अजय सिंह चौहान | रहस्य के प्रति उत्सुकता मनुष्य को आदिकाल से ही रही है। मानवमन में अनेक रहस्यमय प्रश्न उठते हैं जिनमें प्रमुख प्रश्न होते हैं आत्मा या चेतना के। क्या हमारे भीतर कोई आत्मा या ऐसी चेतना है जो इस असीम ब्रहमाण्ड की किसी शक्ति या अनदेखे जीवों से सम्पर्क साधे हुए हैं? क्या परलोक का भी कोई अस्तित्व हो सकता है? क्या भूत-प्रेत वास्तविकता है, क्या मृत्यु ही जीवन का अंत है?
यह तो सभी जानते हैं कि किसी भी जीव का मृत्यु को प्राप्त होना एक सत्य है। किन्तु यह कोई नहीं जानता की मृत्यु के बाद क्या होता है। आज विज्ञान बहुत आगे है, आवश्यकता से भी आगे। मगर जीवन-मृत्यु, आत्म-चेतना आदि के सवालों के सामने वह तुच्छ है। विज्ञान चाहे सूर्य को भी क्यों न छू ले मगर परलोक और आत्मा-परमात्मा की वास्तविकता को संभतः कभी भी नहीं समझ और जान सकेगा। हां इस पर परामनोवैज्ञानिकों ने अवश्य ही कुछ समय बर्बाद किया है।
इस विषय पर अनेक देशों में और भारत में भी परामनोवैज्ञानिकों ने मृत्यु और पूनर्जन्म की गुत्थियों को सुलझाने का प्रयास किया है। तथा इन घटनाओं के आधार पर कुछ काल्पनिक फिल्में भी बनी हैं। मगर इन फिल्मों में पूनर्जन्म और भटकती आत्माओं से संबन्धित घटनाओं की गुत्थियों को सुलझाया नहीं बल्कि इन्हें फिल्माया गया है।
आत्मा, मृत्यु और पुनर्जन्म जैसी अन्य गुत्थियों को जानने के लिए भारत और विश्व के कई अन्य देशों में अनेक परामनोवैज्ञानिकों ने अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिनमें प्रमुख नाम कैन्नैडरिंग, प्रो. वी.डी. ऋषि, सर अलिवर लाॅल, रेमंड मूडी तथा आर्थर कानन डायल हैं।
रेमंड मूडी ने ‘लाईफ आॅफ्टर लाईफ’’ नामक अपनी एक पुस्तक में लगभग 150 (150) ऐसे व्यक्तियों के साक्षात्कार लिखे हैं, जो मृत्यु के समीप पहुंच चुके थे या जिन्हें मृत घोषित कर दिया गया था और वे पुनः जीवित हो उठे। इन साक्षात्कारों को मूडी ने तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। जिनमें प्रथम उन लोगों के अनुभव जिन्हें डाॅक्टरों द्वारा मृत घोषित कर दिया गया परन्तु वे फिर से जीवित हो उठे। द्वितीय उन लोगों के अनुभव जो किसी दुर्घटना, गम्भीर चोट अथवा किसी बीमारी के कारण मृत्यु के समीप जाकर फिर से जी उठे। तथा तृतीय उन लोगों के अनुभव जो मर गये, किन्तु मरणासन्न या मरने से पूर्व की अवस्था में जो कुछ कहा उसे उपस्थित लोगों ने सुना और बाद में उसे बताया या दोहराया।
मनोवैज्ञानिक मूडी ने अपनी इस पुस्तक ‘लाइफ आफ्टर लाइफ’ में लिखा है कि एक महिला के अनुभव इस प्रकार है – ‘‘मेरी आंत का आॅपरेशन हो रहा था, आॅपरेशन के दिन मैं कई घण्टे तक बेहोश रही। हालांकि तब मैं अचेत थी, लेकिन इस दौरान डाॅक्टरों और सर्जन के बीच हुई बातचीत मुझे आज भी याद है। मैं अपने शरीर के कुछ ऊपर लेटी रही, दर्द से मुक्त, अपने शरीर को देखती रही, जिस पर दर्द के लक्षण थे। शांतिपूर्वक हवा में उड़ती रही। एक बार तो मैं किसी अंधकारमय सुरंग में भी पहुंच गयी और थोड़ी देर बाद पुनः अपने शरीर में प्रवेश कर गयी। उस सुरंग से मैंने सारे कार्य-कलापों को देखा था।’’
पारसी लोगों का मानना है कि जीवात्मा मृत्यु के तीन दिन पश्चात अपनी कामना, भावना एवं क्रिया-कर्म के अनुसार स्वर्ग अथवा नर्क में जाती है। इस विषय पर विभिन्न लोगों के विभिन्न मत हैं कि, मृत्यु के पश्चात आत्मा का क्या होता है? कोई कहता है कि मृत्यु के पश्चात आत्मा भी समाप्त हो जाती है, कोई कहता है कि आत्मा सुरक्षित रहती है। दर्शन, आध्यात्मतत्व, धर्म एवं विज्ञान आदि के भी इस विषय में विभिन्न मत हैं। वैदिक युग के ऋषि-मुनि भी प्रेतलोक में विश्वास करते थे।
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ऋग्वेद के एक मंत्र में कहा गया है कि – ‘‘जीवात्मा का कभी पतन या विनाश नहीं होता। वह कभी समीप, कभी दूर, अनेक योनियों में भ्रमण करती है। अर्थात वह कभी कोई वस्त्र पहनती है तो कभी कोई वस्त्र। इस विषय पर भगवान श्री कृष्ण ने भी कहा है कि आत्मा की कभी मृत्यु नहीं होती है। आत्मा अमर है। आत्मा सत्य है तथा आत्मा ही परमात्मा का दूसरा रूप है।’’
डाॅक्टरों और मनोवैज्ञानिकों के अनुसार जब मृत्यु होती है तो मस्तिष्क और हरदय निष्क्रिय हो जाते हैं और मस्तिष्क के पूर्णरूप से निष्क्रिय हो जाने पर ही व्यक्ति की मृत्यु मानी गयी है। मृत्यु के बाद जीवात्मा सुक्ष्म शरीर में समाविष्ट हो जाती है। मृत्यु के समय जो वाष्प समान सुक्ष्म पदार्थ बाहर जाता है, वह ज्योतिर्मय होता है और सुक्ष्म शरीर का छाया चित्र भी लिया जा सकता है। प्राकृतिक शरीर को छोड़कर सूक्ष्म शरीर में प्रवेश और अन्यत्र विचरण करने का उल्लेख प्राचीन समाधि भवनों में ऐसे आलेख अंकित हैं, जिनमें सुक्ष्म शरीर को प्राकृतिक शरीर से विभिन्न स्थानों में जाते दिखाया गया है।
भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों और आंचलों में आज भी जब परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो उस शव के मस्तिष्क के समीप जमीन पर एक मुट्ठी आटे को डालकर कर उसे थोड़ा समतल करके उसे एक थाली से ढक दिया जाता है। तथा शव की अंतिम क्रिया के बाद जब उस थाल को उठाकर देखा जाता है तो उस आटे पर एक अस्पष्ट सी आकृति प्रतीत होती है, जिसको आधार मान कर गांव के कुछ बुजुर्ग लोग अपने-अपने अनुभव या कल्पना के आधार पर यह घोषणा करते हैं कि उसकी आत्मा का अगला जन्म किस रूप में हो सकता है।
कई परामनोवैज्ञानिकों ने प्लेनचिट या माध्यम के द्वारा परलोकगत आत्माओं से सम्पर्क कर ‘मरणोपरान्त जीवन’ के बारे में जानने का प्रयास किया। दूसरी तरफ इन्हीं परामनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि मृत्यु के बाद लौटे कई व्यक्तियों ने परलोक जगत की जो झांकी प्रस्तुत की है उसे हम शत-प्रतिशत सत्य भी नहीं मान सकते। क्योंकि यह उनके सपनों, विचारों एवं अनुभूतियों का मिला-जुला रूप भी हो सकता है।
चाहे यह सत्य हो अथवा असत्य, किन्तु यह तो वास्तविकता है कि मृत्यु ही जीवन का सर्वोच्च सत्य है और यह शरीर चेतना का वाहन है। अतः इस वाहन की सवारी करने के पश्चात प्रत्येक सवारी को अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचना होता है और परलोक की वास्तविकता क्या है? आत्मा क्या है? क्या आत्मा मरती है या नहीं? इन सभी प्रश्नों के उत्तर हम शायद ही कभी जान सकेंगें।