अजय सिंह चौहान || हमारे देश में कई देवी-देवताओं के अनगिनत सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर हैं। और उन्हीं मंदिरों में से एक है इंदौर का खजराना गणेश मंदिर। इस मंदिर में भगवान गणेश जी के दर्शन करने के लिए हर दिन हजारों की संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि इसमें विराजित भगवान गणेश के आगे भक्तों द्वारा मांगी जाने बाली कोई न कोई मनोकामना अवश्य ही पूरी हो जाती है। इसलिए इसे भगवान गणेश का एक सिद्ध मंदिर माना जाता है। और यही वजह है कि सनातन संस्कृति से जुड़े भक्तों के लिए यह मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है और देश-विदेश से कई लोग यहां प्रतिदिन आते रहते हैं।
भगवान गणेश का यह मंदिर एक सिद्ध और चमत्कारिक मंदिर माना जाता है। इसमें हर बुधवार और रविवार को श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी कतारें लग जाती हैं। जबकि इसमें विनायक चतुर्थी का पर्व कुछ अलग ही अंदाज में और धूम-धाम से मनाया जाता है। मंदिर में विराजित भगवान गणेश जी की मुख्य प्रतिमा पर सिन्दूर का चोला चढ़ा हुआ है, इसलिए इसके वास्तविक दर्शन नहीं हो पाते हैं।
यहां देश भर से आने वाले भक्तों का कहना है कि यह मंदिर भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां आने वाले सभी श्रद्धालु गणेश जी की तीन परिक्रमा लगाते हैं और मोदक तथा विभिन्न प्रकार के लड्डुओं का भोग लगाते हैं।
खजराना के इस गणेश मंदिर की गिनती आज देश के सबसे धनी मंदिरों में होने लगी है। और इसका सबसे प्रमुख कारण भी यही है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं जल्द पूर्ण होती हैं। इसलिए सभी भक्त भगवान गणेश के दरबार में अपनी इच्छा और हैसियत के अनुसार कुछ न कुछ चढ़ावा अवश्य ही चढ़ाते हैं।
देश के कुछ जाने-माने मंदिरों की तरह ही इस गणेश मंदिर के पास भी आज बेहिसाब चल-अचल-संपत्ति है। शिर्डी में साईं मंदिर और तिरुपति में भगवान वेंकटेश्वर मंदिर की तर्ज पर अब श्रद्धालुजन यहां भी आॅनलाइन भेंट और चढ़ावा अर्पण करने लगे हैं। खास कर गणेश उत्सव के अवसर पर इस मंदिर की दान-पेटियों में से विदेशी मु्द्राएं और सोने-चांदी के गहने भी हर साल अच्छी खासी मात्रा में निकलती हैं। हर तीन माह में मंदिर की दान-पेटियों को खोल कर दान राशि की गणना की जाती है। इस काम के लिए कई लोगों की मदद ली जाती है।
इस मंदिर से जुडी सबसे बड़ी आस्था यही है कि यहां आने बाले हर भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है। यह मान्यता भी है कि मन में किसी भी तरह की शुभ मनोकामना लेकर यहां आने वाले श्रद्धालु को भगवान गणेश की पीठ पर उल्टा स्वास्तिक बनाना होता है और उस मनोकामना की पूर्ती के लिए इस मंदिर के परिसर में एक धागा भी बाँधना होता है। और जब उसकी वह मनोकामना पूरी हो जाती है तब उस श्रद्धालु को यहां दौबारा आकर सीधा स्वास्तिक बनाना होता है और उस धागे को खोल देना होता हो।
मंदिर की इन्हीं मान्यताओं और आस्थारूपी चमत्कारों के कारण इंदौर का यह खजराना गणेश जी का मंदिर आज पूरी दुनिया में विख्यात हो चुका है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को लेकर किए एक सर्वे के अनुसार यहां प्रतिदिन लगभग 10,000 से ज्यादा श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
मंदिर का इतिहास बताता है कि इसकी वर्तमान संरचना को बनवाने में रानी अहिल्या बाई होल्कर का बहुत बड़ा योगदान रहा है। जबकि इससे पहले यहां गणेश जी का मात्र एक छोटा-सा मंदिर हुआ करता था। उस छोटे से मंदिर को रानी अहिल्या बाई होल्कर के द्वारा जिर्णोद्वार के रूप में एक भव्य आकार देने के बाद यह मंदिर सन 1735 में बन कर तैयार हुआ था। मंदिर संरचना मराठा और मालवा शैली का मिला-जुला रूप कहा जा सकता है।
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मंदिर के प्रवेश द्वार और गर्भ गृह की दीवारों पर चांदी की परत चढ़ी हुई है। इस परत पर अलग-अलग प्रकार के सांस्कृतिक और धार्मिक चित्रण देखने को मिलते हैं। जबकि गर्भ गृह में गणेश जी की मुख्य प्रतिमा की आंखों में हीरा जड़ा हुआ है। बताया जाता है कि यह हीरा इंदौर के एक व्यवसायी ने दान में किया था।
माना जाता है कि मुगलों के अत्याचारों और आक्रमणों से बचाने के लिए ही यहां किसी ने इस मूर्ति को कुएं में डाल कर उसे बंद कर दिया था। और जब औरंगजेब की मौत के बाद उसका अत्याचारी शासन भी समाप्त हो गया उसके बाद ही इस मूर्ति को यहां से बहार निकाला गया था।
यह मंदिर स्थल कितना पुराना है इस बारे में कोई निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। लेकिन, मान्यता है कि भगवान गणेश ने इस स्थान के पास रहने वाले एक ब्राह्मण को सपने में आकर कहा था कि इस स्थान पर मेरी मूर्ति दबी हुई। तुम उसे निकाल कर यहां मेरे लिए मंदिर का निर्माण करवा दो। उस ब्राह्मण ने अपने स्वप्न की चर्चा गांव के लोगों के बीच की। तब गांव के लोगों ने इस स्थान पर खुदाई करके गणेश जी की इस प्रतिमा को निकाला और पास ही में एक चबूतरा बनाकर उस पर स्थापित कर दिया।
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शुरूआती दौर में तो यहां एक छोटा सा मंदिर हुआ करता था। धीरे-धीरे जब इस मंदिर की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी और यहां आने वाले भक्तों की मन्नतें पूरी होने लगी तो देखते ही देखते यहां भक्तों और श्रद्धालुओं की भीड़ भी बढ़ने लग गई और दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आने लगे।
यह चर्चा जब होलकर वंश की महारानी अहिल्याबाई तक पहुंची तो उन्होंने इस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवा कर उसमें इस मूर्ति को इसमें स्थापित कर दिया। और जिस स्थान से खुदाई करवाकर भगवान गणेश की यह मूर्ति निकाली गई थी उस स्थान को एक जलकुंड के रूप में संरक्षित करवा दिया गया। यह जलकुंड मंदिर परिसर में ही भगवान गणेश की प्रतिमा के ठीक सामने बना हुआ है।
मंदिर परिसर में पीपल का सैकड़ों वर्ष पुराना एक ऐसा विशाल वृक्ष भी है जिसके बारे में माना जाता है कि यह इच्छा पूर्ति वृक्ष है। इसके पास खड़े होकर की गई मनोकामना को यह वक्षृ अवश्य ही पूरी करता है।
मंदिर के परिसर में एक बड़े आकार का कलश भी बनाया गया है जो बहुत ही सुंदर और आकर्षक लगाता है। इसके अलावा यहां और भी कई सारे देवी-देवताओं की स्थापना की गई है, जिनमें माता दुर्गा, भगवान महाकालेश्वर शिवलिंग, गंगा जी की मगरमच्छ के ऊपर जलधारा मूर्ति, महालक्ष्मी मंदिर, भगवान राम, हनुमान, राधा-कृष्ण, शनि देव आदि के मन्दिर बने हुए है। एक ही स्थान पर इतने सारे देवी देवताओं के एक ही स्थान पर होने से यहां आने वाले श्रद्धालुओं को ऐसा महसूस होता है कि माने वे किसी देवलोक में भ्रमण कर रहे हों।
तो यदि आप भी यहां आकर गणपति बप्पा के दर्शन करना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि यहां आने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का हो सकता है। इंदौर के रेलवे स्टेशन से इस मंदिर की दूरी लगभग 15 किलोमीटर है। जबकि बस अड्डे से यह मात्र 5 किलोमीटर और एयरपोर्ट से लगभग 10 किलोमीटर दूर है।
इस मंदिर के अलावा इंदौर शहर में बड़े गणपति का मंदिर, अन्नपूर्णा का मंदिर, इस्काॅन मंदिर, बीजासन माता का मंदिर, इंदौर संग्रहालय, लालबाग महल और रजवाडा जैसे अनेकों धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के स्थान हैं। और अगर आप इंदौर शहर के आसपास के भी दर्शनिय और पर्यटन के महत्व के स्थानों को देखना चाहें तो उनमें पातालपानी का झरना, टिंचा झरना, बमनिया कुंड, चोरल डैम, उज्जैन का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, महेश्वर का कीला, नर्मदा नदी और देवास वाली माता का शक्तिपीठ मंदिर जैसे अनेकों स्थान हैं।
इंदौर एक महानगर है। इसलिए यहां रात को ठहरने, खाने-पीने और यातायात जैसी कोई समस्या देखने को नहीं मिलती। यहां अनेकों प्रकार के छोटे-बड़े होटल और धर्मशालाऐं हैं। अगर आप इस मंदिर के पास ही में ठहरना चाहते हैं तो उसके लिए भी आपको बजट के अनुसार यहां कई छोटे-बड़े होटल मिल जायेंगे।