अजय सिंह चौहान || यदि आप किसी बड़ी धार्मिक यात्रा पर निकलने का कार्यक्रम बना रहे हैं तो उसे पूरा करने के लिए 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की यात्रा भी अवश्य करना चाहिए। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान दसवें नंबर पर आता है। यह मंदिर महाराष्ट्र के नासिक जिले की त्रयम्बकेश्वर तहसील के त्रिम्बक नामक एक छोटे से कस्बे में गोदावरी नदी के किनारे, ब्रह्मगिरि पर्वत की गोद में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirling) के विषय में मान्यता है कि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश एक रूप में समाहित हैं। धार्मिक रूप से यह मंदिर जितना मान्य है उतना ही यह मंदिर इसकी वास्तुकला के लिए भी जाना जाता है। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बना यह मंदिर पेशवा साम्राज्य के प्रभाव को दर्शाता है।
जिस स्थान और क्षेत्र में यह मंदिर आता है वह ब्रह्मगिरि पर्वत क्षेत्र कहलाता है। और भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी अर्थात गोदावरी नदी (Godavari River) का उद्गम भी यहीं है। इसी नदी के किनारे स्थित है यह ज्योतिर्लिंग मंदिर। इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो कोई भी यहां आकर प्रार्थना करता है उसकी वह प्रार्थना तीनों देवों के कानों में जाती है।
कहा जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के ऊपर एक रत्नजड़ित मुकुट पहनाया जाता है जिसे त्रिदेव, यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सोने के मुखोटे के ऊपर रखा जाता है। यह मुकुट पांडवो के समय का बताया जाता है। इसमें हीरे, पन्ने और कई कीमती रत्न जड़े हुए हैं।
इस मंदिर में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि आदि की पूजाएं भी कराई जाती है जिनका आयोजन भक्तगण अलग-अलग मनोकामनाओं को पूर्ण करवाने के लिए करवाते हैं। श्रद्धालु श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirling) में प्रवेश से पहले इसके प्रांगण में स्थित कुशावर्त कुंड में डुबकी भी लगाते हैं। इसी क्षेत्र में अहिल्या नाम की एक नदी गोदावरी में मिलती है।
कहा जाता है कि दंपत्ति इस संगम स्थल पर संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। मंदिर के आसपास की प्राकृतिक खुबसूरती श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करती है। हर ज्योतिर्लिंग की तरह यहां भी भगवान शिव के अभिषेक और महाभिषेक के लिए पंडितों की भीड़ लगी रहती है जिनसे आप मोलभाव भी कर सकते हैं।
पौराणिक साक्ष्य बताते हैं कि यह वही स्थान है जहां से शिव जी प्रकाश के एक तेजस्वी स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। और क्योंकि शिव जी को त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है इसलिए उनके
विराजमान होने से इस जगह को त्रिम्बक यानी तीन नेत्रों वाले के नाम से जाना जाने लगा। इसके अलावा, उज्जैन और ओंकारेश्वर की ही भांति त्रयंबकेश्वर (Trimbakeshwar Jyotirling) महाराज को भी इस गांव का राजा माना जाता है।
कहा जाता हैं ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी (Godavari River) बार-बार लुप्त हो जाया करती थी। गोदावरी नदी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर मंदिर के प्रांगण में स्थित कुशावर्त कुंड में गोदावरी को बंधन में बांध दिया। कहा जाता है कि उसके बाद से इस कुंड में हमेशा पानी रहता है। और इसी बाद से इस कुंड को कुशावर्त तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है।
यह वही गोदावरी नदी (Godavari River) है जो दक्षिण भारत की गंगा और हिंदू धर्म की सबसे पवित्र नदियों में से एक है। ब्रम्हगीरी के पहाड़ों से यानि त्रयंबकेश्वर के पास ही में स्थित पर्वतों से निकलकर यह गोदावरी नदी बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है।
त्रयंबकेश्वर (Trimbakeshwar Jyotirling) जैसी पवित्र जगह, गोदावरी जैसी पवित्र नदी और ब्रम्हगिरी जैसा सुंदर पर्वत और कहीं ओर देखने को नहीं मिलता। हर तरह के धार्मिक विधि विधान आदि के लिए यह जगह हिंदू धर्म में सबसे प्रसिद्ध मानी जाती है। गोदावरी नदी के तट पर श्राद्ध करना सबसे उत्तम माना जाता है इसलिए त्रयंबकेश्वर में गंगापूजन, गंगाभेट, देहशुद्धि, तर्पण आदि विशेष धार्मिक विधि विधान से किए जाते है।
त्रिम्बक गाँव के अंदर कुछ दूर पैदल चलने के बाद मुख्य मंदिर नजर आने लगता है। त्रयंबकेश्वर मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirling) और त्रिम्बक गांव ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस गिरि पर्वत को शिव का साक्षात रूप माना जाता है। इसी पर्वत पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गमस्थल है।
मंदिर की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मंदिर की वास्तुकला और शिल्पकारी अपने आप में अनुठी है। इस मंदिर की दिवारें भारीभरकम काले पत्थरों से बनी हुई है जिसका क्षेत्रफल 260 गुणा 220 फीट में है। इसमें गर्भग्रह के ठीक सामने बने मंडप में नंदी बैल की सुंदर मूर्तिकला देखने लायक है।
पूर्ण रूप से काले पत्थरों से निर्मित इस मंदिर की वास्तुकला प्राचीनतम हिंदू नागरा शैली को दर्शाती है। इसके मंडप की छत की संरचना का निर्माण बेहद खूबसूरत नजर आता है। यह मंदिर हिंदू पुरातन मूर्तिकला का एक उदाहरण है जिसमें मनुष्य, पशु-पक्षी, यक्ष, देवताओं के चित्र और फूलों की नक्काशी मनमोहक है। मंदिर का प्रांगण भी विशाल आकार वाला है।
इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी बाजी राव अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। जबकि इसका जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ और सन 1786 तक चला था। तथ्यों के मुताबिक इस भव्य प्राचीन मंदिर के निर्माण कार्य में उस समय के लगभग 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय की काफी बड़ी रकम हुआ करती थी।
मंदिर के गर्भगृह में स्थित बहुत ही छोटो यानी लगभग एक-एक इंच के आकार के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। प्रातः काल होने वाली पूजा-अर्चना के बाद इन मूर्तियों पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।
धाार्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन के लिहाज से महाराष्ट्र में त्रयंबकेश्वर मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirling) के अलावा शिरडी, भीमाशंकर शिव मंदिर, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, अजन्ता, एलोरा व एलिफेंटा गुफाएं प्रमुख है। इसके अतिरिक्त धार्मिक नगरी में नासिक का प्रमुख स्थान है।
गौतमी नदी के तट पर स्थित नासिक का उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। बारह वर्षों में एक बार लगने वाला यहां का कुंभ मेला हो या भगवान राम से जुड़े अन्य अनेक साक्ष्य। देवी सीता के अपहरण की एक मात्र गवाह वह कुटिया हो या पंचवटी नामक वह गुफा जहां भगवान राम और लक्ष्मण ने देवी सीता को रावण की सेना से बचने के लिए छुपाया था।
वैसे तो यहां सालभर श्रद्धालुओं का आना जाना लगा ही रहता। लेकिन गर्मियों के मौसम में यहां अत्यधिक गर्मी रहती है। इसलिए सर्दियों का मौसम जो विशेषकर अक्टूबर से मार्च के बीच का होता है वह यहां की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय हो सकता है।
दूर से आने वाले यत्रियों के ठहरने के लिए यहां त्रयंबकेश्वर मंदिर के आसपास ही में या फिर मंदिर से करीब 30 किमी दूर नासिक शहर में कई छोटे-बड़े होटल तथा सराय तथा लाॅज आदि बजट के अनुसार उपलब्ध हैं।
यदि आप त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (Trimbakeshwar Jyotirling) के दर्शनों के लिए जाना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे पहले नासिक पहुंचना होगा। नसिक भारत के लगभग हर क्षेत्र से रेल तथा सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। नासिक पहुंचकर वहां से त्रयंबकेश्वर के लिए बस, ऑटो या टैक्सी आसानी से मिल जाती हैं।
सड़क मार्ग से जाने पर यह ज्योतिर्लिंग मंदिर महाराष्ट्र में नासिक शहर से महज 30 किलोमीटर और नासिक रोड से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पूणे से इसकी दूरी 240 किलोमीटर और औरंगाबाद से 210 किमी की दूरी पर है। जबकि मुंबई से यह 175 किलोमीटर है। लेकिन, अगर आप यहां हवाई जहाज से जाना चाहते हैं तो यहां के लिए औरंगाबाद तथा मुंबई का छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डा ही सबसे काफी नजदीक है।