मुंबई के घाटकोपर में आयोजित एक समरसता संगोष्ठी में विश्व हिंदू परिषद के संगठन महामंत्री माननीय श्री विनायकराव देशपांडेजी ने अपने विचार व्यक्त किये। विनायक देशपांडे ने कहा कि ‘हम सब प्रबुद्ध जन अंतर्मुख होकर जब विचार करते हैं की आज भी हिंदू समाज में अस्पृश्यता का प्रचलन शुरू है। मन में प्रश्न आता है की हिंदू धर्मग्रंथ तथा तत्वद्न्यान में कहीं भी छुआछूत के बारे में उल्लेख नहीं है। तो यह अस्पृश्यता कहां से आई?
हम सब देखते हैं कि संत रामानंदाचार्य, संत नरसी मेहता, संत तुकाराम संत ज्ञानेश्वर, संत रविदास इत्यादि महानुभाव ने छुआछूत का प्रखरता से विरोध किया है। तत्वद्न्यान में तो हम सर्वश्रेष्ठ है लेकिन आचरण में हम कम पड़ते हैं। हमारी कथनि और करणी मे अंतर है। भारत के अतीत में सत्य काम जाबालि, महर्षि वेदव्यास तथा अनेकों ऋषि यों ने योगदान दिया है जो उच्च वर्ण या सवर्ण समाज से नहीं थे। श्री विनायकराव देशपांडे ने प्रश्न पूछा की “ये छुपाछहुत बिमारी कब आयी?”
इस विषय पर चिंतन करते हुए उन्होंने कहा कि अस्पृश्यता वेदों में नहीं रामायण महाभारत आदि ग्रंथों में नहीं। चौथी शती में चीनी प्रवासी फायन के प्रवास वर्णन हमें मिलते हैं उसमें भी छुआछूत का वर्णन नहीं है।
छठी शताब्दी में संस्कृत लेखक बाणभट्ट के कादंबरी ग्रंथ में राजा शूद्रक चांडाल राजा की राज कन्या से विवाह करता है ऐसा उल्लेख है । इसका अर्थ यह हुआ की छठी शताब्दी में भी राजा और चांडाल में विवाह संबंध होते थे। श्री विनायक राव देशपांडे जी ने प्रतिपादित किया की, इस्लाम के आक्रमण के बाद छुआछूत की कुरीतियां हिंदू समाज में आई।
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पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद संपूर्ण हिंदू समाज में एक हतप्रभता का भाव आया और इस्लामी आक्रमणकारियों ने अनेकों राजाओं को बल से मुस्लिम धर्म अपनाने को मजबूर किया। जिन राजाओं ने इस्लाम कबूल नहीं किया उनको मैला ढोने का काम लगा दिया।
गांधीवादी सर्वोदयी नेता प्रोफेसर मलकानी की रिपोर्ट का प्रमाण देकर श्री देशपांडे जी ने कहा कि 80% वाल्मीकि समाज के लोगों का गोत्र क्षत्रियों का है और 20% ब्राह्मणों का । इसका अर्थ यह हुआ कि जिन क्षत्रिय राजाओं ने इस्लाम धर्म नहीं अपनाकर हिंदू धर्म में नीचे स्तर का काम किया वह सभी समाज हमारे विशेष आदर के पात्र होने चाहिए। आज के सवर्ण हिंदू समाज ने उनकी इस धर्म परायणता पर गर्व महसूस करना चाहिए।
डॉक्टर के एस लाल लिखित The growth of scheduled cast in India इस पुस्तक का प्रमाण देते हुए देशपांडे ने कहा की इस्लाम आने के बाद विभिन्न जातियां और उनमें भेदभाव बढा। भारत में इस्लाम के पूर्व मांसाहार का सेवन ज्यादा प्रचलित नहीं था। इस्लाम अरबस्तान से आया जहां प्राणियों का मांस खाना एक आम बात थी। उन्होंने यहां प्राणियों की हत्या शुरू की। यह काम करने के लिए भी चर्मकार समाज को उन्होंने मजबूर किया। हिंदू धर्म में रहने के लिए हमारे ही क्षत्रिय जो गुलाम बने थे उन्होंने चर्मकार का काम शुरू किया और हिंदू ही रहे। अंग्रेजों ने भी 429 जातियों का विवरण देकर हिंदू समाज को विभिन्न जातियों में बांटा।
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विनायकराव देशपांडे ने खेल की परिभाषा में समझाते हुए कहा की क्रिकेट में हम कभी बैकफुट पर जाकर खेलते हैं या फ्रंट फुट पर जाकर खेलते हैं। इस्लाम के अनवरत आक्रमणों से परेशान होकर हमारे पूर्वजों ने धर्म की रक्षा के लिए कुछ बंधन खुद पर डालें जैसे पर्दा की प्रथा। इसको हम बैकफुट पर जाकर खेलना कह सकते हैं।
रामायण में सीता जी का स्वयंवर हुआ तब उन्होंने घुंघट नहीं डाला था वैसे ही महाभारत में द्रोपदी ने घुंघट नहीं उड़ा था इसका अर्थ यह हुआ कि इस्लाम के आक्रमण के बाद हिंदू परियों का घर से बाहर जाना उचित नहीं समझा गया। जैसे कछुआ उसके ऊपर आक्रमण होने के बाद अपने हाथ और अन्य इंद्रिय अंदर सिकुड़ कर लेता है वैसे ही हिंदू समाज ने कुछ बंधन अपने अस्तित्व की लड़ाई जीतने के लिए डालें।
जिन जगह पर इस्लाम का राज्य था उन स्थानों पर हिंदुओं में विवाह रात में होता था और जिन स्थानों पर इस्लाम का राज्य नहीं था वहां दिन में शादियां होती थी। और बाल विवाह की प्रथा भी हमारे यहां इस्लाम के आक्रमण के पहले नहीं थी। हमारे यहां तो सीता स्वयंवर द्रौपदी स्वयंवर होता था।
इस्लाम ने जहां आक्रमण किया वहां स्त्रियों के साथ बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया है। इसलिए बाल विवाह की प्रथा का प्रचलन हुआ। ताकि बाल्यकाल से ही स्त्री का उसके मायके और ससुराल वाले रक्षण कर सकें। इसका अर्थ यह हुआ कि इस्लाम के आक्रमण को निरस्त करने के लिए हिंदू समाज ने कुछ बातें बंधन के स्वरूप अपनायी।
14 वी सदी में समुद्र उल्लंघन करने के लिए भी प्रतिबंध लगा दिया इसका एक कारण यह भी था कि समुद्र लंघन करने के बाद धर्मांतर बढ़ जाएगा और जो कोई बचा कुचा हिंदू समाज है वह भी इस्लाम में परिवर्तित होगा। श्री विनायक देशपांडे ने कहा कि आज हमें जो कुरीतियां लगती है वह सब 10 वीं शताब्दी के बाद इस्लाम के आक्रमण के फलस्वरूप हमें मिली है ।
डॉक्टर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की सामाजिक समरसता के विचारों पर भाष्य करते हुए श्री विनायक देशपांडे ने कहा की बाबा साहब अंबेडकर ने मजबूरी में बुद्ध धर्म में धर्मांतरण किया। उस समय का हिंदू समाज मंदिरों में दलितों का प्रवेश तथा सार्वजनिक स्थानों पर पेयजल की उपलब्धता करने में असमर्थ रहा। बाबा साहब अंबेडकर ने भारत की परंपरा से ही जन्मे बुद्ध धर्म में प्रवेश करके हिंदू समाज पर बहुत बड़ा उपकार किया है। यदि डा अंबेडकर ईसाई या मुस्लिम बन जाते तो आज के अनुसूचित वर्ग के लोग भी मुस्लिम बन जाते और हिंदू और मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात बिगड़ जाता।
तत्वद्न्यान की दृष्टि से देखें तो हिंदू धर्म महान है लेकिन जन सामान्य का आचरण छुआछूत में लिप्त है। इस कठिन परिस्थिति में हमें अंतरमुख होकर यह विचार करना होगा कि भारत का स्वर्णिम भविष्य बनाना है तो समरसता का भाव हर एक भारतीय के मन में जगाना होगा। इस काम में विश्व हिंदू परिषद बड़ा योगदान दे रही है। इस कार्य में प्रबुद्ध जनों का भी जुड़ना बहुत आवश्यक है ऐसा उन्होंने कहा। बढ़ते धर्मांतर को रोकने के लिए समग्र हिंदू समाज को सब जाति पंथ भूलकर एकत्र आना होगा ऐसा प्रतिपादन उन्होंने किया।
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