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सरकारी अस्पतालों में मशीनें खराब क्यों रहती हैं?

admin 4 September 2022
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आम जनता में अकसर सुनने को मिलता रहता है कि सरकारी अस्पताल में टेस्ट इसलिए नहीं हो पाया, क्योंकि मशीन खराब थी। अब सवाल यह उठता है कि सरकारी अस्पतालों में मशीनें अकसर खराब क्यों रहती हैं? जब मशीनें ही खराब होंगी तो लोगों का इलाज कैसे होगा? इन मशीनों के खराब होने के पीछे आम जनता में एक बात यह भी सुनने को मिलती रहती है कि ऐसा जान-बूझकर इसलिए किया जाता है जिससे प्राइवेट अस्पतालों को लाभ पहुंचाया जा सके, यह किसी से छिपा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पूरे देश में घूमकर यह कह रहे हैं कि यदि अच्छे सरकारी अस्पताल एवं स्कूल चाहिए तो लोग आम आदमी को सपोर्ट करें किन्तु क्या उन्हें यह मालूम है कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों एवं स्कूलों की क्या स्थिति है? दिल्ली सरकार के तमाम नेता जब स्वयं प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाते हैं तो कैसे कह सकते हैं कि दिल्ली में सरकारी अस्पताल बहुत अच्छे हैं?

भ्रष्टाचार को बहस का विषय बनाना होगा
भ्रष्टाचार समाज में एक ऐसा मुद्दा बन चुका है, जिसका निदान किसी भी तरह सहोना चाहिए। इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि भ्रष्टाचार को सर्वत्र बहस का मुद्दा बनाना चाहिए। भ्रष्टाचार चाहे किसी भी रूप में हो या किसी के द्वारा किया जा रहा हो उस पर यदि सब जगह चर्चा होने लगे और भ्रष्टाचारियों का महिमा मंडन बंद हो जाये तो उस पर अंकुश लगना शुरू हो जायेगा। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भ्रष्टाचारियों का सामाजिक रूप से बहिष्कार होना चाहिए। समाज में यदि किसी ने पैसा कमाया है तो पैसा किस माध्यम से कमाया गया है, उसकी चर्चा होनी चाहिए। समाज में किसके द्वारा पैसा कमाया गया है, इस बात की चर्चा तो बहुत होती है किन्तु इस बात की चर्चा नहीं होती है कि पैसा कमाया कैसे गया है? पैसे कमाने के तौर-तरीकों पर यदि चर्चा होने लगे तो इस पर जरूर अंकुश लगेगा। बैंकों से ऋण लेकर अपने को दिवालिया घोषित कर सरकारी पैसा हड़पने की प्रवृत्ति समाज में तेजी से पनपी है किन्तु डिफाल्टरों की चर्चा कम ही हो पाती है।
कुछ लोग तो बैंकों से पैसा हड़प कर विदेश भाग जाते हैं और वहां बड़े ठाट से जिंदगी बिताते हैं, ऐसी प्रवृत्ति पर रोक लगाने की सख्त आवश्यकता है।

हराम की कमाई का महिमा मंडन न हो
हराम की कमाई का महिमा मंडन किसी भी कीमत पर नहीं होना चाहिए। हराम की कमाई वाले सोचते हैं कि यदि इसमें से कुछ दान दे दिया जाये और समाज में लगा दिया जाये तो उससे पाप कम हो जायेगा किन्तु हराम की कमाई तो हराम की ही रहती है चाहे उसका कितना भी शुद्धीकरण कर लिया जाये। अपने देश में एक प्राचीन कहावत है कि ‘जैसा खाओ अन्न – वैसा होगा मन’ यानी किसी का पालन-पोषण यदि हराम की कमाई पर होता है तो उसका साइड इफेक्ट निश्चित रूप से देखने को मिलेगा इसलिए ऐसी कमाई का भोग करने से किसी भी कीमत पर बचना चाहिए।
– dharmwani

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