अजय सिंह चौहान || उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में सनातनियों की आस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां आकर दर्शनों के लिए लाइन में लगने के बाद चाहे एक घंटे में या फिर चार घंटों के बाद ही दर्शनों की बारी क्यों न आये कोई भी भक्त बिना दर्शन किये पीछे नहीं हटते। यही इस मंदिर की विशेषता है जो इसे भारत के अन्य मंदिरों से अलग दर्शाती है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े पिछले लेख में हमने इसके कुछ पौराणिक तथ्य दिये थे। उसके बाद मुगलकालीन अत्याचारों का भी तथ्यात्मक विश्लेषण किया था, जिसका लिंक यहां देख सकते हैं –
जानिए इल्तुत्मिश ने कैसे किया था महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अपमान!
पुराणों और अन्य कथाओं में वैसे तो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के विषय में कई तथ्य मौजूद हैं लेकिन, इसके आधुनिक इतिहास को लेकर बहुत ही कम लिखा गया है।
एक लंबे समय के मुगल आक्रमणों और लूटपाट के दौर बाद सन 1690 ई. में मालवा क्षेत्र पर मराठा शासकों ने आक्रमण करके, 29 नवंबर, 1728 को पूर्ण रूप से अपना अधिकर कायम कर लिया। इस दौरान उज्जैन को एक बार फिर से उसकी खोई हुई गरिमा लौटाने का अवसर मिल गया और सन 1731 से 1809 तक यह धार्मिक नगरी मालवा की राजधानी बनी।
मराठी राज्य स्थापित होते ही सन 1737 के लगभग उज्जैन में सिंधिया राज्य के प्रथम संस्थापक राणाजी सिंधिया ने यहाँ का राजकाज अपने दीवान रामचन्द्रराव शेणवी के हाथो में सोंप दिया। इतिहास बताता है कि 18वीं सदी के चैथे दशक की शुरूआत में मराठा शासक राणोजी सिन्धिया के मंत्री रामचन्द्रराव शेणवी ने मुगलआक्रमणों में ध्वस्त और खंडित उस महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे आज हम देख पा रहे हैं।
पेशवा बाजीराव प्रथम ने उज्जैन का प्रशासन अपने विश्वस्त सरदार राणोजी सिन्धिया को सौंप दिया था। जबकि उस समय रामचन्द्रराव शेणवी, राणोजी सिन्धिया के दीवान थे। रामचन्द्रराव शेणवी के पास दौलत की कमी नहीं थी, मगर वे निःसंतान थे। इसलिए कई विद्धानों और पंडितों के परामर्श और सुझावों के बाद रामचन्द्रराव शेणवी ने अपनी सम्पत्ति को धार्मिक कार्यों में लगाने का संकल्प लिया। और इसी सिलसिले में उन्होंने उज्जैन के वर्तमान महाकाल मन्दिर का पुनर्निर्माण करवाया। जो अठारहवीं सदी के चैथे-पाँचवें दशक में बन कर तैयार हुआ।
आज जो महाकालेश्वर का विश्व-प्रसिद्ध मन्दिर विद्यमान है, यह राणोजी सिन्धिया शासन की देन है। इसी समय में दीवान रामचंद्र बाबा के माध्यम से उज्जैन के लगभग सभी टूटे फूटे देव मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया गया। दीवान रामचंद्र बाबा के हाथों उज्जैन में जो महान कार्य हुए उसके कारण उनका नाम इतिहास में कभी भुलाया नहीं जा सकता। हालांकि सन 1810 में सिंधिया शासकों ने ग्यालियर को अपने राज्य की राजधानी घोषित कर दिया, लेकिन उसके बाद भी उज्जैन का विकास होता रहा।
मराठा शैली में बना वर्तमान महाकाल मंदिर कुल पांच मंजिला है। इस मंदिर का क्षेत्रफल 10.77 गुणा 10.77 वर्गमीटर है, जबकि इसकी ऊंचाई 28.71 मीटर बताई जाती है। मंदिर के निचले तल या मंजिल में मुख्य महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विराजमान है। बीच के तल में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा ऊपर के तल पर नागचन्द्रेश्वर की प्रतिमा स्थापित है। नागचन्द्रेश्वर की यह प्रतिमा एक दुर्लभ प्रतिमा मानी जाती है।
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कहते हैं कि नेपाल से लायी गई यह प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है और पुरी दुनिया में यही एकमात्र ऐसी प्रतिमा है जिसमें दशमुखी सर्प शय्या पर विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती और गणेशजी को नाग के आसन और उनके फनों की छाया में बैठे हुए दिखाया गया है। इसमें भगवान शिव के गले और भुजाओं में भुजंग भी लिपटे हुए हैं। यहां भी एक शिवलिंग भी है। नागचन्द्रेश्वर का यह मंदिर दर्शनार्थियों के लिए साल में केवल एक बार नागपंचमी के दिन यानी श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन ही खोला जाता है जिसके लिए यहां दर्शनार्थियों की लंबी-लंबी लाइनें लग जाती हैं।
मन्दिर परिसर से गर्भगृह की ओर जाने वाले मार्ग से लगा जलस्रोत कोटितीर्थ के नाम से जाना जाता है। यह कोटि तीर्थ सर्वतोभद्र निर्माण शैली में बना हुआ है। कोटि तीर्थ के पास ही एक विशाल कक्ष है, जहाँ अभिषेक और पूजन जैसे धार्मिक अनुष्ठान करने वाले पण्डितगण बैठते हैं। कुण्ड के आस-पास कई परमारकालीन प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं जो उस समय के निर्मित मन्दिर की कलात्मकता का आभास करातीं है। इस कोटितीर्थ के पास से ही एक सीढ़ीदार रास्ता है जो मुख्य ज्योतिर्लिंग के गर्भगृह की ओर जाता है।
दक्षिणामूर्ति भगवान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के गर्भगृह में लिंग से लिपटे नागदेव की आकृति पूर्ण रूप से चांदी से बनी कलात्मक एवं मनमोहक है। यह ज्योतिर्लिंग आकार में बड़ा है। मुख्य ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ गणेश, कार्तिकेय एवं पार्वती की आकर्षक प्रतिमाओं के भी दर्शन हो जातेहैं। गर्भगृह का नंदादीप सदैव प्रज्ज्वलित रहता है। श्रद्धालु जिस द्वार से गर्भगृह में प्रवेश करते हैं उसी से बाहर भी आते हैं। गर्भगृह के ठीग सामने की ओर विशाल कक्ष में धातु से निर्मित नंदी की आकर्षक मूर्ति ज्योतिर्लिंग की ओर मुंह किए हुए बैठी नजर आती है।
मन्दिर के परिसर में दक्षिण की ओर अनेक छोटे-मोटे शिव मन्दिर हैं जो शिन्दे काल की देन हैं। इन मन्दिरों में वृद्ध महाकालेश्वर अनादिकल्पेश्वर एवं सप्तर्षि मन्दिर हैं। ये मन्दिर भी आकार में बड़े, भव्य और आकर्षक हैं।
सन 1968 के सिंहस्थ महापर्व से पहले यहां मुख्य द्वार का विस्तार किया गया था। इसके अलावा इसमें श्रद्धालुओं की निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था। इसके अलावा 1980 के सिंहस्थ से पहले भी यहां दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को ध्यान में रखते हुए एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया। मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति है जिसके निर्देशन में मंदिर की व्यवस्था चलती है।
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मन्दिर में आने वाले दर्शनार्थियों को कूपन के आधार पर भोजन प्रसाद की व्यवस्था की जाती है, जिसके अतर्गत प्रतिदिन लगभग एक हजार से अधिक दर्शनार्थियों द्वारा भोजन प्रसाद का लाभ लिया जाता है। मन्दिर परिसर में भेंटकर्ताओं की सुविधा के लिए विशेष काउंटर का प्रबंध और डिजीटल या इंटरनेट सुविधा भी उपलब्ध की गई है।
महाकालेश्वर की आरती प्रतिदिन पांच बार होती है। इसमें प्रातःकालीन आरती 4 बजे, जबकि शयन आरती रात को 11 बजे होती है। प्रातःकाल होने वाली महाकाल की भष्म आरती दुनियाभर में प्रसिद्ध है, इस आरती में शामिल होने के लिए श्रद्धालुओं को पहले ही से बुकिंग करवानी होती है। आजकल मंदिर समिति ने इसके लिए आनलाइन बुकिंग की सुविधा कर दी है।
भगवान महाकाल के श्रृंगार को अपने-आप में एक अनोखी संस्कृति और परंपरा मानी जाती है। मंदिर के खुलने का समय प्रतिदिन सुबह 4 से रात 11 बजे तक का है। उज्जैन का सिंहस्थ मेला बहुत ही दुर्लभ संयोग लेकर आता है इसलिए इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इसके अलावा तंत्र विद्या की दृष्टि से भी महाकाल का विशिष्ट महत्त्व है।
महाकाल की नगरी उज्जैन में अनेकों धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक मंदिर, आश्रम और भवन हैं, जिनमें चैबीस खंभा देवी, गोपाल मंदिर, काल भैरव, नगरकोट की रानी, हरसिद्धि माता शक्तिपीठ का मंदिर, राजा विक्रमादित्य की अराध्य देवी गढ़कालिका का मंदिर, मंगलनाथ का मंदिर, सिद्धवट, राजा भर्तृहरि की गुफा, कालिया देह महल, जन्तर मंतर, चिंतामन गणेश और क्षिप्रा नदी घाट आदि प्रमुख हैं। इनमें से अधिकतर का निर्माण या जिर्णोद्धार सिंधिया शासन के दौरान किया गया था। इन स्थानों पर पहुँचने के लिए महाकालेश्वर मंदिर से बस व टैक्सी सुविधा उपलब्ध है।
उज्जैन के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्याबाई हवाईअड्डा है जो यहां से 55 कि.मी. दूर इंदौर में है। उज्जैन का रेलवे स्टेशन भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है। मुंबई, भोपाल, दिल्ली, इंदौर, अहमदाबाद और खजुराहो से यात्री सड़क मार्ग से भी उज्जैन तक पहुँच सकते हैं। इंदौर, भोपाल, कोटा और ग्वालियर से उज्जैन तक नियमित बस सेवाएं उपलब्ध है।
उज्जैन में रेलवे स्टेशन और बस अड्डे के पास ही यात्रियों के ठहरने के लिए बजट के अनुसार अनेकों किफायती होटल और धर्मशालाएं उपलब्ध हैं। उज्जैन का मौसम अक्टूबर से मार्च के बीच सबसे अच्छा कहा जा सकता है। यदि परिवार के साथ यहां जाना हो तो गर्मियों के मौसम में यहां का तापमान बच्चों, बुजुर्गों के लिए असहनिय हो सकता है।