन्तन देने के लिये बैठूं या न बैठूं, कहीं पर एकान्त में हूं, इस आश्रम में सशरीर हूं या नहीं, यदि आप उन मार्गों का पालन करेंगे तो बरबस ही आप मेरे आशीर्वाद के पात्र बन जाते हैं। आपकी समस्याओं का निदान उन्हीं रास्तों से मिल जाता है।
चूंकि, मैंने कहा है कि मैं समाज को भटकाने की दिशा में नहीं डालता कि आप अन्य गुरुओं के समान जिस तरह अपनी समस्याओं का उनके सामने दिन-रात निवेदन करेंगे, उनकी सेवा करते हैं, उनको फल-फूल भेंट करते रहेंगे, तभी वे आपकी ओर निगाह डालेंगे। आप मेरे सामने कभी एक रुपया भी दक्षिणा के रूप में न रखेंगे, कभी भी मेरी सेवा नहीं करेंगे, मगर आप मेरे बताये हुये निर्देशनों में केवल अध्यात्म की डगर पर चलेंगे तो आप सदैव मेरे प्रिय बने रहेंगे।