अजय सिंह चौहान || देवभूमि उत्तराखण्ड के टिहरी गढ़वाल में प्रकृति के अनमोल खजानों और अनगिनत देवी-देवताओं के सिद्ध और प्रसिद्ध स्थालों में से एक है कुंजापुरी माता का एक ऐसा सिद्धपीठ मंदिर जो सनातन भक्तों की अटूट आस्था और श्रद्धा को और अधिक मजबूत कर देता है।
देवी दुर्गा को समर्पित इस मन्दिर की पौराणिकता के संदर्भ में स्कन्दपुराण और केदारखण्ड में विवरण है कि भगवान शिव जब देवी सती के जले हुये शरीर को उठाकर आकाश में विचरण कर रहे थे तब भगवान विष्णु के चक्र से कट कर इस स्थान पर देवी सती का वक्षभाग यानी कुंज भाग गिरा था इसी लिये इसे माता कुंजापुरी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। जबकि, कई जानकार इसे शक्तिपीठ नहीं बल्कि उन सिद्धपीठों में से एक मानते हैं जिनकी स्थापना स्वयं जगद्गुरू शंकराचार्य ने की थी।
टिहरी गढ़वाल जिले की मनमोहक और आकर्षक पहाड़ियों में से एक पहाड़ी पर स्थित और देवी कुंजापुरी माता को समर्पित यह मंदिर समुद्रतल से 1,645 मीटर यानी करीब 5,400 फिट की ऊंचाई पर बना हुआ है। इसलिए मुख्य मंदिर परिसर तक जाने के लिए सड़क मार्ग से करीब 308 सीढ़ियां चढ़ना होता है।
पहाड़ी की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के प्रांगण से ऋषिकेश, हरिद्वार और देहरादून समेत आस-पास के संपूर्ण क्षेत्रों का मनमोहक दृश्य साफ-साफ दिखाई देता है। इस सिद्धपीठ की खासियत के अनुसार यह स्थान तीन सिद्ध पिठों का एक त्रिकोण भी बनाता है, और ये तीन सिद्ध पीठ हैं – सुरखंडा देवी, चंद्रबदनी देवी और कुंजापुरी माता का यह मंदिर।
शिवालिक की पहाड़ियों के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख देवी मंदिरों में से एक माता कुंजापुरी के इस मंदिर परिसर में खड़े होकर बर्फ से ढंके कई विशाल और पवित्र पर्वतों को भी देखा जा सकता है। इसके अलावा मन्दिर के प्रांगण से सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य बहुत ही सुन्दर और आकर्षक दिखाई पड़ता है। यही कारण है कि यह मंदिर स्थल न सिर्फ श्रद्धालुओं को बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।
अध्यात्मिकता और पर्यटन को ध्यान में रखते हुए श्रद्धालुओं के लिए यह मन्दिर वर्ष भर खुला रहता है। हालांकि, वर्षा ऋतु में मन्दिर के आस-पास के आसमान में अक्सर घना कोहरा छाया रहता है जिसके कारण कई बार मन्दिर परिसर से संपूर्ण क्षेत्र का भव्य और मनमोहक दृश्य देखना संभव नहीं होता है।
ध्यान-साधना और मन की एकाग्रता के लिए जो लोग हिमालय के दूर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में नहीं जा सकते और अधिक खर्च नहीं कर सकते उनके लिए यह मंदिर स्थल और इसका प्रांगण एक दिव्य स्थान माना जाता है।
मंदिर की विशेषता है कि इसमें कोई विशेष मूर्ति नहीं है, बल्कि मंदिर के गर्भगृह में एक गड्ढा है, जिसके बारे में कहा मान्यता है कि यह वही गड्ढा है जहां माता सती का कुंजा भाग यानी वक्ष स्थल गिरा था। उसी गड्ढे के पास में देवी की एक छोटी-सी मूर्ति को प्रतीक के तौर पर स्थापित किया गया है। गर्भगृह में ही एक शिवलिंग तथा गणेश जी की एक प्रतिमा के भी दर्शन होते हैं। इसके अलावा मन्दिर के गर्भगृह में अखन्ड ज्योति भी निरंतर प्रज्जवलित रहती है।
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माता कुंजापुरी के मंदिर की वर्तमान संरचना या इमारत न तो बहुत बड़ी या विशाल आकार वाली है और ना ही अधिक पुरानी है। क्योंकि यह संरचना 25 फरवरी 1980 को ही बन कर तैयार हुई है। यह मन्दिर ईंट तथा सीमेन्ट का बना हुआ है, इसलिए इसकी वास्तुकला शैली भी आधुनिक ही है।
मंदिर आकर्षक और कलात्मक आकृति में नजार आता है। मंदिर के प्रवेश द्धार पर लगे बोर्ड के अनुसार यह मंदिर 197वीं फील्ड रेजीमेंट द्वारा सनातन के भक्तों और श्रद्धालुओं को भेंट किया गया है। यह वही 197वीं फील्ड रेजीमेंट है जिसके जवानों ने कारगिल युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मन्दिर परिसर में मुख्य मन्दिर के अलावा भी एक और मन्दिर है जिसमें देवी महाकाली, भगवान शिव तथा भगवान नरसिंह की मूर्तियां स्थापित हैं। इसके अलावा मन्दिर परिसर में सिरोही का एक ऐसा वृक्ष भी है जिस पर चुन्नियां तथा धागा बांधकर भक्तों को देवी माता से मन्नते मांगते देखा जा सकता है। देश-विदेश से आने वाले तमाम नवविवाहित सनातन जोड़े यहां सुखी दाम्पत्य जीवन की अभिलाषा से देवी माता का आशीर्वाद पाते देखे जा सकते हैं।
अगर आप हरिद्वार-ऋषिकेश जाकर गंगा स्नान की योजना बना रहे हैं तो एक बार माता कुंजापुरी सिद्धपीठ के दर्शन करने भी अवश्य ही जाना चाहिए। क्योंकि माता कुंजापुरी का यह मंदिर देवभूमि उत्तराखण्ड के टिहरी गढ़वाल जिले में ऋषिकेश-गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर नरेंद्रनगर के पास स्थित है। इस मंदिर की दूरी हरिद्वार से 53 किमी, ऋषिकेश से 30 किमी और देहरादून से मात्र 52 किमी है।
माता कुंजापुरी मंदिर के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में है जो मात्र 28 किमी की दूरी पर है। जबकि यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जाॅली ग्रांट हवाई अड्डा है जो मंदिर से 42 किमी दूर देहरादून में है।
ऋषिकेश की तरफ से आने पर हिन्डोलाखाल नाम के एक छोटे से पहाड़ी बाजार को पार करने के बाद लगभग चार किलोमीट आगे माता कुन्जापुरी के मन्दिर वाली पहाड़ी के दर्शन हो जाते हैं।
पार्किंग स्थल के पास मन्दिर का पहला प्रवेशद्वार नजर आ जाता है। इस प्रवेश द्वार से मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी की करीब 200 मीटर वाली चढ़ाई चढ़ने के लिए 308 सीढ़ियां चढ़कर माता के मंदिर तक पहुंचना होता है।
चैत्र तथा आश्विन की नवरात्र के अवसर पर मन्दिर में विशेष हवन और पूजन का अयोजन होता है। इसके अलावा आश्विन नवरात्र के दौरान मन्दिर में कुंजापुरी पर्यटन एवं विकास मेले का भी अयोजन किया जाता है। इस मेले में देश के ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी देखा जा सकता है।
श्रद्धालुओं के लिए माता कुंजापुरी के इस प्रसिद्ध मंदिर के कपाट वर्षभर खुले रहते हैं, इसलिए श्रद्धालु और पर्यटक चाहें तो ‘गढ़वाल मण्डल विकास निगम’ यानी जीएमवीएम द्वारा मन्दिर परिसर में निर्मित एक गेस्ट हाऊस में रूक सकते हैं। इसके अलावा यहां मन्दिर की ओर से भी एक धर्मशाला की व्यवस्था है।
हालांकि, यहां भोजन के लिए उचित व्यवस्था अभी तक नहीं देखी गई है इसलिए यात्रियों को अपने लिए भोजन की व्यवस्था खुद ही करनी होती है। वैसे मन्दिर परिसर में और पार्किंग के आसपास चाय-नाश्ते की कई दुकानें देखी जा सकती हैं।