– प्रशासन की ओर से भी भगवान भैरोनाथ को क्यों पिलाई जाती है शराब।
– शराब यदि सनातन में वर्जित है तो देवता को इसका प्रसाद चढ़ाना गलत है या सही?
अजय सिंह चौहान | उज्जैन में स्थित काल भैरव के मंदिर के बारे में यह बात तो सभी जानते हैं कि यहां भगवान भैरवनाथ को प्रसाद के तौर पर शराब चढ़ाई जाती है। लेकिन क्या कोई यह बात जानता है कि यह मंदिर वाममार्गी तांत्रिक मंदिर है। प्राचीन काल में सिर्फ तांत्रिक साधनाएं और तांत्रिक क्रियाएं करने वालों को ही इस मंदिर में जाने और पूजा-पाठ की अनुमति थी। लेकिन आज यहां इस चमत्कार को साक्षात देखने और दर्शन करने के लिए देश-विदेश के सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। और यदि आप भी चाहें तो भैरोनाथ जी का मदिरा सेवन रूपी यह चमत्कार साक्षात देख सकते हैं।
उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक श्री काल भैरव का मंदिर हमारी सनातन पौराणिकता का साक्षात प्रमाण है। क्योंकि यहां विराजित श्री काल भैरव की प्रतिमा आज भी साक्षात मदिरापान करती हुई दिख जाती है। और इसी मदिरापान के पीछे कई मान्यताएं भी जुड़ी हैं। उन्हीं मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि यह मदिरापान भगवान भैरोनाथ के नैवेद्य का एक भाग है और यहां मदिरा चढाने के पीछे भी श्रद्धालुओं का भाव यह होता है कि वे अपने मदिरा रूपी दुर्गुणों को भगवान के सामने अर्पित कर देते हैं और भगवान उन दुर्गुणों को साक्षात ग्रहण भी कर लेते हैं।
श्री काल भैरव क्रोध एवं अग्नि से उत्पन्न हुए हैं इसलिए उनको भगवान शिव का उग्र और तेजस्वी स्वरूप माना गया है। लेकिन ऐसा नहीं है कि वे सिर्फ महाक्रोधी देवता ही हैं। वे तो परम दयालु और क्षणभर में प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा बरसाने वाले भी कहे जाते हैं। और उनके क्रोध को शांत करने के लिए ही उन्हें मदिरापान कराया जाता है। भगवान काल भैरव के इसी मदिरापान को साक्षात देखने और अद्भुत आश्चर्य का अनुभव करने और दर्शन करने के लिए इस मंदिर में देश-विदेश के हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।
धर्म ग्रंथों में भगवान शिव के दो रूपों का वर्णन मिलता है जिसमें भगवान शिव का एक स्वरूप जगत के रक्षक के रूप में जाना जाता है। जबकि दूसरा स्वरूप ठीक उसके विपरीत माना जाता है जिसके अनुसार वे दूसरे स्वरूप कालभैरव के रूप में दुष्टों का नाश करते हैं। और उनका यह रूप अति विकराल और भयंकर है। भगवान शिव के गणों में से एक भैरव को भगवान शिव के रूद्र रूप में पूजा जाता है।
हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव धर्म से संबंधित कहा जाता है। और अष्ट भैरव यानी आठ भैरवों की पूजा शैव परंपरा का एक हिस्सा है। काल भैरव को आठ भैरवों में प्रमुख माना जाता है। काल भैरव की पूजा पारंपरिक रूप से कापालिका और अघोरी संप्रदायों में होती है और मात्र काल भैरव का यह मंदिर ही नहीं बल्कि संपूर्ण उज्जैन क्षेत्र इन संप्रदायों के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में जाना जाता है।
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काल भैरव का यह मंदिर वाममार्गी तांत्रिक मंदिर हैं। और वाममार्गी मंदिरों में मुद्रा, मांस, मदिरा और बलि चढ़ाए जाने की परंपराएं होती हैं। कहा जाता है कि प्राचीन काल में यहां सिर्फ तांत्रिकों को ही इस मंदिर में जाने और पूजा-पाठ की अनुमति थी क्योंकि वे लोग यहां पर तांत्रिक साधनाएं और तांत्रिक क्रियाए करते थे। लेकिन समय के साथ-साथ यहां आम लोगों का आना-जाना भी होता गया और आम लोगों के लिए भी इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिल गई। कुछ समय पहले तक भी यहां पशु बलि की प्रथा जारी थी जो कि अब पूरी तरह से बन्द कर दी गयी है। लेकिन मदिरा का सेवन बंद नहीं किया गया और संभवतः यही कारण है कि आज भी यहां पौराणिक काल से ही मदिरापान कराया जाता है।
इस मंदिर में भगवान काल भैरव को मदिरा का सेवन कब से करवाया जा रहा है और इसके पीछे की मान्यता क्या और क्यूं ऐसा किया जा रहा है इस विषय में कोई भी निश्चित प्रमाण न तो मौजूद हैं और न ही कोई तर्कसंगत जानता है। लेकिन, अगर कोई जानता है तो वो ये कि भगवान भैरवनाथ जी को इस प्रकार से शराब पिलाना न सिर्फ सनातन के एक दम विरूद्ध है बल्कि यह एक प्रकार का षडयंत्र भी है। बावजूद इसके यहां हर दिन, सैकड़ों भक्त काल भैरव को शराब का सेवन करवाने आते हैं।
यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के पुजारी को शराब की बोतल सौंप देते हैं। वह पुजारी भक्तों के सामने ही उस बोतल का ढक्कन हटाकर एक प्याले में भर कर भगवान भैरव नाथ के होठों से लगाता है और देखते-ही-देखते उस प्याले से वह मदिरा कम होती जाती है और क्षण भर में वह प्याला खाली हो जाता है। बाकी बची लगभग एक-तिहाई मदिरा को बोतल सहीत प्रसाद के रूप में वापस कर दी जाती है।
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काल भैरव को मदिरा पिलाने का सिलसिला कब, कैसे और क्यों शुरू हुआ, यह कोई नहीं जानता। यहां आने वाले श्रद्धालुओं और मंदिर के पंडितों का कहना है कि वे बचपन से भैरव बाबा को मदिरा का भोग लगाते आ रहे हैं और भैरोबाबा भी खुशी-खुशी इसे ग्रहण करते हैं। उनके बाप-दादा भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन्हें यही बताते आ रहे हैं कि यह एक तांत्रिक मंदिर था, जहां कभी बलि चढ़ाने के बाद बलि के मांस के साथ-साथ भैरव बाबा को मदिरा भी चढ़ाई जाती थी। बलि प्रथा तो अब यहां बंद हो गई है, लेकिन मदिरा चढ़ाने का सिलसिला वैसे ही जारी है। इस मंदिर की महत्ता को स्थानिय प्रशासन की भी मंजूरी भी मिली हुई है और प्रशासन की ओर से कुछ खास अवसरों पर बाबा को मदिरा चढ़ाई जाती है।
जहां एक ओर मदिरापान के पीछे कई मान्यताएं और श्रद्धाभाव हैं वहीं मान्यताओं और भक्ति के उन भावों को शक की नजर से देखने वाले अक्सर यह सवाल भी उठाते हैं कि यह मात्र एक अंधविश्वास है और कुछ नहीं। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि अगर इस मंदिर के देवता के मदिरापान के रहस्य को अंधविश्वास माना जाता है तो क्यों नहीं कोई आज तक इस रहस्य से पर्दा उठा पाया? और क्यों बड़े-बड़े शोधकर्ताओं ने भी यहां आकर घुटने टेक दिए। आखिर क्यों, अंग्रेजी हुकुमत का एक अंग्रेज अफसर भी बाबा का भक्त बन गया। सच तो यह है कि यह रहस्य विज्ञान के सभी मापदंडों से परे है।