भारत सहित पूरी दुनिया में यदि नजर उठाकर देखा जाये तो सर्वत्र शोषण ही शोषण दिखाई देगा। इस बात की व्याख्या की जा सकती है कि कहां कम शोषण है और कहां अधिक? शोषण के प्रकार की यदि व्याख्या की जाये तो इसका दायरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। शारीरिक शोषण, आर्थिक शोषण, समय का शोषण, मानसिक शोषण सहित तमाम तरह के शोषण देखने को मिल जायेंगे। राजनीति, धर्म, अध्यात्म, समाज, व्यवसाय, नौकरी आदि स्थानों पर समान रूप से शोषण दिखाई देगा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि किसी न किसी रूप में शोषण करने की प्रवृत्ति या शोषित होते रहने की मानसिकता मनुष्य के स्वभाव में शामिल होती जा रही है। हालांकि, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है कि समाज के शत-प्रतिशत लोग शोषण करने में या शोषित होते रहने में ही लगे हैं।
हमारे समाज में शोषण कोई नयी बात नहीं है किन्तु हद तो तब हो गई जब कोरोनाकाल में लोगों को एक दूसरे के साथ की सबसे अधिक आवश्यकता थी, उस समय तमाम लोगों ने अपना ऐसा घिनौना चेहरा प्रस्तुत किया, जिससे यह सोचने के लिए विवश होना पड़ा कि आखिर यह क्या हो रहा है? मानवता, करुणा एवं दया कहां गई? क्या यह पूर्ण रूप से मर चुकी है? वैसे, देखा जाये तो स्वास्थ्य क्षेत्र सेवा का सबसे बड़ा क्षेत्र है और डाॅक्टरों को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है किन्तु देखने में आया कि इस क्षेत्र से जुड़े तमाम लोग आपदाकाल में लोगों को लूटने में लगे रहे। जिस बीमारी का अभी तक पूरी दुनिया में ठीक से इलाज नहीं ढूंढ़ा जा सका है उसके इलाज के नाम पर पीड़ितों से लाखों रुपये वसूले गये। कहीं-कहीं पैसा कमाने के चक्कर में गलत इलाज की भी खबरें सुनने को मिलीं। बिना आवश्यकता के कोरोना पीड़ितों को रेमडेसिविर, स्टेराइड एवं प्लाज्मा दी गई। जहां तक पीड़ितों की बात है तो उनकी यह स्थिति होती है कि ‘मरता क्या नहीं करता’ यानी कि वह तो मुसीबत में होता है, उससे जैसा कहा जाता है वैसा करने के लिए विवश होता है।
हालांकि, अपने देश में स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों ने अपनी जान हथेली पर रखकर कोरोनो पीड़ितों की सेवा की और अपने आप को भी संभाला। बात यहां सिर्फ उन लोगों की हो रही है जो हर आपदा में पैसा कमाने का अवसर ढूंढ़ने में लग जाते हैं, ऐसे लोगों को चिन्हित कर उन्हें दंडित करवाने और उनका बहिष्कार करने की आवश्यकता है। नकली दवाएं, नकली रेमेडेसिविर इंजेक्शन कोरोनाकाल में खूब बेचे गये, आखिर यह भी तो किसी शोषण से कम नहीं है। मेडिकल क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की जांच के नाम पर तमाम टेस्ट अनावश्यक रूप से करवाये जाते हैं यानी कि यह सब शोषण के ही तरीके हैं।
आज भारत सहित पूरे विश्व में आर्थिक शोषण यानी जिसे भ्रष्टाचार कहा जा सकता है सर्वत्र देखने को मिल जायेगा। आर्थिक शोषण तो घर से निकलते ही प्रारंभ हो जाता है। कमोबेश आर्थिक शोषण सब जगह यानी सर्वत्र देखने को मिलेगा। क्या वेतन आधा करना और रातोंरात नौकरी से निकालना, आपदा में परिवारों पर कुठाराघात करने जैसा नहीं है? किसी दफ्तर में छोटे से छोटे कार्य के लिए चले जाइये, वहां भी पैसे की डिमांड हो जोयेगी।
कोरोनाकाल में तो यहां तक देखने को मिला कि शव का जल्दी दाह-संस्कार हो सके इसके लिए भी दलाल पैदा हो गये और पैसे लेकर बारी से पहले दाह-संस्कार करवाया। अब सोचने वाली बात यह है कि शोषण का दायरा कितना बढ़ता जा रहा है? राजनीति की बात की जाये तो यह क्षेत्र शोषण के लिए बहुत कुख्यात हो चुका है और यहां हर तरह का शोषण देखने को मिलेगा।
राजनीति के बारे में तो यह कहावत चरितार्थ होती जा रही है कि राजनीति में अब वही सफल हो सकता है जो सर्वदृष्टि से शोषण करने में महारथी हो। राजनीति में सच्चाई क्या है, यह अलग बात है किन्तु पब्लिक में क्या चर्चा है या होती है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। आम जनता में यदि किसी से बात की जाये तो अधिकांश मामलों में आम चर्चा यही होती है कि राजनीति में सब पैसों का खेल है। जिसके पास पैसा नहीं है, वह राजनीति में आये ही नहीं। राजनीति में पद प्राप्त करने से लेकर टिकट लेने एवं चुनाव लड़ने तक सब जगह पैसे की ही चर्चा होती है यानी कि राजनीति में आजकल सक्षम शब्द की बहुत चर्चा होती है। यदि कोई व्यक्ति आर्थिक रूप से सक्षम है तो वह कुछ भी प्राप्त कर सकता है। हालांकि, किसी भी दल में अच्छे एवं बुरे सब तरह के लोग हैं। अब सवाल यह उठता है कि इन अच्छे एवं बुरे लोगों में भेद करने की क्षमता कितनी है? जिस दल में अच्छे-बुरे लोगों के बीच भेद करने की क्षमता अधिक होती है, कमोबेश वह ज्यादा कामयाब हो जाता है।
राजनीति में महिलाओं को मेहनत के मुताबिक उचित स्थान प्राप्त कर पाना इतना आसान नहीं है।
कहने के लिए यह बहुत आसानी से भले ही कह दिया जाता है कि महिला-पुरुष दोनों बराबर हैं किन्तु व्यावहारिक धरातल पर ऐसा दिखता नहीं है। कई मामलों में तो देखने में आया है कि महिलाएं शारीरिक शोषण का भी शिकार हो जाती हैं और उसके बदले उन्हें कभी-कभी कुछ प्राप्त भी नहीं हो पाता है।
राजनीति में एक बात देखने को यह भी मिलती है कि परिक्रमा का बहुत जोर है यानी जो लोग नेताओं के इर्द-गिर्द घूमते हैं अथवा चापलूसी करते हैं, उन्हें जल्दी ही परिणाम हासिल हो जाता है। किसी भी व्यक्ति से किसी प्रकार के स्वार्थ एवं लालच में यदि जी-हुजूरी करवाई जाये तो इसे भी शोषण का एक रूप मानना चाहिए।
आजकल राजनीति में एक कहावत तेजी से प्रचलित हो रही है कि परिक्रमा पराक्रम पर भारी पड़ रही है। एक कहावत यह भी बहुत तेजी से प्रचलित हो रही है कि दमदार लोगों की बजाय दुमदार लोगों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। अगर इन सब बातों का विश्लेषण किया जाये तो इसे भी शोषण का एक तरीका कहा जा सकता है।
घरेलू सहायिकाएं जो दूसरों के घरों में कार्य करती हैं, उनके भी शोषण की खबरें आये दिन देखने-सुनने को मिलती रहती हैं। घरेलू सहायिकाओं से आवश्यकता से अधिक कार्य करवाना, समय से उनको वेतन न देना, मजबूरी का लाभ उठाकर उनका शारीरिक शोषण तक करना आदि तमाम तरह की चर्चाएं देखने एवं सुनने को मिलती रहती हैं। भारतीय समाज में एक कहावत यह भी प्रचलित है कि ‘शोषण करने से सिर्फ वही वंचित है जिसे अभी तक कोई अवसर नहीं मिला है’ यानी कौन व्यक्ति शोषण नहीं करेगा, यह इस बात पर निर्भर है कि क्या उसे अभी तक ऐसा कोई अवसर मिला या नहीं।
शोषण की दृष्टि से यदि धर्म, अध्यात्म की बाात की जाये तो यहां भी हर तरह के शोषण देखने को मिल रहे हैं। पूजा-पाठ कर्मकांड, तंत्र-मंत्र एवं अन्य प्रकार से लोगों का खूब शोषण हो रहा है। उत्तर प्रदेश में अभी हाल ही में देखने को मिला कि एक व्यक्ति लोगों को ताबीज बनाकर देता है और बदले में उनसे पैसे लेता था। ताबीज से लाभ न होने पर जब लोगों ने उसकी पिटाई कर दी तो इस मामले को बहुत बड़ा बनाकर सांप्रदायिक रूप दे दिया गया। धर्म-अध्यात्म से लोगों को सदियों से प्रेरणा मिलती रही है और इससे जीवन जीने का तौर-तरीका विकसित होता है और लोगों को शांति मिलती है किन्तु यहां भी आर्थिक शारीरिक एवं अन्य प्रकार के शोषण की गतिविधियां बहुत तेजी से बढ़ी हैं।
देश के दो बड़े संत आशाराम बापू जी एवं बाबा राम-रहीम जेल में हैं। शारीरिक शोषण की वजह से ये दोनों संत जेल में हैं। पूजा-पाठ के नाम पर लोगों से लूटने एवं ठगने की वारदातें अकसर होती ही रहती हैं। अब तो कुछ लोग हंसी-मजाक में कहने लगे हैं कि यदि किसी को कोई धंधा-रोजगार न मिले तो बााबागिरी का धंधा अपना ले तो ज्यादा लाभ में रहेगा। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि शोषण की धारा सर्वत्र बह रही है, चाहे वह कोई भी क्षेत्र क्यों न हो?
आज आवश्यकता इस बात की है कि आम लोगों को किसी भी रूप में शोषण से मुक्ति दिलाई जाये। इसके लिए राष्ट्र एवं समाज सभी को मिलकर कार्य करना होगा। प्राचीनकाल में ही हमारे शास्त्रों में लिख दिया गया था कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता’ यानी जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता वास करते हैं, किन्तु आज समाज में नारियों का इस हद तक शोषण बढ़ा है तो उसके क्या कारण हैं? इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
सांस्कृतिक क्षेत्र की बात की जाये तो यह क्षेत्र शोषण का गढ़ बनता जा रहा है। नुक्कड़ नाटक से लेकर फिल्मों एवं सीरियलों तक में कलाकारों का शोषण हर दृष्टि से बहुत व्यापक स्तर पर हो रहा है। आजकल फिल्मी दुनिया में ‘कास्टिंग काउच’ शब्द की चर्चा बहुत अधिक होने लगी है। इस क्षेत्र में लड़कियों एवं महिलाओं की बात की जाये तो तमाम लड़कियों एवं महिलाओं को आर्थिक शोषण के साथ-साथ शारीरिक शोषण से भी गुजरना पड़ता है।
फिल्मों एवं सीरियलों में काम देने के नाम पर शोषण के किस्से-कहानियां देश के गली-चैराहों पर खूब चटखारे लेकर लोग चर्चा करते रहते हैं।
शोषण की दृष्टि से यदि देखा जाये तो देश का सबसे कमजोर तबका यानी जिसे मजदूर वर्ग कहा जाता है, उसका शोषण सबसे अधिक हो रहा है। चूंकि, इस वर्ग में अभी शिक्षा का भी अभाव है। अपने छोटे से छोटे कार्य के लिए किसी भी दफ्तर में जाता है तो उसे कदम-कदम पर जलील होना पड़ता है। सरकार की तमाम सक्रियताओं के बावजूद मजदूर वर्ग का किसी न किसी रूप में शोषण हो ही जाता है। किसी गरीब की बेटी, बहू एवं पत्नी का बलात्कार हो जाता है तो तमाम मामलों में उसकी शिकायत भी दर्ज नहीं हो पाती है। कभी-कभी तो देखने में आता है कि बेचारा गरीब आदमी जगह-जगह धक्के खाकर व्यवस्था के प्रति बागी एवं विद्रोही बन जाता है।
कहा जाता है कि देश में नक्सलवाद के पनपने में गरीबों एवं मजदूरों का शोषण बहुत बड़ा कारण रहा है। गरीबों-मजदूरों को शासन-प्रशासन से जब न्याय नहीं मिल पाया तो स्वयं हथियार लेकर अपने प्रति हुई नाइंसाफी का बदला लेने के लिए निकल पड़ा किन्तु आज राष्ट्र एवं समाज के लिए निहायत ही दुर्भाग्य की बात है कि जिन लोगों ने विवश होकर हथियार उठाया था, आज वही उनका स्थायी रूप से पेशा बन चुका है।
मेडिकल क्षेत्र को सबसे बड़ा सेवा का क्षेत्र कहा जाता है किन्तु यहां भी निचले स्तर के स्टाफ एवं नर्सों के शोषण की बात सुनने एवं देखने को मिलती रहती है। यह शोषण चाहे आर्थिक रूप से हो, दैहिक रूप से हो या किसी अन्य रूप में। शिक्षा जगत की बात की जाये तो यहां भी बहुत कम पैसे देकर शिक्षक-शिक्षिकाओं से कार्य करवाया जा रहा है। कुल मिलाकर समग्र रूप से यदि विश्लेषण किया जाये तो शोषण करना और शोषित होते रहना मानव के स्वभाव में सम्मिलित होता जा रहा है। समाज में सर्वत्र फैले शोषणों को रोका नहीं गया तो लोगों के दिलो-दिमाग में वाइरस के रूप में घर कर जायेगा और समाज को अंदर ही अंदर खोखला कर देगा। यह कार्य जितना शीघ्र कर लिया जाये, उतना ही अच्छा होगा अन्यथा एक दिन ऐसा आयेगा जब पछताने के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगेगा तो आइये, हम सभी मिलकर तमाम तरह के शोषणों के विरुद्ध आवाज उठायें और राष्ट्र-समाज को शोषण मुक्त करने की दिशा में आगे बढ़ें।
– सिम्मी जैन